उत्तराखंड की उर्गम घाटी बनी पर्यावरण संरक्षण की मिसाल

चमोली के उर्गम घाटी के ग्रामीण हिमालय क्षेत्र को संरक्षित करने में लगे हुए हैं। घाटी में स्वयंसेवी संस्था जनदेश के आह्वान पर ग्रामीण मिश्रित वन तैयार कर पर्यावरण संरक्षण का संदेश दे रहे हैं। ग्राम पंचायत पिलखी, भेंटा, अरोसी, देवग्राम (खोली) और गीरा-बांसा गांव की बंजर भूमि पर ग्रामीणों ने वर्ष 1996 में मिश्रित वन तैयार करने का बीड़ा उठाया।
जंगल में संरक्षित प्रजाति के बांज, बुरांस, चमखड़ीक, देवदार, पय्यां, मणिपुरी बांज, मोरु, पांगर, तिमला, खड़ीक आदि पौधों का रोपण किया है। संबंधित गांवों के महिला व युवक मंगल दल प्रत्येक माह दो दिन श्रमदान कर खरपतवार को हटाते हैं और पेड़ों के इर्द-गिर्द जैविक खाद (गोबर) डालते हैं।

मिश्रित जंगल में पेड़ों के साथ ही चारापत्ती भी रोपी गई है, जिसे बेचकर ग्राम पंचायतें यहां उगी घास को बेचकर आमदनी बढ़ा रही है। ग्राम पंचायत भेंटा के प्रधान लक्ष्मण सिंह नेगी ने बताया कि इस वर्ष ग्राम पंचायत ने हरी घास से करीब 25 हजार की आमदनी की है। जनदेश संस्था के सचिव एलएस नेगी ने बताया कि अब ग्रामीण घाटी में पहुंचने वाले तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को भी अपने नाम से एक-एक पौधा रोपने का आह्वान करते हैं।

उर्गम घाटी धार्मिक के साथ ही एक खूबसूरत पर्यटन स्थल भी है। यहां पंचम केदार कल्पनाथ मंदिर के साथ ही बंशीनारायण, फ्यूंलानारायण, ध्यान बदरी, घंटाकर्ण मंदिर और उर्वा ऋषि के मंदिर स्थित हैं। घाटी के पिलखी गांव में ग्रामीणों ने चिपको नेत्री गौरा देवी के नाम से गौरा देवी वन भी तैयार किया है। यहां पर्यटक व तीर्थयात्रियों को एक-एक पौधा लगाने के लिए प्रेरित किया जाता है।

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