रामनाथ कोविंद को लेकर आया राजनीति में बड़ा तूफान, आखिर क्या चल रहा है मोदी-शाह के दिमाग में?

  • देवेंद्र भटनागर. आडवाणी, जोशी, सुमित्रा महाजन, सुषमा, द्रौपदी मुर्मू, ई. श्रीधरन…और ऐसे ही कई नाम राष्ट्रपति बनने के लिए चर्चा में थे। लेकिन जो नाम चर्चा में रहे, मोदी उस पर कभी मुहर नहीं लगाते। नवाज को शपथ में बुलाकर, स्मृति ईरानी का विभाग बदलकर, गुजरात में आनंदीबेन और फिर रूपाणी को सीएम बनाकर भी वे ऐसे ही चौंका चुके हैं। हरियाणा, झारखंड, महाराष्ट्र और यूपी के सीएम के नाम का एलान भी सारे कयासों को झुठलाते हुए ही किया था। और अब रामनाथ कोविंद। लेकिन कोविंद ही क्यों? क्या मायने हैं इसके? मोदी-शाह की सोच क्या है? सभी सवालों का जवाब है- 2019 का चुनाव। आखिर कोविंद ही क्यों…
    रामनाथ कोविंद को लेकर आया राजनीति में बड़ा तूफान, आखिर क्या चल रहा है मोदी-शाह के दिमाग में?
     
    वे संघी और भाजपाई हैं
    भाजपा का कभी कोई राष्ट्रपति नहीं रहा। कलाम को अटलजी ने राष्ट्रपति बनाया था, लेकिन उनका नाम मुलायम ने बढ़ाया था, भाजपा ने सिर्फ समर्थन दिया था। फिर कलाम गैर राजनीतिक थे। अब पहली बार भाजपा को ये मौका मिला है और वो इसे चूकना नहीं चाहती। कोविंद संघ और भाजपा के हैं, बावजूद उनकी छवि कट्टरपंथी की नहीं है, यही उनके पक्ष में भी गया।

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    वे दलित हैं
    जिस तरह से दलितों के मुद्दे पर विपक्ष एकजुट हो रहा था, मोदी ने उसका तोड़ निकाल लिया है। वे देश के दूसरे दलित राष्ट्रपति होंगे। इससे पहले 2002 में केआर नारायणन थे। लेकिन नारायणन दक्षिण के थे जबकि कोविंद उत्तर से। कोविंद आरक्षण बचाओ आंदोलन जैसे प्रयास भी कर चुके हैं। लिहाजा भाजपा को आरक्षण विरोधी बताने का मुद्दा भी इससे कमजोर होगा। गुजरात और सहारनपुर की घटनाओं की वजह से भाजपा के हाथ से फिसलती दलित राजनीति को भी साधने में मदद मिलेगी, साथ ही सपा-बसपा जैसे दल विरोध नहीं कर पाएंगे। वहीं, हमेशा भाजपा को तेवर दिखाने वाली शिवसेना भी नरम पड़ेगी, क्योंकि महाराष्ट्र की राजनीति में दलित एक अहम राजनीतिक शब्द है। कोविंद को राष्ट्रपति पद के लिए खड़ा करके पार्टी ने दलितों को अपनी तरफ आकर्षित करने का काम किया है। कुछ बयान यही बता रहे हैं। देखिए- मोदी ने ट्वीट किया- कोविंद एक अप्रतिम राष्ट्रपति बनेंगे और गरीबों, वंचितों और हाशिये के समाज की मजबूत आवाज बने रहेंगे। अमित शाह ने कहा ‘कोविंद हमेशा दलितों और पिछड़े के लिए संघर्ष करते रहे हैं। पासवान ने कहा-जो कोविंद का विरोध करेगा, वो दलित विरोधी माना जाएगा।

     
    उत्तर प्रदेश से हैं
    संभवत: पहली बार है जब प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति दोनों यूपी से होंगे। लोकसभा की 80 सीटों वाला यह राज्य किसी की भी सरकार बनाने के लिए निर्णायक रहता है। वहां सपा के बिखराव और माया के कमजोर होने से जो जगह खाली हुई है, भाजपा उसे पाना चाहती है। योगी के रूप में ठाकुर-ब्राह्मण सीएम बन ही चुका है। पीएम के रूप में पिछड़ा वर्ग साथ है ही।अब कोविंद के चलते दलित भी साथ जुड़ सकते हैं। लिहाजा भाजपा 2019 के चुनाव में इसका फायदा देख रही है।
     
    विपक्ष की एकजुटता का जवाब
    कोविंद के आने से कांग्रेस का विपक्ष को एकजुट करने का गणित कुछ बिगड़ सा गया है। मुलायम-माया-लालू और नीतीश चाहकर भी दलित कोविंद का विरोध नहीं कर पाएंगे। बिहार के राज्यपाल होने की वजह से कोविंद के नीतीश और लालू से अच्छे संबंध रहे हैं। बीजद भी इसी फैक्टर के चलते खुलकर विरोध नहीं कर पाएगी। वैसे, विपक्ष एकदम से हार नहीं मानेगा। उसकी कोशिश कोविंद के सामने अपना दलित प्रत्याशी खड़ा करने की है और इस दौड़ में पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार का नाम सबसे आगे है। यानी कोविंद जीतें या कुमार…देश को दूसरा दलित राष्ट्रपति मिलना तय है।
     
     
     
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