इतने ताकतवर होने के बावजूद भी हनुमानजी ने कैद से क्यों नहीं आजाद कराया माता सीता को

रामायण में भगवान राम और रावण  के बीच हुए युद्ध में हनुमान जी ने बड़ी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। हनुमान जी भगवान शिव के ग्यारहवें अवतार माने जाते है और वे अपने बल और बुद्धि के बल से कई तरह की समस्या का निदान फौरन ही हल कर दिया करते हैं। रामायण में हनुमान जी की वीरता की कई कहानियां प्रचलित है उन्हीं में से एक पौराणिक कहानी है जिसमें इतने शक्तिशाली होने के बावजूद आखिरकार उन्होनें माता सीता को रावण की कैद से मुक्त क्यों नहीं कराया।
इतने ताकतवर होने के बावजूद भी हनुमानजी ने कैद से क्यों नहीं आजाद कराया माता सीता को
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार जब हनुमानजी अपनी माता अंजनी को रामायण की कथा सुना रहे थे तो माता अंजनी ने पूछा की तुम इतने शक्तिशाली हो कि एक पल में तुमने अपनी पूंछ से सोने की लंका को तहस-नहस कर दिया था यहां तक कि रावण को भी मार सकते थे और माता सीता को उसके कैद से छुड़ा सकते  थे लेकिन तुमने ऐसा क्यों नहीं किया? अगर तुम ऐसा करते है तो इतना भयंकर युद्ध को टाला जा सकता था। तब हनुमान जी ने माता अंजनी को बताया कि प्रभु राम ने कभी भी मुझे ऐसा करने के लिए नहीं कहा था। उन्होनें सिर्फ माता सीता को अपनी निशानी देने के लिए कहा था। उन्होनें कहा कि मैं उतना ही करता हूं जितना मुझे प्रभु श्रीराम कहते हैं और वे जानते हैं कि मुझे क्या करना है। इसलिए मैं अपनी मर्यादा का उल्लंघन नहीं करता। इसलिए इतना साहस होने के बावजूद भगवान हनुमान ने माता सीता को लंका से मुक्त कराकर नहीं लाएं। इसलिए यदि हनुमान भक्त को किसी भी प्रकार की परेशानी आये तो हनुमान जयंती, मंगलवार या शनिवार के दिन हनुमान चालीसा का सात बार पाठ करने से भक्तो के कष्टों का निवारण हो जाता है।
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