2019 के लिए किसान कल्याण रैली में दिखा भाजपा का प्लान, इन मुद्दों को लेकर होंगे हमलावर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सदन के बाद सड़क पर भी विपक्ष को पटखनी देने की तैयारी के इरादे दिखा दिए। प्रतीकों और सरोकारों से सियासी समीकरण साधने में माहिर मोदी ने विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव पर मिली जीत को शनिवार को शाहजहांपुर में हथियार बनाया।

सदन में विपक्ष ने जिन बातों को लेकर उन पर निशाना साधा था, शाहजहांपुर में उन्हीं को मुद्दा बनाकर मोदी ने 2019 की लड़ाई को गरीब बनाम अमीर, ईमानदारी बनाम भ्रष्टाचार, काम करने वाली सरकार बनाम सिर्फ बात करने वाली सरकार और सरोकारों की सियासत बनाम सरोकारों पर सियासत करने वालों के बीच बनाने की कोशिश की। मोदी ने अपनी हर बात पर जनता की मुहर लगवाकर यह संदेश देने का भी प्रयास किया कि लोग उनके साथ हैं।

भाजपा की ‘किसान कल्याण रैली’ में किसानों के सरोकारों और उनके लिए किए गए कामों का उल्लेख स्वाभाविक था, लेकिन मोदी ने चतुराई के साथ अपनी सियासी लड़ाई को गरीबों, महिलाओं, बेटियों और नौजवानों तथा गांवों की अस्मिता से जोड़कर जता दिया कि चुनाव में विपक्ष को घेरने का यह बड़ा मुद्दा बनेगा।

यह कहकर ‘आपने जो सरकार बनाई, उस पर इन्हें विश्वास नहीं। मेरा दोष सिर्फ इतना है कि 90 हजार करोड़ रुपये की बेईमानी रोक दी, जिससे बहुतों की दुकानें बंद हो गई हैं। भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा। कोई मुफ्त की कमाई बंद कर दे तो उस पर भरोसा कैसे करेंगे। इसलिए अविश्वास प्रस्ताव ले आए।’ साफ कर दिया कि 2019 की बिसात 2014 की तरह ही सजेगी। वे आम आदमी के सरोकारों को धार देंगे, विपक्ष की अड़ंगेबाजी और अपने कामों को मुद्दा बनाएंगे।

दल-दल से गठबंधन पर निशाना

मोदी के भाषण में गठबंधन का गणित बिगाड़ने की तैयारी की झलक भी मिली। साफ दिखा कि वे खुद को सियासी समर का मुद्दा बनाने की तैयारी में हैं ताकि लड़ाई ‘मोदी बनाम सब’ हो जाए। खुद को आम आदमी का प्रतिनिधि दिखाकर मोदी यह बताना चाहते हैं कि विरोधी अकेले उन्हें परास्त नहीं कर पाए तो अब मिलकर हराने की कोशिश कर रहे हैं।

इसीलिए भाषण खत्म करते-करते हुए कहा कि उनके साथ देश की 125 करोड़ जनता की ताकत है। जब तक यह शक्ति रहेगी तब तक कोई कुछ बिगाड़ नहीं पाएगा, खुद को आम आदमी के सरोकारों से जोड़ दिया। इसीलिए यह कहते हुए ‘इन्हें (विपक्ष) आज के भारत का मर्म नहीं पता। देश बदल चुका है। नौजवान का मिजाज बदल चुका है। बेटियां जाग चुकी हैं। अहंकार और दमन अब कोई स्वीकार नहीं करेगा। एक दल नहीं दल के साथ दल भी मिलते चले जाएं तो भी कुछ नहीं कर पाएंगे। जितने अधिक दल उतना ही दलदल और जितना अधिक दलदल होगा, उतना ही ज्यादा कमल खिलेगा’ से गठबंधन के गणित पर चोट की, पर इस सावधानी के साथ कि उनकी बात आम लोगों के दिमाग से उतरकर दिल में बैठ जाए।

इस तरह भी साधे समीकरण

मोदी ने कहा, हमारी सरकार ने 18 हजार गांवों में बिजली पहुंचाई तो सवाल उठाए गए कि गांवों में तो बिजली पहुंच गई लेकिन घरों में नहीं। यह सवाल वे उठा रहे हैं जिन्होंने 70 वर्षों से सरकार में रहने के बावजूद इन गांवों में बिजली पहुंचाने की चिंता नहीं की। यह साफ कर दिया कि पहले भाजपा ने इन गांवों में बिजली न पहुंचने को मुद्दा बनाया था तो इस चुनाव में वे 70 साल बनाम 5 साल के कामों को मुद्दा बनाने की तैयारी में हैं।
जिस तरह उन्होंने सधे अंदाज में कहा कि गरीबों के नाम की माला जपने वालों ने 70 साल गरीबों को अंधेरे में रखा। फिर यह कहकर कि गरीब का मतलब दलित, शोषित, वंचित, उपेक्षित और पिछड़े लोग और विकास की अनदेखी के शिकार गांव, खुद को इन सबकी अस्मिता और सरोकारों से जोड़ने की कोशिश की।साथ ही यह कहते हुए, ‘हम शौचालय बनवा रहे, गरीबों को घर दे रहे, गरीब घरों को मुफ्त रसोई गैस दे रहे, पर ये सवाल उठा रहे’ से आगे की सियासी लड़ाई को गरीब बनाम अमीर बनाने की कोशिश का संकेत दिया।

‘मेरा गुनाह यही है कि मैं भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहा हूं’

यह कहते हुए ‘मेरा गुनाह यही है कि मैं भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहा हूं। परिवारवाद के खिलाफ लड़ रहा हूं। लालबत्ती का रोब खत्म कर दिया’ खुद को आम आदमी और गरीबों के सरोकारों के लिए काम करने वाले के रूप में खड़ा कर दिया।
सवाल उछाला, क्या मैंने अपने लिए कुछ किया? कोई गलत काम किया? मोदी यह संदेश देने की कोशिश करते दिखे कि जो गठबंधन करके 2019 में उन्हें सत्ता में आने से रोकना चाहते हैं, वही गठबंधन कर संसद में अविश्वास प्रस्ताव लाए।इन्हें डर है कि इन वर्गों के लिए काम करके मोदी सियासी तौर पर कहीं मजबूत न हो जाए। इसीलिए मोदी यह कहने से भी नहीं चूके, ‘देखो! कुर्सी के लिए कैसे दौड़ रहे हैं।’

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