MP, राजस्थान में एंटी-इनकंबेंसी से लड़ेगी भाजपा, कई विधायकों के कटेंगे टिकट
सूत्रों के मुताबिक राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनावों को लेकर तैयारियां शुरू हो गई हैं। वहीं एंटी-इनकंबेंसी से निबटने के लिए पार्टी मध्य प्रदेश और राजस्थान में एक तिहाई से ज्यादा वर्तमान विधायकों का पत्ता साफ कर सकती है।
वरिष्ठ पार्टी सूत्रों ने संकेत दिया कि वहीं छत्तीसगढ़ में भी कुछ मौजूदा विधायकों के टिकट काटे जाने की संभावना है। राजस्थान और मध्य प्रदेश में राज्य इकाइयां कमजोर प्रदर्शन करने वाले विधायकों का रिपोर्ट कार्ड बना कर उनकी सूची तैयार करने में जुटी हुई हैं। गौरतलब है कि एमपी में 230, राजस्थान में 200 और छत्तीसगढ़ में 90 विधानसभा सीटें हैं।
सूत्रों का कहना है कि पार्टी एक तिहाई से ज्यादा चेहरों को दोबारा टिकट देने के मूड में नहीं हैं। वहीं पार्टी ऐसे युवा चेहरों की खोज में जुटी है, जिन्होंने हाल के कुछ वर्षों में पार्टी को विस्तार देने में कड़ी मेहनत की है। पार्टी की सोच है कि ऐसे युवा चेहरों को आगे बढ़ने का मौका दिया जाए, जिससे न केवल एंटी-इनकंबेंसी फैक्टर की चुनौती से निबटने में आसानी होगी, साथ ही नए चेहरों को मैदान में उतारने से लोगों का भरोसा भी बढ़ेगा।
हालांकि पार्टी के भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने इसे पार्टी की रूटीन एक्सरसाइज बताया। उनका कहना है कि पार्टी हमेशा से नए युवा चेहरों को मौका देती रही है और इस बार भी पार्टी नए चेहरों को मौका देगी। उन्होंने बताया कि पार्टी ने मध्य प्रदेश में पिछले चुनावों में 30 फीसदी उम्मीदवार बदले थे।
वहीं पिछले साल गुजरात विधानसभा चुनावों में भी भाजपा ने बड़े स्तर पर मौजूदा विधायकों के टिकट काटे थे। सूत्रों के मुताबिक केन्द्रीय नेतृत्व पहले ही एमपी, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जमीनी स्तर पर हालातों का आकलन करने में जुट चुका है। सूत्रों का कहना है कि पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने तीनों राज्यों में प्रत्येक पोलिंग बूथ की रिपोर्ट मंगाई थी। जिसमें प्रत्येक विधायक के प्रदर्शन का लेखा-जोखा दिया गया है। वहीं कुछ विधायकों की निगेटिव रिपोर्ट्स भी आई हैं।
भाजपा के लिए इन तीनों राज्यों में ही एंटी-इनकंबेंसी ने निबटना आसान नहीं हैं। रणनीति के अनुसार संगठनात्मक स्तर पर मध्य प्रदेश में प्रदेश अध्यक्ष को बदला गया है जबकि राजस्थान में बदलाव की प्रक्रिया जारी है। पार्टी के लिए मध्य प्रदेश सबसे बड़ी चुनौती के रूप में उभर रहा है, क्योंकि यहां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का तीसरा कार्यकाल है, जिसके चलते एंटी-इनकंबेंसी का असर यहीं सबसे ज्यादा देखने को मिल रहा है।
जबकि राजस्थान में परंपरागत रूप से लगातार हर चुनाव में सत्ताधारी पार्टी के विरोध में एंटी-इनकंबेंसी लहर देखने को मिलती है। हालांकि पार्टी के वरिष्ठ सूत्रों का कहना है कि एमपी में भाजपा का मजबूत नेटवर्क है, साथ ही वहां जमीनी स्तर पर आरएसएस की भी मजबूत पकड़ है। इसके अलावा संघ भी चुनावों में नए चेहरे उतारने के पक्ष में है।