व्यवहारिक राजनीति के महारथी देवगौड़ा के विपक्ष के सभी दिग्गज नेताओं शरद पवार, चंद्रबाबू नायडू, ममता बनर्जी, मायावती, चंद्रशेखर राव, नवीन पटनायक, शरद यादव, लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव,एम करुणानिधि, सीताराम येचुरी आदि से बेहद अच्छे रिश्ते हैं। कांग्रेस से गठबंधन होने से पहले भी उनके सोनिया गांधी, गुलाम नबी आजाद, अहमद पटेल आदि से भी मधुर रिश्ते रहे हैं।
ये सारे नेता देवगौड़ा का बेहद सम्मान भी करते हैं और विपक्ष के युवा नेताओं अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, आदि भी देवगौड़ा का आदर करते हैं जबकि गठबंधन से पहले भले ही चुनाव में राहुल गांधी ने जद(एस) को भाजपा की बी टीम कहा हो, लेकिन गठबंधन के बाद से राहुल भी बेहद आदर से देवगौड़ा को संबोधित करने लगे हैं।
इस लिहाज से कर्नाटक में अपने बेटे की ताजपोशी के बाद यह बुजुर्ग वोक्कालिगा नेता केंद्रीय राजनीति में विपक्षी एकता के सूत्रधार और ध्रुव की भूमिका निभाने की तैयारी में हैं। जद(एस) के महासचिव और दिल्ली में देवगौड़ा सबसे विश्वास प्राप्त नेता दानिश अली के मुताबिक कुमारस्वामी कर्नाटक के विकास पर ध्यान देंगे और देवगौड़ा जी 2019 में केंद्र से भाजपा सरकार को बेदखल करने के लिए विपक्षी दलों को एकजुट करने का काम करेंगे।
लेकिन सवाल है कि देवगौड़ा ये काम क्या राहुल गांधी या ममता बनर्जी, मायावती या किसी और को प्रधानमंत्री बनाने के लिए ये काम करेंगे या अपने खुद के लिए बिसात बिछाएंगे। सूत्र कहते हैं कि जब भरी दोपहर सीताराम केसरी ने एकाएक राष्ट्रपति भवन पहुंचकर संयुक्त मोर्चा सरकार से कांग्रेस का समर्थन वापस लेकर देवगौड़ा को प्रधानमंत्री की कुर्सी से बेदखल किया था, उसके बाद किसी ज्योतिषी ने उन्हें कहा था कि उनकी जन्म कुंडली में एक बार फिर प्रधामंत्री बनने का योग है। हालाकि पहले 2013 में विधानसभा चुनावों और फिर 2014 में लोकसभा चुनावों में जद(एस) की विफलता से देवगौड़ा निराश हो गए थे, लेकिन अब फिर उनकी आंखों की चमक लौट आई है। शायद उन्हें ज्योतिषी की भविष्यवाणी सच होने की उम्मीद जग गई है।
कुमारस्वामी सरकार के गठन के बाद देवगौड़ा अब ज्यादा दिन दिल्ली में रहकर राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय होंगे। वह प्रकट तौर पर तो खुद को आगे नहीं बढ़ाएंगे बल्कि देवीलाल और सुरजीत की तर्ज पर विपक्षी राजनीति के पेंचों को सुलझाते हुए भाजपा विरोधी मोर्चे के गठन का रास्ता तैयार करेंगे। उनकी चुनौती यह है कि जहां ममता बनर्जी, मायावती, चंद्रबाबू नायडू, चंद्रशेखर राव, नवीन पटनायक का जोर गैर भाजपा गैर कांग्रेस रीजनल फ्रंट बनाने पर है, वहीं शरद पवार, लालू प्रसाद यादव, शरद यादव, सीताराम येचुरी आदि नेता कांग्रेस के साथ मिलकर भाजपा विरोधी मोर्चा बनाने के हक में हैं।शरद पवार ने ममता बनर्जी को इस बात के लिए राजी कर लिया है कि बिना कांग्रेस के भाजपा विरोधी मोर्चे की बात निरर्थक है।
ममता को कांग्रेस को साथ लेने में कोई एतराज नहीं है लेकिन वह कांग्रेस को नेतृत्वकारी भूमिका देने को राजी नहीं हैं। दरअसल 2019 में त्रिशुंक लोकसभा की स्थिति में ममता और मायावती के मन में भी प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा जाग उठी है।और तमाम बदवाल के बावूजूद अभी राहुल गांधी इन विपक्षी क्षत्रपों को नेता के रूप में स्वीकार नहीं हैं।
देवगौड़ा को इस सारे अंतर्विरोधों के बीच संतुलन साधना होगा। उन्हें कांग्रेस के साथ साथ विपक्षी क्षत्रपों को भी साधना होगा और भाजपा विरोधी मोर्चे को आकार देना होगा। कांग्रेस किस हद तक उनकी अहम भूमिका को मंजूर करेगी, यह भी सवाल है। हालांकि बहुत कुछ मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों के नतीजों पर भी निर्भर है। इन चुनावों के नतीजे और कांग्रेस की सफलता से उसका और राहुल गांधी का दबदबा तय होगा। देवगौड़ा कांग्रेस को भी साधे रखेंगे और विपक्षी क्षत्रपों को भी ताकि लोकसभा चुनावों के बाद अगर कांग्रेस सबसे बड़े दल क रूप में नहीं उभरती है तो उनके नाम पर सर्वसहमति बन जाए और एक बार फिर राष्ट्रपति भवन के दरबार सभागार में वह पद और गोपनीयता की शपथ ले सकें।