दिल्ली में 22 जुलाई को किसान करेंगे महापंचायत, होगी इस बड़े मुद्दे पर बात

नई दिल्ली। दिल्ली में आवासीय क्षेत्र विकसित करने के इरादे से सरकार गांवों को शहरीकृत तो घोषित करती है, मगर सरकार की नीति और नीयत ठीक न होने की वजह से ऐसे गांव स्लम बस्ती ही बनकर रह गए हैं। इन गांवों में चकबंदी व लाल डोरा का विस्तार नहीं होने के कारण समस्याएं जटिल होती जा रही हैं। लाल डोरा विस्तार और चकबंदी का भरोसा मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से किसानों को कई बार मिला, लेकिन इन पर सरकार की तरफ से कुछ नहीं किया गयादिल्ली में 22 जुलाई को किसान करेंगे महापंचायत, होगी इस बड़े मुद्दे पर बात

2006 में सरकारी समिति ने भी की थी सिफारिश

यही वजह है कि गांवों में सरकार के प्रति लगातार आक्रोश बढ़ रहा है। किसानों ने 22 जुलाई के लिए महापंचायत का एलान कर दिया है, जिसके लिए गांव-गांव लोग लामबंद हो रहे हैं। गांवों में बढ़ती आबादी को ध्यान में रखते हुए लाल डोरा बढ़ाने के लिए केंद्र की तत्कालीन संप्रग सरकार ने तेजेंद्र खन्ना समिति का गठन किया था। 13 मई, 2006 को समिति ने अपनी रिपोर्ट में ग्रामीण क्षेत्रों की बढ़ती आबादी और लाल डोरे की मौजूदा व्यवस्था को देखते हुए लाल डोरा बढ़ाने का सुझाव दिया।

फाइलों में ही धरे रह गए सारे प्रयास

केंद्रीय शहरी विकास मंत्रलय एवं दिल्ली सरकार ने वर्ष 2007 में इस समस्या के निदान के लिए कुछ कदम उठाए जाने की आवश्यकता को स्वीकार भी किया, जिसके अनुसार लाल डोरा बढ़ाने हेतु पहला रास्ता चकबंदी करना था। मगर बात केवल फाइलों तक ही सिमटकर रह गई। पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग ने भी इस मसले पर एक कमेटी बनाई थी। इसे लैंड पूलिंग, भूमि अधिग्रहण के बदले मुआवजा, लाल डोरा और चकबंदी के बारे में सुझाव देना था, लेकिन इसकी रिपोर्ट आई या नहीं, किसी ने कोई सुध नहीं ली।

100 साल पहले दिल्ली में हुई थी बंदोबस्ती

दिल्ली के ग्रामीण क्षेत्रों में वर्ष 1908-09 में जमीन की बंदोबस्ती की गई थी। इसके अनुसार गांवों की सीमा निर्धारित की गई थी, जिसे लाल डोरा का नाम दिया गया। इसके बाद से दिल्ली में कई बार लाल डोरा के विस्तार की मांग उठी है। सरकार ने कई बार लाल डोरा विस्तार का वादा किया और कागजों पर योजनाएं भी बनाई गईं। बावजूद आज तक कोई योजना मूर्त रूप नहीं ले सकी।

बेरोजगारों की बढ़ रही तादाद

राजधानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए गांवों की जमीन तो अधिग्रहित की जाती रही, लेकिन दिल्ली के विकास में गांव वालों का हिस्सा कम से कमतर होता चला गया। देश के ग्रामीण युवकों को रोजगार देने के लिए घोषित ग्रामीण स्वरोजगार योजना के मानक दिल्ली के गांवों पर लागू नहीं होते।

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