…तो शायद इसलिए सरकार नहीं घटा रही है तेल की कीमत

पेट्रोल और डीज़ल की क़ीमतें पिछले चार सालों में इतनी अधिक कभी नहीं रहीं तो उसकी सबसे बड़ी वजह है तेल की क़ीमतों पर लगाया गया सरकारी टैक्स. सरकार पर पेट्रोल और डीज़ल की क़ीमतें घटाने का दबाव है, क़ीमतें बढ़ने की दो वजहें बताई जा रही हैं–कच्चे तेल की बढ़ती क़ीमत और डॉलर के मुक़ाबले कमज़ोर होता रुपया, लेकिन ऊँची क़ीमत की सबसे बड़ी वजह इस पर लगाया जाने वाला सरकारी टैक्स ही है. दिल्ली में बुधवार को एक लीटर पेट्रोल की कीमत 77.17 रुपये है जिसमें टैक्स का हिस्सा 35.89 रुपये का है. यानी ग्राहकों तक पहुंचते-पहुंचते पेट्रोल की क़ीमत में 95 फ़ीसदी टैक्स (मूल क़ीमत का) जुड़ जाता है....तो शायद इसलिए सरकार नहीं घटा रही है तेल की कीमत

कैसे तय होती है कच्चे तेल की क़ीमत?

बुधवार को कच्चे तेल की कीमत 86.29 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई. यानी रुपये (67.45) के संदर्भ में एक बैरल कच्चे तेल की कीमत 5,820 रुपये हुई. अब एक बैरल में 159 लीटर होता है. तो प्रति लीटर कच्चे तेल की कीमत 36.60 रुपये हुई.

अब तेल की ख़रीद के बाद भारत लाने में ढुलाई देना होता है, फिर भारतीय तटों से इसे (आईओसी, बीपीसीएल जैसी कंपनियों की) रिफाइनरी में पहुंचाने में खर्च होता है. इसके बाद कंपनी इसे प्रोसेस करने के बाद पेट्रोल, डीजल की शक्ल में डीलर्स (पेट्रोल पंप) तक पहुंचाती है. जहां इन पर केंद्र सरकार एक्साइज ड्यूटी और डीलर अपना कमीशन जोड़ते हैं जबकि राज्य सरकारें वैट लगाती हैं.

फिलहाल डीलर के पास पहुंचने पर पेट्रोल की कीमत करीब 37.65 रुपये प्रति लीटर होती है जिसपर केंद्र सरकार 19.48 रुपये एक्साइज़ ड्यूटी लगाती है और डीलर अपना कमीशन (दिल्ली में 3.63 रुपये) जोड़ते हैं, फिर राज्य सरकारें वैट (महाराष्ट्र में वैट 46.52%, केरल में यह 34% और गोवा में 17%) लगाती हैं.

दिल्ली में पेट्रोल की कीमत पर 23 मई को 16.41 रुपये वैट लगाया गया. इस प्रकार जिस कीमत पर ग्राहक पेट्रोल ख़रीदते हैं उस पर उन्हें करीब 95 फ़ीसदी टैक्स देना पड़ रहा है. निश्चित ही कच्चे तेल की कीमतों में पिछले कुछ दिनों में इजाफा हुआ है और पिछले केवल दस दिनों में 2.54 रुपये के इजाफ़े के साथ पेट्रोल पिछले चार साल के अपने सबसे महंगे स्तर पर जा पहुंचा है.

जून 2010 में पेट्रोल और अक्तूबर 2014 में डीजल के डीरेग्यूलेट होने के बाद महीने में दो बार कीमतें बदला करती थीं, लेकिन 16 जून 2017 से देश में पेट्रोल और डीज़ल की कीमतें रोज़ाना बदलती हैं. लेकिन कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले पहली बार 20 दिनों के लिए इसके रोजाना बदले जाने पर रोक लगा दी गई और 20 दिनों (25 अप्रैल से 13 मई) तक इसमें कोई बदलाव नहीं आया और जब इसे हटाया गया तो ईंधन की कीमतें अपने रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गईं.

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तेल का अंतरराष्ट्रीय बाज़ार

सरकार अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमतों में उछाल को देश में पेट्रोल की बढ़ती क़ीमतों की वजह बता रही है. इसके अलावा डॉलर की तुलना में रुपये की क़ीमत अपने 16 महीने के सबसे न्यूनतम स्तर (67.97) पर है और यह भी तेल ख़रीद की क़ीमतों पर असर डाल रहा है. लेकिन इसके बावजूद पूरे देश में पेट्रोल और डीज़ल पर केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से लगाए जाने वाला भारी-भरकम टैक्स इसकी इतनी अधिक कीमत के पीछे की सबसे बड़ी वजह है. तेल मामलों के जानकार नरेंद्र तनेजा और भाजपा प्रवक्ता कहते हैं कि जितनी तेल की कीमत होती है लगभग उतना ही टैक्स भी लगता है.

वो बताते हैं, “कच्चा तेल ख़रीदने के बाद रिफ़ाइनरी में लाया जाता है और जब वहां के गेट से यह पेट्रोल और डीजल की शक्ल में निकलता है उसके बाद उस पर टैक्स लगना शुरू होता है. पहला एक्साइज़ टैक्स केंद्र सरकार लगाती है.” “इसके बाद जिस राज्य में वो ट्रक जा रहा है वहां की सरकार उस पर अपना टैक्स लगाती हैं. इसे सेल्स टैक्स या वैट कहा जाता है. इसके साथ ही पेट्रोल पंप का डीलर उस पर अपना कमीशन जोड़ता है. अगर आप केंद्र और राज्य के टैक्स को जोड़ दें तो यह लगभग पेट्रोल या डीजल की वास्तविक कीमत के बराबर होती है. यानी क़रीब करीब 100 फ़ीसदी टैक्स लग जाता है.”

जीएसटी के दायरे में लाने पर पेट्रोल सस्ता होगा?

पेट्रोल की लगातार बढ़ती कीमतों की वजह से अब इसे वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के दायरे में लाये जाने की मांग ने ज़ोर पकड़ लिया है. ग़ौरलतब है कि 2017 में लागू किए गए जीएसटी के दायरे से नैचुरल गैस, कच्चा तेल, पेट्रोल, डीज़ल और विमानों के तेल को बाहर रखा गया था. जीएसटी के दायरे में आने से पेट्रोल और डीजल दोनों की कीमतों में गिरावट आने की उम्‍मीद है क्‍योंकि केंद्र और राज्‍य सरकारों द्वारा वसूले जाने वाले अलग-अलग टैक्‍स की जगह जीएसटी की एक रेट इन पर लागू होगी.

विशेषज्ञों की मानें तो पेट्रोलियम उत्पादों पर अगर 18 फ़ीसदी जीएसटी लगाया जाता है तो दिल्‍ली में पेट्रोल की क़ीमत कम होकर 48.71 रुपये हो जाएगी. हालांकि इसके लिए केंद्र और राज्य दोनों सरकारों को तालमेल बनाते हुए और राजकोषीय घाटा सहते हुए कदम उठाना होगा. इसीलिए माना यह जा रहा है कि अगर इसे जीएसटी के दायरे में लाया जाएगा तो भी इसे अधिकतम 28 फ़ीसदी के स्लैब में ही रखा जाएगा. साथ ही केंद्र राज्यों को होने वाले घाटे की भरपाई के लिए कुछ सेस लगाने का अधिकार भी देगा. इन सबके बावजूद अगर पेट्रोल पर जीएसटी, 28 फ़ीसदी और दो फ़ीसदी सेस के साथ लगाया गया तो इसकी क़ीमतें दिल्ली में 54 रुपये के आस पास तो हो ही जाएंगी.

तेल की ख़रीद और अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियां

अपने ईंधन की ज़रूरतों की पूर्ति के लिए भारत को 80 फ़ीसदी कच्चा तेल आयात करना पड़ता है. अप्रैल 2018 में भारत ने 4.51 मिलियन बैरल कच्चे तेल की ख़रीदारी की है जो पिछले साल की तुलना में 2.5 फ़ीसदी अधिक है. भारत में पेट्रोल और डीज़ल के आयात का अधिकांश हिस्सा पश्चिम एशियाई देशों से आता है और वहां की वर्तमान स्थिति फिलहाल अस्थिर चल रही है. अब भारत जिन देशों से कच्चा तेल आयात करता है उनमें सबसे आगे इराक़ है, जिसने परंपरागत तौर पर भारत के सबसे बड़े सप्लायर सऊदी अरब को जनवरी-अप्रैल 2018 के दरम्यान दूसरे नंबर पर धकेल दिया है.

तीसरे स्थान पर ईरान है. अप्रैल में भारत ने वहां से 6,40,000 बैरल प्रति दिन के हिसाब से कच्चा तेल ख़रीदा है. ईरान से तेल आयात करने वाला भारत चीन के बाद सबसे बड़ा देश है. अमरीकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने कहा है कि अमरीका ईरान पर “अब तक के सबसे कड़े प्रतिबंध” लगाने वाला है. अब अगर ऐसा हुआ तो ईरान को अपनी अर्थव्यवस्था को ज़िंदा रखने के लिए संघर्ष करना पड़ेगा. लिहाजा वो अपने निर्यात किए जाने वाले ईंधनों की कीमतें भी बढ़ा सकता है.

इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय कीमतें बढ़ने का एक और कारण पेट्रोलियम निर्यातक देशों और रूस के बीच उत्पादन घटाने के लिए हुआ समझौता भी है तो वहीं वेनेजुएला से इसकी सप्लाई कम होना भी एक बड़ी वजह बताई जा रही है. वेनेज़ुएला भारत का चौथा सबसे बड़ा तेल सप्लायर है और वहां फ़िलहाल राजनीतिक उथल-पुथल है.

कुल मिलाकर ईरान पर अमरीकी प्रतिबंध, वेनेजुएला में राजनीतिक संकट, लीबिया और इराक़ में अस्थिरता, सऊदी अरब की कंपनी अरामको (दुनिया की सबसे बड़ी तेल कंपनी) का आईपीओ, अमरीका के तेल क्षेत्रों से आपूर्ति में कमी और उभरते बाजारों से मांग में बढ़ोतरी से तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में तेज़ी आ रही है.

कैसे कम होंगी कीमतें?

भारत सरकार के पास विकल्प है कि वो पेट्रोल, डीजल पर लगाई जा रही एक्साइज़ ड्यूटी (उत्पाद शुल्क) को कम करे. केंद्र सरकार 19.48 रुपये प्रति लीटर पेट्रोल पर और 15.33 रुपये प्रति लीटर डीज़ल पर एक्साइज़ ड्यूटी लगाती है. जबकि वैट की दरें अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग हैं.

यानी पेट्रोल की कीमतें कम करनी है तो केंद्र को एक्साइज़ ड्यूटी और राज्य सरकार को वैट पर कटौती करनी होगी. लेकिन अर्थशास्त्रियों का मानना है कि इस कटौती से सरकार के राजकोष पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है और कोई भी सरकार यह नहीं चाहेगी. यानी सरकार को घाटे और महंगाई के जोख़िम के बीच संतुलन बनाना होगा. भारतीय स्टेट बैंक ने कहा है कि कच्चे तेल की क़ीमतों में हाल में हुई बढ़ोतरी से देश के निर्यात पर असर पड़ेगा और चालू खाता घाटा (सीएडी) बढ़कर जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) का 2.5 फ़ीसदी तक पहुंच सकता है.

एसबीआई की इकोरैप रिपोर्ट ‘तेल में उबाल: तेल की अर्थव्यवस्था को समझने का वक्त’ में मुख्य अर्थशास्त्री सौम्य कांति घोष ने अनुमान ज़ाहिर किया है कि तेल की क़ीमतों में 10 डॉलर प्रति बैरल वृद्धि से देश के आयात बिल में आठ अरब डॉलर की वृद्धि होती है. इससे जीडीपी में 16 आधार अंकों यानी बीपीएस यानी बेसिस पॉइंट की वृद्धि होती है. (एक बेसिस पॉइंट 0.01 पर्सेंट पॉइंट होता है) इसके कारण राजकोषीय घाटे में आठ बीपीएस की, चालू खाता घाटा में 27 बीपीएस की और मुद्रास्फीति में 30 बीपीएस की वृद्धि होती है. हालांकि यह अनुमान है और वास्तविक वृद्धि में अंतर हो सकता है.

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