धर्मगुरु दलाई लामा ने कहा- महात्मा गांधी चाहते थे जिन्ना बनें PM, मगर नेहरू ने नही किया स्वीकार
तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने दो विवादित बयान एक साथ दे दिये हैं जो भारत के साथ उनके रिश्तों पर प्रभाव डाल सकते हैं। एक तरफ उन्होने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, नेहरू,और जिन्ना पर अपने विचार रखे तो दूसरी तरफ चीन के साथ अपने रिश्ते पर भी बेबाकी से बात की। गोवा की राजधानी में एक कार्यक्रम के दौरान दलाई लामा ने भारत, चीन और तिब्बत से जुड़े कई विवादों पर भी अपने विचार रखे।सबसे पहले नेहरू-जिन्ना पर एक सवाल पर आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा ने कहा कि महात्मा गांधी चाहते थे कि मोहम्मद अली जिन्ना देश के शीर्ष पद पर बैठें, लेकिन पहला प्रधानमंत्री बनने के लिए जवाहरलाल नेहरू ने ‘आत्म केंद्रित रवैया’ अपनाया। दलाई ने दावा किया कि यदि महात्मा गांधी की जिन्ना को पहला प्रधानमंत्री बनाने की इच्छा को अमल में लाया गया होता तो भारत का बंटवारा नहीं होता। गोवा प्रबंधन संस्थान के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए 83 वर्षीय बौद्ध गुरु ने यह बात कही।
सही निर्णय लेने संबंधी एक छात्र के प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा, ‘मेरा मानना है कि सामंती व्यवस्था के बजाय प्रजातांत्रिक प्रणाली बहुत अच्छी होती है। सामंती व्यवस्था में कुछ लोगों के हाथों में निर्णय लेने की शक्ति होती है, जो बहुत खतरनाक होता है।’ उन्होंने कहा, ‘अब भारत की तरफ देखें। मुझे लगता है कि महात्मा गांधी जिन्ना को प्रधानमंत्री का पद देने के बेहद इच्छुक थे। लेकिन पंडित नेहरू ने इसे स्वीकार नहीं किया।’
उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि स्वयं को प्रधानमंत्री के रूप में देखना पंडित नेहरू का आत्म केंद्रित रवैया था।….यदि महात्मा गांधी की सोच को स्वीकारा गया होता तो भारत और पाकिस्तान एक होते।’
उन्होंने कहा, ‘मैं पंडित नेहरू को बहुत अच्छी तरह जानता हूं, वह बेहद अनुभवी और बुद्धिमान व्यक्ति थे, लेकिन कभी-कभी गलतियां हो जाती हैं।’ जिंदगी में सबसे बड़े भय का सामना करने के सवाल पर आध्यात्मिक गुरू ने उस दिन को याद किया जब उन्हें उनके समर्थकों के साथ तिब्बत से निष्कासित कर दिया गया था। उन्होंने याद किया कि कैसे तिब्बत और चीन के बीच समस्या बदतर होती जा रही थी। चीन के अधिकारियों का रवैया दिन ब दिन अधिक आक्रामक होता जा रहा था। उन्होंने याद किया कि स्थिति को शांत करने करने के उनके तमाम प्रयासों के बावजुद 17 मार्च 1959 की रात को उन्होंने निर्णय किया वह यहां नहीं रहेंगे और वह निकल आये।