खुराना ने अपनी ही पार्टी के खिलाफ ठोकी थी ताल, दिल्ली को मानते थे मंदिर और खुद को पुजारी

भारतीय जनता पार्टी को दिल्ली में स्थापित करने वाले मदन लाल खुराना का मन दिल्ली में ही बसता था। वे केंद्र में मंत्री बने हों या राजस्थान के राज्यपाल, दिल्ली की सियासत से दूरियां उन्हें कभी नहीं भायीं। साठ के दशक से साल 2000 तक जनसंघ हो या भाजपा उनका ही सिक्का चलता था। दिल्ली की सियासत में वे एक ब्रैंड के तौर पर पहचाने जाते थे।

ज्यादा बोलने की आदत के चलते उन्होंने पार्टी के अनुशासन की लक्ष्मण रेखा कई बार लांघी, लेकिन वे पार्टी की जरूरत भी बने रहे। उस दौर में पार्टी के सबसे कद्दावर नेता लालकृष्ण आडवाणी को ललकारने का साहस वे इसीलिए कर पाए। लेकिन दिल्ली को वे शायद पार्टी से ज्यादा प्यार करते थे। उन्होंने एक बार यहां तक कह दिया था कि दिल्ली उनका मंदिर है और वे इसके पुजारी। इसीलिए चंद महीनों में ही उन्होंने राज्यपाल पद को छोड़ दिया था। 

वक्त और सियासत कभी किसी के नहीं हुए। खुराना के साथ भी ऐसा ही हुआ। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पार्टी जब हाशिये पर चली गई तो उन्होंने अपनी मेहनत और लोकप्रियता से उसे शून्य से शिखर पर पहुंचाया। लेकिन जब अनुशासन की सीमा लांघने पर वह पार्टी से बाहर हुए और उमा भारती की भारतीय जन शक्ति पार्टी तले निकाय चुनावों में भाजपा के खिलाफ ही ताल ठोका तो वे एक भी सीट नहीं जीत पाए। खुराना ने हमेशा सीधी राजनीतिक लड़ाई लड़ी, उनके सामने हमेशा कांग्रेस रही, लेकिन जब अपनी ही पार्टी के खिलाफ मैदान पर उतरे, तो बात नहीं बन पाई।

2003 के विधानसभा चुनावों में हार के बाद दिल्ली भाजपा प्रमुख के पद से दे दिया था इस्तीफा

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ मदन लाल खुराना
 – नब्बे के दशक में ‘दिल्ली का शेर’ कहे जाने वाले खुराना ने दिल्ली में भाजपा को खड़ा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
– 20 अगस्त 2005 को उन्हें अनुशासनहीनता के कारण पार्टी से निकाल दिया गया था। खुराना अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री भी रहे थे। 
– वर्ष 2004 में उन्होंने सक्रिय राजनीति से खुद को अलग कर लिया था, लेकिन कुछ साल बाद राजनीति में फिर वापसी की थी। वह आरएसएस के भी सक्रिय सदस्य थे।
– दो महीने पहले ही खुराना के बड़े बेटे विमल खुराना का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था, वह 55 वर्ष के थे।
– 1947 में देश के बंटवारे के बाद उनका परिवार भारत आ गया था। तब खुराना मात्र 12 साल के थे। उनका परिवार दिल्ली के कीर्ति नगर के रिफ्यूजी कॉलोनी में रहता था। 

एक दशक तक खाली रहा बंगला…
साल 1993 में दिल्ली विधानसभा के नए सिरे से गठन और भाजपा की हुकूमत कायम होने के बाद पहले मुख्यमंत्री बने मदनलाल खुराना दिल्ली के शामनाथ मार्ग पर स्थित 33 नंबर बंगले मेें रहने आए। खुराना के हटने के बाद इस बंगले में कोई भी जाने को तैयार नहीं हुआ, लेकिन कांग्रेस राज में दिल्ली सरकार के मंत्री दीपचंद बंधु को यह बंगला आवंटित किया गया। वे यहां रह रहे थे तभी बीमार हुए और बीमारी से ही उनकी मौत हो गई। उनकी मौत के बाद दिल्ली सरकार के किसी मंत्री या अधिकारी ने इस बंगले में रहना तो दूर झांकना भी गवारा नहीं समझा। इसका असर यह हुआ कि शामनाथ मार्ग का 33 नंबर का यह बंगला 2003 से 2013 के बीच करीब एक दशक तक खाली रहा। इसके बाद आम आदमी पार्टी की सरकार में अरविंद केजरीवाल के करीबी दिल्ली डायलॉग कमीशन के उपाध्यक्ष आशीष खेतान 2015 में रहने आए। ये भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। 

ताकतवर मुख्यमंत्री थे खुराना 
भाजपा नेता व पूर्व विधायक रामवीर सिंह बिधूड़ी बताते हैं कि खुराना बेहद ताकतवर मुख्यमंत्री थे। पार्टी में उनकी जबरदस्त धाक थी और उनके पद से हटने की कोई गुंजाइश नहीं थी, लेकिन अचानक हवाला डायरी का मामला सामने आया और उन्हें पद छोड़ना पड़ा।

जीवन परिचय

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के साथ मदन लाल खुराना
मदन लाल खुराना
जन्म- 15 अक्तूबर 1936 लालयपुर, पश्चिमी पंजाब (अब पाकिस्तान में)
पिता- एसडी खुराना
माता-लक्ष्मी देवी
पत्नी राज खुराना (17 सितंबर 1961 में शादी)
शिक्षा -एमए, बीएड, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, गांधी स्मारक कॉलेज श्रीनगर और दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज से पढ़ाई।

राजनीतिक जीवन
1989  सदस्य, 9वीं लोकसभा
1991 सदस्य 10वीं लोकसभा
1998 सदस्य 12वीं लोकसभा
1999 से 23.10.2003  सदस्य 13वीं लोकसभा
1993 से 1996 दिल्ली के मुख्यमंत्री

जिम्मेदारी जो उन्हें मिली
1965-67 महासचिव, भारतीय जनसंघ, दिल्ली
1966-89 सदस्य, दिल्ली मेट्रोपॉलिटन काउंसिल
1975-77 महासचिव, भारतीय जनसंघ, दिल्ली
1977-80 सभासद, नागरिक आपूर्ति, स्वास्थ्य, उद्योग, ऊर्जा विभाग प्रभारी
1980-86 महासचिव, भारतीय जनसंघ, दिल्ली
1983-85 चेयरमैन, सरकारी आश्वासन समिति, दिल्ली मेट्रोपॉलिटन काउंसिल
1986   भाजपा प्रदेश अध्यक्ष, दिल्ली
1990   सदस्य, शहरी विकास मंत्रालय की परामर्श समिति
1998-99 केंद्रीय मंत्री, संसदीय मामले, पयर्टन का अतिरिक्त प्रभार
1999  भाजपा उपाध्यक्ष 
1999-2000 ग्रामीण एवं शहरी विकास समिति के सदस्य
2004  राजस्थान के राज्यपाल (14 जनवरी से 01 नवंबर तक)

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