GST के दुसरे साल में भूषण पांडे ने ये बड़े बदलाव करने बताई बात

भारत के एतिहासिक टैक्स सुधारों में से एक ‘गूड्स एंड सर्विसेज़ टैक्स’(जीएसटी) ठीक एक साल पहले लागू हुआ था. 30 जून 2017 की आधी रात को प्रधानमंत्री मोदी ने जीएसटी लागू किया था और अब केंद्र सरकार इसे चार साल की अपनी सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक मानती है.GST के दुसरे साल में भूषण पांडे ने ये बड़े बदलाव करने बताई बात

जीएसटी लागू होने के एक साल पूरा होने पर जीएसटी नेटवर्क के चेयरमैन अजय भूषण पांडे ने कहा कि दूसरे वर्ष में जीएसटी की प्रक्रिया को आसान बनाने की दिशा में काम किया जाएगा. उन्होंने बताया कि केंद्र जीएसटी रिटर्न भरने के लिए भी इनकम टैक्स रिटर्न की तरह ही एक फॉर्म लेकर आएगा. इसके साथ ही जीएसटी काउंसिल ने जीएसटी नेटवर्क को राज्य स्वामित्व वाली इकाई बनाने की मंजूरी भी दे दी है.

जीएसटी का पहला साल हमारे देश के लिए बहुत बड़ा बदलाव लेकर आया. एक बड़ा कर सुधार लागू किया गया और एक साल के भीतर यह स्थिर भी हो गया है जो काफी अहम बात है. अगर आप जीएसटी से पहले की स्थिति पर ध्यान दें तो तब 35 राज्य और केंद्रशासित प्रदेश थे, जिनमें से प्रत्येक का अपनी वैट (वैल्यू एडेड टैक्स) सिस्टम, अपने कानून, अपनी पंजीकरण प्रणाली, रिटर्न दाखिल करने की प्रणाली और यहां तक कि आईटी सिस्टम भी अलग था.

प्रत्येक राज्य में केंद्रीय उत्पाद शुल्क और सेवा कर भी थे. हमने 37 विभिन्न प्रकार के टैक्स को मिलाकर एक सिस्टम बनाया जो वास्तव में एक राष्ट्र, एक कर और फिर एक प्रणाली बन गया.

जीएसटी लागू होने के बाद करदाताओं की संख्या में 63-64 लाख की वृद्धि हुई है. आज हमारे सिस्टम में एक करोड़ 13 लाख टैक्स पेयर्स रजिस्टर्ड हैं, जो सभी एक कानून, एक सिस्टम, एक इंटरफेस और एक फॉर्म के तहत आते हैं. तो जीएसटी के माध्यम से बड़े बदवाल की कोशिश की गई है जो हमारे देश के लिए गर्व और संतुष्टि का विषय है कि हम एक साल में ऐसा कर सके. संघीय ढांचा होने के बाद भी इतने बड़े देश में ऐसा टैक्स सुधार, मुझे नहीं लगता है कि दुनिया में पहले कहीं ऐसा प्रयास हुआ होगा.

क्या कोई देश भारत द्वारा अपनाए गए जीएसटी मॉडल को अपनाना चाहता है?
विचारों के आदान-प्रदान के लिए कुछ हाई-प्रोफाइल मीटिंग हुई हैं. कई देशों ने हमारे मॉडल की तारीफ की है, लेकिन मॉडल को अपनाने के लिए अभी तक किसी भी देश ने औपचारिक रुचि व्यक्त नहीं की है.

यह आरोप लग रहा है कि इनपुट टैक्स क्रेडिट का उपयोग टैक्स से बचने के लिए किया जा रहा है. क्या आप इसे दूर करने के लिए सूचना-प्रौद्यौगिकी का सहारा लेने की सोच रहे हैं?
जीएसटी के बारे में अच्छी बात यह है कि इसमें हर खरीद और बिक्री की जानकारी सिस्टम में उपलब्ध रहती है, अगर कोई भी चेन को तोड़ने की कोशिश करता है तो उसे ट्रैक किया जा सकता है. जीएसटी से पहले इसका पता लगाना बहुत मुश्किल था, तब का सिस्टम न तो पूरी तरह से डिजिटल था और न ही आपस में जुड़ा हुआ था. हर राज्य की अलग प्रणाली थी, इसलिए सूचनाओं को साझा करने का कोई रास्ता नहीं था. अब सिस्टम ऐसा है, किसी को तभी इनपुट क्रेडिट मिलेगा जब एक विक्रेता बिक्री चालान अपलोड करेगा. अगर बिक्री चालान अपलोड किए बिना कोई इनपुट क्रेडिट लेता है तो उसे पहचानना बहुत आसान होगा. इस प्रणाली को बेहतर बनाने के लिए उपयुक्त डेटा एनालिटिक्स और अन्य आईटी उपकरण की जरूरत है.

यह कई दोषी करदाताओं को रोक देगा और ईमानदार करदाताओं को प्रोत्साहित करेगा. जो लोग टैक्स नहीं देते हैं, वे भी महसूस करेंगे कि लंबे वक्त तक छिपे रहना मुश्किल है और जल्द ही इसमें शामिल हो जाएंगे.

जो टैक्स नहीं देते क्या आपके पास उनकी अनुमानित संख्या है?
नहीं, मैं ऐसा कोई अनुमान नहीं लगाऊंगा, क्योंकि आप जानते हैं कि मैं ऐसा नहीं कर सकता. यह जमीनी स्तर पर काम कर रहे अधिकारियों या उचित सर्वेक्षणों द्वारा किया जाना चाहिए. जहां तक जीएसटी का सवाल है तो हमारे लिए उचित नहीं है कि हम इस तरह का अनुमान लगाएं क्योंकि यह हमारा काम नहीं है.

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क्या इस बात की संभावना है कि नया जीएसटी-आर फॉर्म लाया जाएगा? अगर हां तो यह किस तरह का होगा?
हां, जैसा कि आपको याद होगा, जब जीएसटी की शुरुआत हुई थी तब हमारे पास जीएसटी 1, 2 और 3 सिस्टम था, कुछ कठिनाइयों की वजह से जीएसटी 1, 2 को रोक दिया गया, जीएसटी-आर 3बी पेश किया गया. नवंबर में जीएसटी परिषद ने जीएसटी 1, 2, 3 और 3बी के स्थान पर जीएसटीआर फॉर्म पर काम करने लिए मीटिंग रखी थी.

परिषद ने हमे एक फॉर्म पर काम करने के लिए कहा जो कि आसान होना चाहिए. फॉर्म का डिजाइन तैयार किया जा चुका है और इसे जीएसटी काउंसिल कि अंतिम मीटिंग में मंजूरी भी मिल गई, अब इसे लागू करने की दिशा में काम किया जा रहा है, इसे लागू करने के लिए नियम और कानून में कुछ बदलावों की आवश्यकता होगी. इसके लिए आईटी सिस्टम में भी बदलवाव की जरूरत होगी.

जीएसटी परिषद ने इसके लिए हमें छह महीने का वक्त दिया है, उम्मीद है हम इतने वक्त में ऐसा कर लेंगे.

नए परिवर्तन व्यापक रूप से वैसे ही होंगे जैसे कि लोग चाहते हैं लेकिन इसमें जीएसटी 1, 2 और 3 जैसा कुछ नहीं होगा, जिसमें एक सूचना एक डीलर से दूसरे डीलर तक जाने के बाद आगे बढ़ती है.

इसका प्रवाह यूनिडायरेक्शनल होगा. विक्रेता इसमें अपनी बिक्री का विवरण दर्ज करेंगे और उन्हें खरीद का विवरण दर्ज करने की जरूरत नहीं होगी. जो एक विक्रता के लिए बिक्री है वह दूसरे के लिए खरीद है. खरीरददार को विक्रेता द्वारा अपलोड किए गए चालान के आधार पर इनपुट टैक्स क्रेडिट मिलेगा.

मैं कहूंगा कि यह टीडीएस और आयकर के समान है.

जीएसटी नेटवर्क को राज्य स्वामित्व वाली इकाई बनाने के आप कितने करीब हैं?
जीएसटी परिषद की पिछली बैठक में इस प्रस्ताव को मंजूरी मिली थी कि जीएसटी नेटवर्क 100 प्रतिशत सरकारी स्वामित्व वाला होना चाहिए, जिसमें केंद्र और राज्य सरकार का हिस्सा होगा. इस दिशा में काम किया जा रहा है. गैर-सरकारी इकाई द्वारा सरकारी इकाई को शेयर ट्रांसफर किए जा रहे हैं.

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जीएसटी को लेकर आने वाले साल में क्या बड़ी योजना है?

हमारी प्रणाली स्थिर हो चुकी है और अब हम जीएसटी को आसान बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं. जैसा कि मैंने बताया इसके लिए हम एक फॉर्म लेकर आ रहे हैं. हम इसे जितना हो सके उतना आसान बनाने की कोशिश करेंगे. छोटे डीलर्स को पूरा फॉर्म नहीं भरना होगा, उन्हें फॉर्म के कुछ ही हिस्सों को भरना होगा. यह एक इंटरेक्टिव फॉर्म की तरह होगा जिसमें केवल जरूरी सवाल ही पूछे जाएंगे जो कि इस बात पर आधारित होंगे कि पूरा रिटर्न भरा गया है या नहीं.

हम इस बात पर भी काम कर रहे हैं कि विक्रेता अपने चालान को कब अपलोड करते हैं, महीने के अंत में इसके आधार पर रिटर्न का मसौदा का तैयार किया जा सकता है. यह दूसरी योजना है जिसपर हम काम कर रहे हैं. हमारी एक और योजना छोटे व्यापारियों के लिए एक सॉफ्टवेयर बनाने की है जिसका उपयोग कर वह रिटर्न दाखिल करने में कर सकें.

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