गठबंधन पर जल्दबाजी में नहीं बसपा, कर सकती है इस रणनीति पर काम

लखनऊ। गठबंधन को लेकर समाजवादी पार्टी का उतावलापन भले ही दिखता हो लेकिन बहुजन समाज पार्टी अभी जल्दबाजी में नहीं है। इस मुद्दे पर इंतजार करो और देखो के सिद्धांत पर चल रही बसपा केवल मिशन-2019 ही नहीं बल्कि वर्ष 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव पर भी नजर रखे हुए है। बसपा की खामोशी से समाजवादी खेमे की बेचैनी बढ़ी है।गठबंधन पर जल्दबाजी में नहीं बसपा, कर सकती है इस रणनीति पर काम

बसपा की इस खामोशी को वोट बैंक बचाये रखने की चिंता से जोड़कर देखा जा रहा है। दलित-मुस्लिम गठजोड़ को आधार बनाकर सूबे की सत्ता में वापसी की आस लगाये बैठी बसपा एक-एक कदम संभल कर उठा रही है। गठबंधन को लेकर गैर भाजपाई दलों के बीच शह मात की सियासत भी जारी है। खासकर मुस्लिम वोटों को जोड़े रखने के लिए बसपा व सपा में होड़ पुरानी है। सपा जहां वाई-एम (यादव-मुस्लिम) के फार्मूले पर राजनीति में पैठ बनाए है तो बसपा को भी दलित मुस्लिम गठजोड़ अधिक सुहाता है।

पिछले विधानसभा चुनाव में मुस्लिमों का रुझान सपा की ओर अधिक होने से बसपा का सत्ता में वापसी का सपना बिखर गया था। करीब 25 वर्ष बाद सपा के निकट आयी बसपा के सामने अपने दलित वोटों को बचाये रखने का संकट भी दिख रहा है। दलितों में भाजपा द्वारा अपने हिस्सेदारी बढ़ाने की कोशिशें बसपा को बेचैन किए हुए है। दोहरे संकट में फंसी हुई बसपा को मजबूरन गठबंधन को लेकर नरमी दिखानी पड़ रही है। सूत्रों का कहना है कि बसपा को अपना वजूद बचाए रखने के लिए मुस्लिमों को साथ रखना जरूरी होगा क्योंकि अति पिछड़ा वर्ग मोदी लहर में भाजपा को ताकत देने में जुटा है।

बसपा में एक खेमा समाजवादी पार्टी के बजाय कांग्रेस से गठबंधन करने की पैरोकारी में जुटा है। नाम प्रकाशित नहीं करने की शर्त पर एक जोनल कोआर्डिनेटर ने कहा कि यदि सपा मजबूत होती है तो उसका सीधा नुकसान बसपा को ही होगा क्योंकि मुस्लिम वोटरों का जब तक सपा से मोह भंग नहीं होगा तब तक बसपा की सत्ता में वापसी संभव नहीं। केवल लोकसभा चुनाव के लिए 2022 का चुनावी गणित बिगाडऩा उचित नहीं होगा।

सीट बंटवारे में टकराव संभव

सपा प्रमुख अखिलेश यादव भले ही सीटों के बंटवारे को गठबंधन में बाधक नहीं बता रहे हों परंतु बसपा की कसौटी पर खरा उतरना उनके लिए आसान नहीं होगा। खासकर मुस्लिम बहुल इलाकों में बसपा अपना दावा कमजोर नहीं होने देगी। कैराना व नूरपुर उपचुनावों में खामोशी और रालोद के रोजा इफ्तार से दूरी बनाकर बसपा ने अपनी मंशा भी जता दी। वहीं बसपा प्रमुख का कार्यकर्ताओं को अपने दम पर चुनावी तैयारियों में जुटने का संकेत भी दिया है।

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