मोदी के गुजरात में हलचल, आनंदीबेन की जगह लेंगे शाह?

एजेंसी/ msid-52600012,width-400,resizemode-4,shah_modi_anandibenअगर चेहरे कहानी कहते हैं तो दो साल पहले आनंदीबेन पटेल की किस्मत उसी दिन तय हो गई थी जिस दिन उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। वहां मौजूद लोगों में से शायद ही कोई ऐसा था जिसके चेहरे पर उत्साह दिख रहा था। यहां तक कि उनके वफादार भी इस बात को लेकर चिंतित थे कि आनंदीबेन पटेल कद्दावर शख्सियत वाले नरेंद्र मोदी की खाली की गई जगह की कैसे भरपाई कर पाएंगी।

गुजरात को BJP का गढ़ कहा जाता रहा है लेकिन अब पार्टी की राज्य इकाई में दरारें उभरती हुई दिख सकती हैं। आनंदीबेन पटेल के पूर्व BJP सहयोगी और अब विपक्ष के नेता शंकर सिंह वाघेला इसे कुछ यूं समझाते हैं, ‘बहन अच्छी है पर चलेंगी नहीं।’ राज्य BJP के कार्यकर्ता निजी बातचीत में यह मानते हैं कि मोदी के करीबी होने के अलावा उनके पक्ष में और कुछ नहीं है।

इतना ही काफी नहीं था कि राज्य के राजनीतिक ढांचे के दो ताकतवर हिस्से आनंदीबेन पटेल के कंट्रोल से बाहर हो गए हैं। पहला राज्य की नौकरशाही और दूसरा संघ परिवार। एक ओर जहां नौकरशाही पुराने ढर्रे पर लौट आई है, वहीं मोदी के शासन में दरकिनार कर दिए गए संघ परिवार के संगठन अपने अजेंडे के साथ फिर से सड़कों पर वापस लौट आए हैं।

प्रवीण तोगड़िया एक बार फिर से सुर्खियों में आने लगे लगे हैं और संघ परिवार के पुनर्जीवित होने को लेकर सारे संदेह उसी समय खत्म हो गए जब मोदी और अमित शाह के भरोसेमंद विजय रूपानी को पहले मंत्री बनाया गया और फिर पार्टी की राज्य इकाई की कमान सौंपी गई। इसके बाद पाटीदारों का विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ जिसने आनंदीबेन पटेल और BJP के वर्चस्व को चुनौती दी।

कभी गुजरात में BJP की सबसे बड़ी ताकत रहे ताकतवर पटेल समुदाय के सड़कों पर उतरने से पार्टी की जमीन खिसकती हुई दिख रही है। पिछले महीने सूरत में गौरव विकास यात्रा के दौरान पार्टी नेताओं पर अंडे फेंके गए। यह यात्रा केंद्र में मोदी सरकार के दो साल पूरे होने पर निकाली गई थी। पार्टी के सांसद दर्शन जरदोश पर भी अंडे फेंके गए।

आनंदीबेन पटेल की बेटी के विवादास्पद लैंड डील में नाम उछलना मुख्यमंत्री के राजनीतिक ताबूत की आखिरी कील साबित हो सकता है। तो क्या यह मान लिया जाए कि आनंदीबेन का समय खत्म हो गया है? BJP का एक बड़े तबके का मानना है कि इस बारे में कभी भी फैसला लिया जा सकता है। आनंदीबेन के पक्ष में केवल मोदी ही एकमात्र फैक्टर हैं।

पार्टी को करीब से जानने वाले लोगों को कहना है कि सबसे भरोसेमंद सहयोगी को हटाने का फैसला BJP के सबसे बड़े नेता के लिए हार स्वीकार करने जैसा होगा जो वास्तव में मोदी की राजनीतिक शैली को सूट नहीं करता है। सूत्रों का कहना है कि आनंदीबेन पटेल इस नवंबर में 75 साल की हो जाएंगी और इस मौके पर उन्हें किसी बड़े राज्य का राज्यपाल बनाया जा सकता है। पार्टी के एक नेता कहते हैं, ‘इससे कम की उम्मीद करना समझदारी नहीं कही जाएगी।’

हालांकि इससे पार्टी के भीतर बढ़ते असंतोष पर शायद ही काबू पाया जा सकेगा। गुजरात में BJP को सत्ताविरोधी रुझान और मतदाताओं के असंतोष से रूबरू होना पड़ रहा है। पिछले साल के स्थानीय निकाय चुनाव में इसकी झलक देखने को मिल गई थी। एक और बड़ी चुनौती आनंदीबेन के उत्तराधिकारी को लेकर भी है।

जाहिर है, पहली पसंद अमित शाह हैं लेकिन नई दिल्ली में उनपर डाली गई जिम्मेदारियों के मद्देनजर उनका 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले अहमदाबाद जाना शायद ही मुमकिन हो। अमित शाह के बाद राज्य के स्वास्थ्य मंत्री नितिन भाई पटेल का नाम लिया जा रहा है हालांकि पाटीदार आंदोलन के दौरान उन्हें पटेल समुदाय का कोपभाजन बनना पड़ा था। राज्य सरकार ने नितिन पटेल को आंदोलनकारियों से वार्ता के लिए अधिकृत किया था।

BJP के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पुरुषोत्तम रुपाला भी चीफ मिनिस्टर पोस्ट के लिए रेस में हैं। उन्हें राज्यसभा लाया जा रहा है और खबरों के मुताबिक मोदी के अगले कैबिनेट विस्तार में उन्हें भी जगह मिल सकती है।

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