Loksabha Election 2019: अब 35 वर्षों के बाद मेनका गांधी फिर इसी कलेक्ट्रेट में अपना नामांकन दाखिल करेंगी

 अब वक्त बदल गया है, परिस्थितियां बदल गई हैं…..सियासत में भी तब्दीली आ चुकी है, लेकिन सुलतानपुर का कलेक्ट्रेट वही है, जगह वही है, बस मेनका के साथ अब ज्यादातर लोग नए हैं। पहली बार मेनका 1984 में अमेठी लोकसभा सीट से अपने जेठ राजीव गांधी के खिलाफ निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव मैदान में उतरी थीं। उस दौरान अमेठी अलग जिला नहीं था। लिहाजा उन्होंने सुलतानपुर कलेक्ट्रेट में ही नामांकन किया था। उस दौरान पूरे देश की नजर अमेठी लोकसभा सीट के परिणाम पर थीं। अब 35 वर्षों के बाद आज वह दूसरी बार फिर इसी कलेक्ट्रेट में अपना नामांकन दाखिल करेंगी, बशर्ते भाजपा प्रत्याशी के तौर पर। इस बार भी देश की निगाहें सुलतानपुर सीट पर रिजल्ट आने तक टिकी रहेंगी।

दरअसल वर्ष 1980 में मेनका के पति व अमेठी के सांसद संजय गांधी का विमान दुर्घटना में अचानक निधन हो गया। तब वरुण गांधी महज 100 दिन के दुधमुहे बच्चे थे। इधर अमेठी में उपचुनाव कराना पड़ा और इंदिरा गांधी के बड़े पुत्र राजीव गांधी नए सांसद चुने गए। बाद में पारिवारिक वजहों से मेनका गांधी परिवार से अलग हो गईं और 1981-82 में उन्होंने संजय मंच का दिल्ली में गठन किया। 

विपरित परिस्थितियों में राजीव गांधी के खिलाफ लड़ीं चुनाव

गांधी परिवार से अलग होने के बाद मेनका के सामने खुद को स्थापित करने की चुनौती थी। वह अपने पति की कर्मभूमि को ही अपना घर बनाना चाहती थीं। स्थानीय राजनीति के जानकार व वरिष्ठ अधिवक्ता राजखन्ना बताते हैं कि वह वक्त मेनका के लिए बेेेेहद चुनौतीपूर्ण था। उन्हें वरुण गांधी को भी संभालना था और खुद को मजबूत करना था। 18 सितंबर 1982 को वह अमेठी के गौरीगंज आईं और वहां डाक बंगले में रुकीं। उनके साथ बाहरी लोगों की बड़ी टीम थी। स्थानीय लोग भी साथ थे।

वह 1982 से 84 तक अमेठी-सुलतानपुर में बेहद सक्रिय रहीं। संजय गांधी की पत्नी होने के नाते उन्हें जिलेवासियों से काफी सहानुभूति मिल रही थी, लेकिन इसी बीच 31 अक्टूबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हो गई। उसके कुछ समय बाद लोकसभा चुनाव की घोषणा हो गई। ऐसे में ज्यादातर लोगों की सहानुभूति राजीव गांधी के पक्ष में हो गई। विपक्ष ने मेनका को समर्थन दिया और अपना कोई उम्मीदवार नहीं उतारा। बावजूद वह चुनाव हार गईं। 

देश की राजनीति की दिशा व दशा तय करने वाला था यह चुनाव 

1984 का यह चुनाव देश में गांधी परिवार की राजनीति की दिशा व दशा तय करने वाला था। यह भी तय होना था कि आगे चलकर किस गांधी परिवार का राजनीति में वर्चस्व स्थापित होगा। आखिरकार मेनका गांधी को भारी अंतर से राजीव गांधी से पराजित होना पड़ा। राज खन्ना बताते हैं कि उस दौरान संजय गांधी के ज्यादातर दोस्त राजीव गांधी के साथ हो चुके थे।

आजमगढ़ से संजय गांधी के मित्र अकबर अहमद व स्थानीय नेताओं में सुलतानपुर से वर्तमान भाजपा विधायक सूर्यभान स‍िंंह ही उनके करीबी रह गए थे। कांग्रेस ने उस समय सत्ता का भी जमकर दुरुपयोग किया। अमेठी में बूथ कैप्चर‍िंंग हुई। कई जगहों पर मेनका के साथ बदसलूकी भी हुई। चुनाव परिणाम आने के बाद मेनका हमेशा के लिए सुलतानपुर छोड़ गईं। यहीं से देश की राजनीति में दो गांंधी परिवार की सियासी राह भी अलग हो गई। 

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