IRDA के प्रस्ताव से हेल्थ इंश्योरेंस के ग्राहकों को मिलेगी सहूलियत

इरडा की ओर से बनाई गई एक कमिटी ने हेल्थ इंश्योरेंस एक्सक्लूजन रूल्स में कई बदलाव किए हैं। इन बदलावों से पॉलिसीहोल्डर्स के लिए कवरेज बेहतर हो जाएगी, बता रही हैं प्रीति कुलकर्णी। IRDA के प्रस्ताव से हेल्थ इंश्योरेंस के ग्राहकों को मिलेगी सहूलियत

लाइफस्टाइल से जुड़े रोगों के लिए छोटा वेटिंग पीरियड 

अब बीमा कंपनियां हाइपरटेंशन, डायबिटीज और कार्डियक बीमारियों से पीड़ित लोगों के लिए एक से चार साल तक का वेटिंग पीरियड नहीं रख सकेंगी। वेटिंग पीरियड वह समय होता है, जिसके दौरान आप किसी बीमारी के लिए बेनेफिट क्लेम नहीं कर सकते। कमेटी ने वेटिंग पीरियड की अधिकतम अवधि 30 दिन करने की सिफारिश की है, बशर्ते ये बीमारियां पॉलिसी लेने से पहले की न हों। 

8 रिन्यूअल्स के बाद क्लेम पर सवाल नहीं 
पैनल ने सुझाव दिया है कि लगातार आठ साल रिन्यूअल हो चुका हो तो बीमा कंपनियां इस आधार पर किसी क्लेम पर सवाल नहीं कर सकतीं कि पहली पॉलिसी लेते वक्त कोई बात नहीं बताई गई थी। हालांकि फ्रॉड का मामला हो तो यह नियम लागू नहीं होगा। इससे पॉलिसीधारकों की यह चिंता दूर होगी कि वर्षों तक समय पर प्रीमियम चुकाने के बावजूद उनके क्लेम खारिज किए जा सकते हैं। हालांकि पॉलिसी पर सभी तरह की सब-लिमिट्स, को-पेमेंट क्लॉज और डिडक्टिबल्स लागू होंगे, जो पॉलिसी कॉन्ट्रैक्ट में लिखे गए हों। 

पॉलिसी लेने के बाद हुए रोगों का अनिवार्य कवरेज 
कमिटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि पॉलिसी जारी होने के बाद हर तरह की हेल्थ कंडीशंस को पॉलिसी के तहत कवर किया जाना चाहिए और इन्हें स्थायी रूप से खारिज नहीं किया जा सकता है। हालांकि पॉलिसी कॉन्ट्रैक्ट में जिन बीमारियों (मसलन, इनफर्टिलिटी और मैटरनिटी आदि) का जिक्र नहीं किया गया हो, वे इस नियम के दायरे में नहीं आएंगी। इसमें कहा गया है कि अलजाइमर रोग, पर्किंसंस रोग, एड्स/एचआईपी और मॉर्बिड ओबेसिटी जैसी बीमारियों को कवरेज के दायरे से बाहर करने की इजाजत नहीं होनी चाहिए। 

पहले से मौजूद रोगों की स्पष्ट परिभाषा 

कमेटी ने सिफारिश की है कि व्याख्या को लेकर विवाद से बचने के लिए पहले से हो चुके रोगों की सरल परिभाषा दी जानी चाहिए। जिस तरह की परिभाषा का सुझाव दिया गया है, उसके मुताबिक कोई भी ऐसी स्थिति, बीमारी या चोट जिसका पता पहली पॉलिसी खरीदने से पहले चल चुका हो, जिसके लिए किसी फिजिशियन से मेडिकल एडवाइस या ट्रीटमेंट ली गई हो। 

इसके अलावा, रिपोर्ट में पहले से मौजूद रोगों का पता बाद में चलने की सूरत में बीमा कंपनियों के लिए कुछ विकल्प दिए गए हैं। रॉयल सुंदरम जनरल इंश्योरेंस के चीफ प्रॉडक्ट ऑफिसर, प्रॉडक्ट फैक्टरी (हेल्थ इंश्योरेंस) निखिल आप्टे ने कहा, ‘बीमा कंपनी नॉन-डिस्कलोजर के आधार पर पॉलिसी रद्द करने के बजाय ऐसी बीमारियों के लिए एक वेटिंग पीरियड तय कर सकती है।’ हालांकि यह विकल्प कमिटी की ओर से सुझाए गए मॉरेटोरियम पीरियड के दौरान ही उपलब्ध होगा। 

गंभीर हालत वालों के लिए कवरेज 
कैंसर रोगियों, मिर्गी के मरीजों और शारीरिक अपंगता वाले लोगों को प्राय: उनकी सेहत की हालत के आधार पर कवरेज देने से मना कर दिया जात है, यहां तक कि ऐसी बीमारियों के लिए भी, जिनका इन रोगों से कोई संबंध नहीं हो। कमिटी ने अब सुझाव दिया है कि बीमा कंपनियों को ऐसे लोगों को भी हेल्थ कवर देना चाहिए और इसमें यह शर्त रखी जा सकती है कि पहले से मौजूद कुछ खास रोग पॉलिसी की अवधि में कवर नहीं किए जाएंगे। रिपोर्ट में 17 ऐसी स्थितियों का जिक्र किया गया है, जो इस क्लॉज के तहत आएंगी। 

इनमें कंजेनाइटल और वॉल्वलर हार्ट डिजीज, लिवर और किडनी की गंभीर बीमारियां, एचआईवी/एड्स, मिर्गी जैसी बीमारियों का जिक्र है। उदाहरण के लिए, अगर किसी को दिल से जुड़ी बीमारी हो तो बीमा कंपनी हो सकता है कि घुटने के प्रत्यारोपण सरीखी बिल्कुल ही असंबद्ध प्रक्रिया के लिए भी कवर न दे। अगर कमेटी का यह सुझाव मान लिया गया तो लोग ऐसी पॉलिसी खरीद सकेंगे जो दिल की बीमारियों को कवर न करती हो, लेकिन उसका उपयोग नी रिप्लेसमेंट सर्जरी में किया जा सकता हो। 

उपचार की उन्नत प्रक्रिया का कवरेज 
रेग्युलेटर ने एक हेल्थ टेक्नॉलजी असेसमेंट कमिटी बनाने का प्रस्ताव रखा है। यह कमिटी भारतीय बाजार में पेश की जाने वाली उपचार की अत्याधुनिक प्रक्रियाओं और दवाओं को शामिल करने के बारे में सलाह देगी। कवरफॉक्सडॉटकॉम के डायरेक्टर, हेल्थ (लाइफ एंड स्ट्रैटेजिक इनीशिएटिव्स) महावीर चोपड़ा ने कहा, ‘यह एक सेल्फ रेग्युलेटरी बॉडी की तरह काम करेगी। पॉलिसीहोल्डर रुपये-पैसे के असर की चिंता किए बिना उन्नत तरीकों से उपचार करा सकेंगे।’ 

कमेटी की ओर से दी गई लिस्ट में शामिल किसी भी प्रोसिजर को बीमा कंपनियां पॉलिसी कवरेज से बाहर नहीं कर पाएंगी। कमिटी हर साल लिस्ट में शामिल प्रोसिजर्स की समीक्षा करेगी। इरडा की समिति ने यह सुझाव भी दिया है कि बीमा कंपनियां ओरल कीमोथेरेपी और पेरिटोनियल डायलिसिस के क्लेम्स खारिज न करें। 

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