मध्य प्रदेश में पांच साल में दोगुना हुआ अंडा और मांस उत्पादन, कांग्रेस ने साधा निशाना

भोपाल: पिछले पांच सालों में मध्य प्रदेश में अंडों एवं मांस का उत्पादन करीब दोगुना हुआ है, जबकि इसी अवधि में प्रदेश में दुग्ध उत्पादन में केवल डेढ़ गुना ही वृद्धि हुई है. मध्य प्रदेश डायरेक्टोरेट ऑफ स्टेटिक्स  एंड इकॉनमिक्स द्वारा जारी ‘मध्य प्रदेश का आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18′ में कहा गया है, ‘‘प्रदेश में वर्ष 2012-13 में अंडों का उत्पादन 8,712 लाख इकाई एवं मांस का उत्पादन 40,000 टन था, जो वर्ष 2016-17 में बढ़कर क्रमश: 16,941 लाख एवं 79,000 टन हो गया.’’ यह आंकड़े दिखाते हैं कि पिछले पांच सालों में प्रदेश में अंडों एवं मांस का उत्पादन लगभग दोगुना हुआ है. वहीं, दुग्ध उत्पादन का वार्षिक स्तर इन पांच सालों में 88,38,000 टन से बढ़कर 1,34,45,000 टन पर पहुंच गया , जो लगभग डेढ़ गुना की वृद्धि दिखाता है.

प्रदेश में वर्ष 2015-16 की अपेक्षा वर्ष 2016-17 में अंडों के उत्पादन में 17.53 प्रतिशत की वृद्धि एवं मांस में 12.85 प्रतिशत की वृद्धि परिलक्षित हुई, जबकि वर्ष 2015-16 की अपेक्षा वर्ष 2016-17 में दुग्ध उत्पादन में 10.68 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई. मध्यप्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता पंकज चतुर्वेदी ने कहा, ‘‘दूध, अंडा एवं मांस उत्पादन के इन आंकड़ों ने बीजेपी का असली चेहरा बेनकाब कर दिया है.’’

उन्होंने कहा, ‘‘पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने आरोप लगाया था कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली तत्कालीन यूपीए सरकार बूचड़खानों को सब्सिडी देकर एवं मांस के निर्यात को प्रोत्साहित कर ‘पिंक रिवोल्यूशन’ को बढ़ावा दे रही है.’’ चतुर्वेदी ने सवाल किया, ‘‘अब बीजेपी क्या कहेगी, जब बीजेपी के ही शासनकाल में मांस एवं अंडों का उत्पादन पिछले पांच में दोगुना हो गया है.’’ गौरतलब है कि कुछ समय पहले मुख्यमंत्री चौहान ने प्रदेश की आंगनवाडियों में अंडे परोसे जाने वाले प्रस्ताव को खारिज कर दिया था.

दो वर्ष पहले बीजेपी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए चौहान ने कहा था, ‘‘आंगनवाडी केन्द्रों में बच्चों एवं गर्भवती महिलाओं को अंडे नहीं दिये जाएंगे, बल्कि दूध दिया जाएगा.’’ दूसरी ओर मध्यप्रदेश बीजेपी प्रवक्ता दीपक विजयवर्गीय ने कहा, ‘‘मध्य प्रदेश ने कृषि क्षेत्र में सबसे अधिक विकास के साथ साथ सभी क्षेत्रों में विकास किया है. इसलिए मांस एवं अंडों के उत्पादन में भी वृद्धि हुई है. इसे नकारात्मक रूप में नहीं देखा जाना चाहिए.’’

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