EDITORs TALK : खतरे में विधायक, घटता रसूख

डॉ. उत्कर्ष सिन्हा
ज्यादा दिन नहीं हुए जब यूपी के गोपामऊ विधानसभा से भाजपा विधायक श्याम प्रकाश ने अपनी फेसबुक पोस्ट से अपनी ही सरकार को घेरा था। विधायक ने अपने फेसबुक पर लिखा कि मैंने अपने राजनीतिक जीवन में इतना भ्रष्टाचार नहीं देखा है, जितना इस समय देख और सुन रहा हूं। जिससे शिकायत करो वह खुद वसूली कर लेता है।
कुछ वक्त पहले भी यूपी की विधानसभा में भाजपा के ही करीब 200 विधायक ये कहते हुए धरने पर बैठे थे कि जिलों में अधिकारी उनकी बात नहीं सुन रहे हैं और उनके बताए काम नहीं हो रहे हैं।
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ये घटना 18 दिसंबर 2019 की है जब भाजपा विधायक नंदकिशोर गुर्जर धरने पर बैठे थे। उनकी मांग थी कि गाजियाबाद के एसएसपी और डीएम को विधानसभा की सदन में बुलाकर दंडित किया जाए। ये पहली बार था जब सत्ताधारी दल के ही विधायक अपनी सरकार के प्रशासन के खिलाफ धरने पर बैठ गए थे।
अलीगढ़ के इगलास से विधायक राजकुमार सहयोगी का आरोप है की उन्हें पुलिस वालों ने थाने में पीटा। इस खबर ने एक बार फिर विधायकों को आक्रोशित कर दिया और आज सुल्तानपुर जनपद की लम्बुआ सीट से विधायक देव मणि दुबे कई विधायकों के साथ अलीगढ़ पहुँच गए।
देवमणि दुबे का कहना है कि उन्होंने इस सम्बंध में उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या से बात की है और उनसे इस घटना को लेकर इस्तीफ़े की पेशकश भी की है।
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देवमणि यह भी कह रहे है कि हम प्रदेश के 403 विधायकों के पिटने का इंतज़ार नही कर सकते। हमे पुलिस उत्पीड़न के खिलाफ आवाज़ उठाना पड़ेगा अब उसकी चाहे जो कीमत चुकानी पड़े। ये सारे विधायक भाजपा के ही हैं और यूपी में भाजपा की ही सरकार है।
रायबरेली के एक विधान परिषद सदस्य ने जब एसएसपी आफिस में फोन किया तो एक महिला दरोगा ने उन्हें यह कह दिया कि वो उन्हें कैसे एमएलसी मान लें?
इस बीच बाहुबली छवि वाले विधायक विजय मिश्र का एक वीडियो भी सामने आ गया, जहां वे अपनी जान बचाने की गुहार लगा रहे हैं। विजय मिश्र ने बीता चुनाव निषाद पार्टी के टिकट पर लड़ा था। तो जरा देखते हैं कुछ वीडियो और फिर करेंगे बात कि आखिर ऐसा क्या हो गया है कि जनता के द्वारा चुने गए विधायकों को अपनी ही पुलिस से खतरा होने लगा है?
क्या जनप्रतिनिधियों का रसूख अब इतना कमजोर हो चुका है कि अधिकारी उनकी बात सुनना तो छोड़िए उन्हें निर्धारित प्रोटोकाल भी नहीं दे रहे? क्या व्यवस्था इतनी बेलगाम हो चुकी है कि विधायिका का कार्यपालिका से नियंत्रण खत्म हो गया है? या फिर कुछ विधायकों ने खुद का स्तर इतना नीचे कर दिया है कि स्थानीय अधिकारी अब उन्हें तवज्जो नहीं दे रहे?

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