बिहार में जोकीहाट उपचुनाव करेगा मुस्लिम सियासत की दिशा तय, जानें पूरी बात

पटना। कर्नाटक में विजय-पराजय के जश्न और मायूसी के बाद जोकीहाट विधानसभा उपचुनाव में 28 मई को दोनों गठबंधनों की पहली कठिन परीक्षा है। क्षेत्र की 70 फीसद आबादी मुस्लिम है। ऐसे में दोनों खेमों ने उम्मीदवारों का चयन भी उसी हिसाब से किया है। राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी ने गौसुल आजम पर दांव लगाया है। कुल नौ उम्मीदवारों में एक हिन्दू प्रसेनजीत कृष्ण ने यह जानते हुए भी जोखिम लिया है कि 1967 में इस विधानसभा क्षेत्र के गठन से अबतक यहां से मुस्लिम ही विधायक बनते आए हैं।बिहार में जोकीहाट उपचुनाव करेगा मुस्लिम सियासत की दिशा तय, जानें पूरी बात

एक ही परिवार का रहा दबदबा

अररिया जिले की इस सीट का चुनावी इतिहास दिलचस्प है। क्षेत्र के गठन से अबतक कुल 14 बार चुनाव हुए हैं, जिनमें नौ बार सिर्फ एक परिवार का कब्जा रहा है। पांच बार पिता और चार बार पुत्र का। दोनों ने पार्टी बदलकर भी सीट पर कब्जा बरकरार रखा। चार बार तस्लीमुद्दीन और दो बार उनके पुत्र सरफराज ने पार्टी बदली। अबकी राजद से तस्लीमुद्दीन के छोटे पुत्र शाहनवाज प्रत्याशी हैं।

मुकाबला ‘माय’ समीकरण और न्याय के साथ विकास में

माय (मुस्‍लिम-सादव) समीकरण के प्रभावी रहने के बावजूद इस सीट पर पिछले चार बार से जदयू का कब्जा है। चार लगातार जीत से जदयू प्रत्याशी मुर्शीद आलम के हौसले बुलंद हैं तो पिता के प्रताप के बल पर राजद प्रत्याशी भी जीत के प्रति आश्वस्त हैं। जाहिर है, दोनों गठबंधनों में कांटे की टक्कर है, जिसमें पप्पू यादव की पार्टी पेंच फंसा रही है। तस्वीर साफ है कि माय समीकरण और न्याय के साथ विकास में प्रतिद्वंद्विता है।

नतीजे के दूरगामी असर तय

जोकीहाट के नतीजे के दूरगामी असर से दोनों गठबंधन पूरी तरह परिचित हैं। यही कारण है कि यहां मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एवं नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने भी कई सभाओं को संबोधित किया। पप्पू यादव समेत कई अन्य नेताओं ने तो डेरा ही डाल रखा था। यहां के नतीजे से यह भी साफ हो जाएगा कि मुस्लिम मतदाताओं में जदयू की पैठ बढ़ेगी या राजद की। जदयू अगर जीत गया तो राजद को माय समीकरण की हिफाजत के लिए नए सिरे प्रयास करना होगा।

नीतीश की नीतियों से तेजस्वी परेशान

आम धारणा है कि मुस्लिम मतदाता राजद के साथ खड़े रहते हैं, लेकिन नीतीश कुमार की नीतियों ने तेजस्वी को परेशान कर रखा है। वे जदयू की चार बार की जीत के सिलसिले को ब्रेक करना चाहते हैं, ताकि उनका माय समीकरण मजबूत रहे। सबसे बड़ी पार्टी के रूप में प्रदर्शन भी बरकरार रहे।

राजद से बड़ी जदयू की चुनौती

जदयू की चुनौती राजद से भी बड़ी है। जीत का क्रम बरकरार रखते हुए उसे मुस्लिम मतों में विभाजन का संदेश देना है। हाल के दिनों में नीतीश सरकार ने मुस्लिमों के पक्ष में कई बड़े फैसले लिए। पटना में ‘दीन बचाओ सम्मेलन’ से जदयू को ऊर्जा मिली है। खुर्शीद अनवर को विधान परिषद का सदस्य बनाकर नीतीश ने साफ कर दिया है कि मुस्लिम मतों पर सिर्फ राजद का एकाधिकार नहीं हो सकता।

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