अब डिम्पल नहीं लड़ेंगी चुनाव, एक्सपर्ट ने बताए ये कारण :अखिलेश

  • लखनऊ. यूपी के एक्स सीएम अखिलेश यादव एक निजी कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ के रायपुर पहुंचे थे, जहां उन्होंने मीडिया के वंशवाद पर हुए सवालों का जवाब देते हुए एलान किया कि उनकी पत्नी और कन्नौज की सांसद डिंपल यादव अब चुनाव नहीं लड़ेंगी। उन्होंने कहा, ”हमारी पार्टी में परिवारवाद नहीं है। अगर हमारी पार्टी में परिवारवाद है, तो फिर अब मेरी पत्नी चुनाव नहीं लड़ेंगी।” 
    अब डिम्पल नहीं लड़ेंगी चुनाव, एक्सपर्ट ने बताए ये कारण :अखिलेश

    कन्नौज से अखिलेश लड़ना चाहते हैं चुनाव…

    -सूत्रों के मुताबिक, अखिलेश यादव 2019 में खुद कन्नौज सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं। डिम्पल यादव से पहले वह खुद इसी सीट से 3 बार सांसद रह चुके हैं।
    -चूंकि अखिलेश के सीएम बनने पर 2012 में कन्नौज स्सेट पर डिम्पल निर्विरोध उपचुनाव जीती थी। वह भी बड़ी मुश्किल से। ऐसे में अबकी बार अखिलेश यादव कोई रिस्क नहीं लेना चाहते हैं।
    -यही नहीं, सूत्रों की माने तो सिर्फ डिम्पल ही नहीं, मैनपुरी से तेज प्रताप यादव और फिरोजाबाद से अक्षय यादव का भी टिकट काटा जा सकता है।
    -ऐसे में एक्सपर्ट्स का मानना है कि अखिलेश का यह बयान चुनाव से पहले सिर्फ माहौल बनाना है, न कि इस बयान के पीछे कोई राजनीतिक बलिदान की स्थ‍ित‍ि है। चूंकि पार्टी इस स्थ‍ित‍ि में नहीं है कि यादव परिवार के कमजोर कैंडिडेट्स को जीत दिला सके।

    अखिलेश अब आगे नहीं बढ़ाना चाहते वंशवाद

    -एक्सपर्ट रतन मणि लाल का कहना है कि इस बयान से लगता है कि अखिलेश भले ही वंशवाद की उपज हों, लेकिन वह अब अपने आगे वंशवाद नहीं बढ़ाना चाहते हैं।
    – उनके परिवार में कई लोग राजनीती में हैं। फिलहाल उन्हें रोकना मुश्किल है। ऐसे में उन्होंने अपनी पत्नी डिम्पल के लिए एलान कर दिया है कि वह उन्हें अब चुनाव नहीं लड़ाएंगे।

    क्या अब फिर यादव परिवार में महिलाएं घर में रहेंगी?

    -एक्सपर्ट रतन मणि लाल सवाल खड़े करते हुए कहते हैं कि जब डिम्पल यादव पहली बार चुनाव लड़ी थी तब भी इस विषय पर चर्चा हुई थी। क्योंकि डिम्पल यादव परिवार की पहली महिला थी जिन्होंने सांसद का चुनाव लड़ा था। उससे पहले जिला स्तर के चुनाव ही महिलाएं लड़ी थी।
    -ऐसे में इस बयान से क्या यह माना जाए कि एक बार फिर यादव परिवार की महिलाएं सिर्फ इटावा तक ही सीमित रहेंगी।
    -ऐसे में सवाल यह है कि क्या डिम्पल के न लड़ने से ही वंशवाद खत्म हो जाएगा तो फ‍िर भाई और भतीजों को कैसे रोकेंगे।

    संभावित हार हो सकती है बड़ी वजह

    -रतन मणि लाल कहते हैं कि डिम्पल यादव 2012 में जब उपचुनाव में बतौर सपा कैंडिडेट कन्नौज से खड़ी हुई थी तो मुलायम ने सभी पार्टियों से बाकायदा अपील की थी कि मेरी बहू है। ऐसे में कोई कैंडिडेट न खड़ा करे।
    -इसका असर भी हुआ कांग्रेस ने कैंडिडेट नहीं खड़ा किया। बसपा उस समय उपचुनाव लड़ती नहीं थी, जबकि बीजेपी का कैंडिडेट अंतिम समय फाइनल हुआ और नॉमिनेशन में लेट पहुंचने की वजह से नॉमिनेशन भी नहीं फ़ाइल कर सका। ऐसे में डिम्पल निर्विरोध चुन ली गई थीं।
    -उससे पहले 2009 में जब फिरोजाबाद सीट से जीते अखिलेश ने सीट छोड़कर अपने लिए कन्नौज लोकसभा सीट चुनी तो यहां से डिम्पल चुनाव लड़ी, लेकिन कांग्रेस में गए राज बब्बर ने उन्हें हरा दिया था।
    -इसके बाद 2012 में अखिलेश द्वारा कन्नौज सीट छोड़ने पर डिम्पल यहां से निर्विरोध चुनाव जीती, जबकि 2014 में बमुश्किल कन्नौज सीट डिम्पल यादव जीत पाईं। लेकिन इस बार मुलायम और शिवपाल का रुख देखते हुए डिम्पल के लिए 2019 मुश्किल लग रहा है।
    -वहीं, बीजेपी भी अपनी पूरी ताकत इस सीट से डिम्पल को हराने में झोकेगी। ऐसे में अखिलेश पहले से जानते हैं कि परंपरागत सीट जाने से भद्द पिट जाएगी।
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