इन 4 बीमारियों की वजह से आपकी जीभ हमेशा रहती है सफेद

आमतौर पर हम अपनी जीभ के सफेद होने को ज्यादा गंभीरता से नहीं लेते। जबकि जीभ का सफेद होना कई तरह की शारीरिक बीमारियों की ओर संकेत करता है। कई बार तो जीभ पूरी सफेद होती है, तो कई बार जीभ में सफेद-सफेद पैच नजर आते हैं। हालांकि जीभ का सफेद होना हमेशा ही घातक बीमारी का संकेत हो, ऐसा भी नहीं है। इसके बावजूद जीभ के सफेद होने को हल्के में लेना सही नहीं है। इसकी कई वजहें हो सकीत हैं। इसलिए बेहतर है कि जीभ के सफेद होने की वजह तलाशें और समय रहते इसका उपचार करें।

इन 4 बीमारियों की वजह से आपकी जीभ हमेशा रहती है सफेद

क्‍या है वजह

वैसे तो जीभ के सफेद होने की सामान्य वजहें होती हैं, जैसे सूखा गला, मुंह से सांस लेना, डिहाइड्रेशन, साफ्ट फूड्स ज्यादा खाना, बुखार, स्मोकिंग, शराब। इसके अलावा कुछ बीमारियों की वजह से भी जीभ सफेद होती है, जैसे-

ल्यूकोप्लेकिया- इस स्थिति में मुंह के अंदर गम्स में सफेद पैचेस हो जाते हैं। ल्यूकोप्लेकिया उन लोगों में ज्यादा देखने को मिलता है जो बहुत ज्यादा धूम्रपान करते हैं, तंबाकू खाते हैं। साथ ही कुछ रेयर केसेज में ल्यूकोप्लेकिया ओरल कैंसर की वजह से भी डेवलप होता है।

ओरल लिचेन प्लेनस- इम्यून सिस्टम में प्राॅब्लम होने की वजह से भी मुंह के अंदर और जीभ में सफेद पैचेस हो जाते हैं। कई बार तो गम्स में माउथ लाइनिंग में छाले तक पड़ जाते हैं।

ओरल थ्रश- यह बीमारी उन लोगों को होती है डायबिटीज के मरीज हैं। इसके अलावा जिनका इम्यून सिस्टम कमजोर हो जैसे एचआईवी, एड्स के मरीज। विटामिन बी और आयरन की कमी की वजह से भी ओल थ्रश हो सकता है।

सिफिलिस- यह सेक्सुअल ट्रांसमिटिड डिजीज है। इसमें भी मुंह के अंदर छाले हो जाते हैं। अगर इस बीमारी का इलाज न कराया जाए, तो इसकी वजह से भी जीभ में सफेद पैचेस हो जाते हैं। जिसे सिफिलिटिक ल्यूकोप्लेकिया कहा जाता है।

ट्रीटमेंट

ल्यूकोप्लेकिया को ट्रीटमेंट की जरूरत नहीं है। यह अपने आप ही ठीक हो जाता है। हालंाकि आप इस समस्या के लिए डेंटिस्ट के पास जा सकते हैं ताकि यह पता चल सके कि स्थिति खतरनाक तो नहीं हो रही। इस बीमारी से निजात पाने के लिए स्मोकिंग और तंबाकू खाना बंद करना होगा। इसी तरह ओरल लिचेन प्लेनस को भी डाक्टर को दिखाने की जरूरत नहीं होती। अगर खराब होने लगे तो डाक्टर आपको माउथ स्प्रे या फिर गार्गल करने की सलाह दे सकते हैं। लेकिन ओरल थ्रश इन दोनों बीमारियों से अलग है।

इसके लिए एंटीफंगल मेडिसिन का यूज किया जाता है। यह कई फार्म में आता है जैसे जेल, लिक्विड, दवाई आदि। सिफिलिस होने की स्थिति में इसे विशेषज्ञ की देखरेख में पेनिसिलिन के डोज से रिकवर किया जाता है। यह एक ऐसा एंटीबायोटिक है, जो सिफिलिस के बैक्टीरिया को मारता है। अगर किसी मरीज को एक या इससे ज्यादा सालों से सिफिलिस है, तो उन्हें पेनिसिलिन के ज्यादा डोज भी दिए जा सकते हैं।

कब जाएं डाक्टर के पास

जब भी आपकी जीभ में ज्यादा दर्द और जलन हो, चबाने, निगलने और बातचीत करने में परेशानी आ रही हो, बुखार, वजन कम होना और स्किन रैशेज होने की स्थिति में डाक्टर को दिखोन में देरी न करें।

Back to top button