हज यात्रा में सिर्फ 60 हजार लोगों को दी गई अनुमति, लाखों की संख्या हजारों में बदली..

सऊदी अरब में मुस्लिम तीर्थयात्रियों ने अपनी हज यात्रा के दौरान “शैतान को पत्थर मारने” की पारंपरिक प्रथा में हिस्सा लिया। ये साल की हज यात्रा की प्रमुख प्रथा थी, जिसे सख्त कोरोना प्रतिबंधों के बीच संपन्न कराया गया। दिन की शुरुआत के साथ ही तीर्थयात्रियों के छोटे समूहों ने जमरा अल-अकाबा मस्जिद में शैतान को प्रतीकात्मक रूप को पत्थर मारने के लिए पश्चिमी सऊदी अरब में मक्का के पास मीना की घाटी के तरफ रुख करना शुरू कर दिया था।

प्रतिबंधों के बीच हज यात्रा

इस दौरान सभी तीर्थ यात्रियों ने मास्क पहना हुआ था, साथ ही सभी सफेद पोशाकों में नजर आ रहे थे। सभी को सील बैग में अधिकारियों द्वारा पारंपरिक प्रथा के पत्थर दिए गए थे। जिन्हें पहले से सैनेटाइज किया गया था। गौरतलब है की, पत्थर मारने की प्रथा के दौरान बीते वर्षों में भगदड़ की घटनाएं हुई हैं। जिसको लेकर इस बार खास सतर्कता बरती गई।

लाखों की संख्या हजारों में बदली

वैश्विक महामारी के कारण हज यात्रा के दौरान बहुत ही कम लोगों को अनुमति दी गई थी। इस साल सिर्फ उन 60हजार लोगों को अनुमति दी गई थी, जिनका पूरी तरह से टीकाकरण हो चुकी है। सऊदी के स्वास्थ्य मंत्री तौफीक अल रबिया ने बताया की, शुरुआत से हमारी प्राथमिकता तीर्थयात्रियों की सुरक्षा की रही है और इस कारण से हमने उनकी संख्या को 60हजार तक ही सीमित करने का फैसला किया है। ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि सावधानी बरती जाए और हर कोई सुरक्षित रहे। साथ ही उन्होंने कहा की, हम लगातार स्थिति की निगरानी कर रहे हैं, तीर्थयात्रियों के बीच अब तक कोरोनावायरस के एक भी मामले का पता नहीं चला है।

इस्लाम में हज यात्रा का खास महत्व

आपको बता दें, हज इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है और सभी सक्षम मुसलमानों के लिए अपने जीवनकाल में यहां कम से कम एक बार आना जरूरी है। 2019 में हज यात्रा पर आने वालों की संख्या करीब 25 लाख थी। ये दुनिया की सबसे बड़ी धार्मिक सभाओं में से एक है। हज यात्रा की मेजबानी करना सऊदी शासकों के लिए प्रतिष्ठा का विषय है। साथ ही इस्लाम के सबसे पवित्र स्थल की संरक्षकता उनके लिए गर्व की बात है।

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