अनंतनाग में मारे गए आतंकियों के निशाने पर थी अमरनाथ यात्रा, देने वाले थे बड़ी घटना को अंजाम

इस्लामिक स्टेट जम्मू और कश्मीर (आईएसजेके) तहरीक-उल-मुजाहिद्दीन (टीयूएम) का पुनर्निर्मित रूप है। केंद्रीय सुरक्षा प्रतिष्ठान की मानें तो यह संगठन घाटी में 90 के दशक से सक्रिय था लेकिन कई सालों तक यह निष्क्रिय पड़ा रहा। शुक्रवार को भारतीय सेना और आतंकियों के बीच अनंतनाग में मुठभेड़ हुई। जिसमें कि आईएसजेके का प्रमुख दाऊद अहमद सोफी मारा गया। वह पहले टीयूएम का हिस्सा था लेकिन बाद में उसने आईएसआईएस से जुड़ने का फैसला लिया क्योंकि वह उसकी कट्टरपंथी इस्लामवादी विचारधारा से प्रेरित था।अनंतनाग में मारे गए आतंकियों के निशाने पर थी अमरनाथ यात्रा, देने वाले थे बड़ी घटना को अंजाम

आईएसजेके एक ऐसा आतंकी संगठन है जिसके जम्मू और कश्मीर के डीजीपी एसपी वैद्य के दावे अनुसार केवल 8-10 लड़ाके सक्रिय हैं। जिसमें से 6 आतंकियों को मार दिया गया है। ऐसी आशंका है कि यह आतंकी अमरनाथ पर हमला करने की तैयारी कर रहे थे। इसके लिए चार आतंकी को खिर्रम में रुकवाया गया था। इस गांव से होकर ही यात्रा का रास्ता जाता है। माना जाता है कि आईएसजेके पूरी दुनिया में ग्लोबल जिहाद के आईएस मॉडल को लागू करना चाहता है।

गृह मंत्रालय के एक सूत्र ने कहा, ‘ऐसा लगता है कि आईएस और जम्मू-कश्मीर के बीच कोई खास रिश्ता है। पिछले आतंकी हमलों के बाद से ही आईएस के नाम का दावा किया जा रहा था। वहीं आईएस की लोकप्रियता का फायदा उठाते हुए आईएसजेके जम्मू-कश्मीर के युवाओं के बीच चर्चित होने की कोशिश कर रहा है।’ हालांकि आईएस के साथ जम्मू-कश्मीर के आतंकियों के साथ संसाधन, फंड और रसद को साझा नहीं करते हैं।

यह बात दुर्भाग्यपूर्ण है कि दोनों केंद्र और जम्मू-कश्मीर सरकार घाटी में युवाओं के बीच बढ़ते आईएस के आकर्षण/ खिंचाव को पहचानने में नाकामयाब रही। आईएसजेके के दो आतंकियों- मुगीज एहमद मीर जिसने कि जम्मू-कश्मीर पुलिस के सब-इंस्पेक्टर को पिछले साल जकुरा में मारा था और ईसा फजिलि जिसने कि पुलिस कांस्टेबल फारुक अहमद यातू को इस साल फरवरी में मार दिया था। दोनों को दफनाते समय लोगों ने आईएस के नारों को लगाया था। दोनों ही आतंकियों का टीयूएम के साथ जुड़ाव का इतिहास रहा है।

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