NHAI सड़क निर्माण में फिर से अपनाएगी बीओटी मॉडल…

सड़क निर्माण में सार्वजनिक-निजी भागीदारी का पुराना बीओटी मॉडल वापस लौट आया है। चार वर्ष तक हाइब्रिड-एन्युटी और ईपीसी मॉडल अपनाने के बाद एनएचएआइ अब फिर बीओटी परियोजनाओं को बढ़ावा देने में जुट गया है। हाल में उसने लगभग 950 किलोमीटर हाईवे परियोजनाओं के ठेके बीओटी आधार पर देने का निर्णय लिया है।

सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) वाली परियोजनाओं के लिए बीओटी अर्थात (बिल्ड, ऑपरेट एंड ट्रांसफर अर्थात सड़क बनाओ, समझौता अवधि तक सड़क के रखरखाव के साथ वाहनों से टोल वसूलो और फिर अंत में सड़क सरकार को वापस सौंप दो) मॉडल की शुरुआत वाजपेयी सरकार ने स्वर्णिम चतुर्भुज योजना के दौरान की थी। इसके बाद मनमोहन सरकार ने भी राष्ट्रीय राजमार्ग प्रोग्राम की सड़क परियोजनाओं में इस मॉडल का प्रयोग किया।

परंतु मनमोहन सिंह सरकार के दूसरे कार्यकाल में सड़क परियोजनाओं की सुस्ती के कारण जब बैंकों ने लोन देने में आनाकानी शुरू कर दी, तो बीओटी मॉडल के विकल्पों पर विचार होने लगा। इसके बाद एन्युटी (निजी कंपनी पैसा लगाती है, जबकि सरकार हर साल उसे भुगतान करती है) और ईपीसी (इंजीनियरिंग, प्रोक्योरमेंट एंड कंस्ट्रक्शन-इसमें सरकार एडवांस में निजी कंपनी को पैसों का भुगतान करती है) जैसे नए मॉडल सामने आए।

इसके बाद जब मोदी सरकार आई तो लंबित परियोजनाओं को आगे बढ़ाने तथा निजी कंपनियों को प्रोत्साहन देने के लिए बीओटी परियोजनाओं के बदले हाइब्रिड-एन्युटी तथा ईपीसी मॉडलों को प्राथमिकता देना शुरू कर दिया। इससे सैकड़ों अटकी परियोजनाओं के पूरा होने का रास्ता खुल गया। लेकिन चार वर्ष बाद इन मॉडलों पर काम करना सरकार के लिए आर्थिक रूप से मुश्किल गया है। यही वजह है कि एनएचएआइ को फिर से बीओटी मॉडल अपनाने के लिए कहा गया है।

यूं तो सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी इस बात को खारिज करते हैं कि एनएचएआइ के पास पैसों की समस्या है। लेकिन हाल की एक समीक्षा बैठक में उन्होंने सड़क परियोजनाओं में सुस्ती पर नाराजगी जताते हुए एनएचएआइ को परियोजनाओं में तेजी लाने के लिए सभी संभव उपाय आजमाने को कहा है। बीओटी मॉडल इनमें से एक है। यही वजह है कि बैठक के कुछ ही रोज बाद एनएचएआइ ने 30 हजार करोड़ रुपये लागत की 955 किलोमीटर लंबी परियोजनाओं के ठेके बीओटी के आधार पर अवार्ड करने का एलान कर दिया है। हालांकि सूत्रों के अनुसार इस बार का बीओटी मॉडल कंपनियों के लिए आकर्षक होगा, क्योंकि इसमें अनुबंध रद करने की शर्तो में कुछ ढील दी जाएगी।

इसलिए बीओटी पर फिर से विचार

सड़क मंत्रलय के सूत्रों के मुताबिक दरअसल, हाइब्रिड एन्युटी और ईपीसी दोनो ऐसे मॉडल हैं जिनमें परियोजना की शुरुआत में सरकार पर आर्थिक बोझ पड़ता है। जबकि कमाई बाद में होती है, जब टोल से आमदनी प्राप्त होने लगती है। जबकि बीओटी मॉडल में सरकार को कुछ देना नहीं पड़ता। निजी कंपनी अपना पैसा लगाती है और फिर टोल से लाभ के साथ उसकी भरपाई करती है।

चूंकि फिलहाल एनएचएआइ को पैसों की तंगी का सामना करना पड़ रहा है, लिहाजा उससे फिर से बीओटी मॉडल अपनाने के लिए कहा गया है। इस मामले में पीएमओ की उस चिट्ठी की भूमिका को महत्वपूर्ण माना जा रहा है जिसमें हाइब्रिड-एन्युटी और ईपीसी परियोजनाओं के भविष्य को लेकर सवाल उठाते हुए बीओटी परियोजनाओं पर तवज्जो देने को कहा गया था।

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