लोकपाल से डरते हैं PM मोदी: अन्ना हजारे
आखिर सात साल बाद देश में ऐसा क्या हुआ कि एक बार फिर सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे को आंदोलन की राह पकड़नी पड़ी। यह जानने की जिज्ञासा और कौतुहलता जरूर आपके मन में होगी। आखिर एक बार फिर अन्ना को लोकतंत्र खतरे में क्यों दिखाई देने लगा। एक बात और तब और अब के सियासी माहौल में फर्क इतना है कि इस बार केंद्र में कांग्रेस की नहीं बल्कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार है, जो अन्ना पार्ट-1 के आंदोलन में उनके मांगों के साथ खड़ी थी। दूसरी ओर दिल्ली राज्य की कमान उस युथ बिग्रेड के पास है, जिसने प्रथम आंदोलन में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था।
पांच प्रमुख मांगों पर अड़े अन्ना
1- मांगों को लेकर केंद्र में मोदी सरकार 43 पत्र लिखे, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। आहत होकर उनको आंदोलन की राह पकड़नी पड़ी। मोदी सरकार से लोकपाल व कृषि संकट पर बातचीत करने के प्रयास का कोई नतीजा नहीं निकला।
2- जिन किसानों के पास आय का कोई स्रोत नहीं है उसे 60 साल बाद 5000 हजार रुपय पेंशन दो। संसद में किसान बिल को पास करो।
3- देश के किसान संकट में हैं, क्योंकि उन्हें फसलों का उचित मूल्य नहीं मिल रहा है और सरकार उचित मूल्य तय करने की दिशा में कोई काम नहीं कर रही है।
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4- कृषि लागत व मूल्य आयोग (सीएसीपी) को उचित मूल्य निर्धारण के लिए स्वायत्त बनाया जाना चाहिए। सीएसीपी 23 फसलों के लिए मूल्य तय करता है। वर्तमान में केंद्र सरकार सीएसीपी का नियंत्रण करती है और राज्यों द्वारा सुझाए गए उचित मूल्य में 30-35 फीसदी की कटौती करती है।
5- केंद्र में लोकपाल व राज्यों में लोकायुक्त की नियुक्ति। नए चुनाव सुधार व देश में कृषि संकट को हल करने के लिए स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू करना।