मराठा आरक्षण मामले में CM फडणवीस को निकालना होगा बिना संतुलन बिगाड़े कोई रास्ता
महाराष्ट्र में सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन ने मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस को हिला कर रख दिया है. पहली बार फडणवीस और बीजेपी को गंभीर संकट का सामना करना पड़ रहा है. आंदोलनकारी लोकसभा चुनावों से पहले हिंसक हो रहे हैं. हालांकि मराठवाड़ा क्षेत्र आंदोलन का मुख्य केंद्र है, लेकिन अब ये राज्य के दूसरे हिस्सों में भी फैल रहा है. ये आंदोलन लंबे समय और शांत तरीके से चल रहा था लिहाजा सरकार इसको लेकर ज़्यादा परेशान नहीं थी.
लेकिन अब हालात बदल गए हैं. ब्राह्मण नेता फडणवीस को मुश्किल चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. इस मुद्दे को उन्हें बिना सामाजिक संतुलन को बिगाड़े युद्धस्तर पर सुलझाना होगा. ऐसा इसलिए क्योंकि आंदोलन करने वाले खासतौर पर युवा, सरकार में विश्वास खो रहे हैं. वो चाहते हैं कि आरक्षण को लेकर निष्पक्ष सौदा हो. ये मामला इसलिए भी और अधिक उलझ गया है क्योंकि इस पर फिलहाल कोर्ट में सुनवाई चल रही है.इसके लिए फडणवीस को अकेला दोषी नहीं ठहराया जा सकता. पिछले दो दशकों से हर सरकार ने इस मुद्दे को उलझा कर रख है. लिहाजा प्रमुख राजनीतिक दल हमेशा इस मुद्दे पर फंसती नज़र आई है.
ये कहना गलत नहीं होगा कि किसानों की आत्महत्या, कृषि संकट और बेरोजगार युवाओं की बेचैनी से राज्य में पहले से ही हालात खराब है. सामाजिक तनाव तेजी से बढ़ रहा है. शहरी क्षेत्रों की तरफ लोगों का पलायन लगातर बढ़ रहा है और महिलाएं असुरक्षित महसूस कर रही हैं.
समस्या इसलिए और बढ़ गई है क्योंकि राज्य में एक ऐसे नेता की कमी है जिसके पास हर जाति, समुदाय और क्षेत्रीय विचारों के लिए एक विज़न हो. बीजेपी और कांग्रेस ने महाराष्ट्र में कोई बड़ा नेता ही पनपने नहीं दिया है. महाराष्ट्र के एक पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, “देवेंद्र फडणवीस को तत्काल इस मुद्दे पर बातचीत के लिए आंदोलनकारियों के नेताओं को बुलाना चाहिए. वो कोर्ट के फैसले का इंतज़ार ना करे. इसका समाधान तलाशने के लिए सभी दलों की एक बैठक बुलाए”.
मराठों को महाराष्ट्र में बहुसंख्यक समुदाय के तौर में जाना जाता है. महाराष्ट्र में कोई भी राजनीतिक दल मराठों के आरक्षण का विरोध नहीं कर रही है. लेकिन बीजेपी सरकार पर उनके विरोधी निशाना साध रहे हैं. उन्हें लगता है कि कानून और व्यवस्था खराब होने से फडणवीस को हटाया जा सकता है. एक और नेता ने कहा, “किसी को जाना होगा.” ये पूछे जाने पर कि क्या ये आंदोलनियों को शांत करेगा, समस्या का समाधान करेगा, उन्होंने कहा कि ये आंदोलनियों को संतुष्ट कर सकता है. लेकिन सिर्फ अदालत और विधायिका इस मुद्दे को हल कर सकती है.
पार्टी लाइन को छोड़ कर सांसदों का मानना है कि कोई भी सरकार आरक्षित या अनारक्षित श्रेणी में बेरोजगार को नौकरी नहीं दे सकती है. ये एक बड़ा मुद्दा है. लेकिन फिर मराठों को क्या करना चाहिए, वे कब तक इंतजार कर सकते हैं. बेरोजगारी अन्य सामाजिक समस्याओं का कारण बन रही है, जिसमें देर से विवाह और अपराध दर में वृद्धि शामिल है. कुछ लोगों को लगता है कि आरक्षण के लिए मराठों द्वारा आक्रामक रुख अपनाने से ये समुदाय अलग-थलग पड़ सकता है. सबसे प्रगतिशील और सबसे विकसित राज्यों में से एक महाराष्ट्र तेजी से बदल रहा है.
मराठों द्वारा आरक्षण की मांग अलग-अलग समुदायों के वर्गों की दुर्दशा का संकेत है जो प्रगति की गई ‘तकनीकी समाज’ का हिस्सा बनने में नाकाम रही हैं. दलित और ओबीसी मराठों की आरक्षण के लिए मांग से खुश नहीं हैं. उन्हें इस बात का डर सता रहा है कि कही उनके अधिकारों पर कैंची तो नहीं चल जाएगी. मराठ भी दलित अत्याचार अधिनियम को खत्म करने की भी मांग कर रहे हैं. पूरे राज्य में मराठों द्वारा शांति मार्च निकाले जा रहे हैं. इसमें हर वर्ग के नेता भाग ले रहे हैं. इनके इरादों ने दलितों और ओबीसी वर्गों की चिंता बढ़ा दी है.
हालांकि किसी ने सार्वजनिक रूप से इस पर कुछ नहीं कहा है. लेकिन ये सच है कि पार्टी लाइनों से हट कर कई नेता फडणवीस का विरोध कर रहे हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि फडणवीस ब्राह्मण समुदाय से हैं. ब्राह्मण समुदाय का राजनीतिक तौर पर लोकतंत्र में महत्व काफी कम हो गया है. मराठा बहुल महाराष्ट्र में पेशवाओं का राज रहा है जहां ब्राह्मणों का बोलबाला था. ये भी सच है कि 48 लोकसभा सीटों के साथ, उत्तर प्रदेश के बाद महाराष्ट्र राजनीतिक रूप से दूसरा सबसे महत्वपूर्ण राज्य है. कहा जा रहा है कि बीजेपी ने अगले साल लोकसभा चुनाव के साथ महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव कराने की योजना बना रही है.