रमाशंकर मिश्र ने कहा- वर्षों की मेहनत के बाद पेंटिंग से बनती है पहचान

नई दिल्ली. देश की राजधानी के हृदय-स्थल, लुटियन जोन में ऑल इंडिया फाइन आर्ट एंड क्राफ्ट सोसायटी (AIFACS) का एक भवन है, जहां इन दिनों अलहदा अंदाज में आजादी की 71वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है. यहां आजकल देश के विभिन्न राज्यों के 48 चित्रकारों, फोटोग्राफरों और स्कल्पचर आर्टिस्टों की एक से एक बेहतरीन कृतियों की प्रदर्शनी लगी हुई है. इस प्रदर्शनी को ‘ये है दिल्ली मेरी जान‘ का नाम दिया गया है. लेकिन यहां पहुंचने के बाद आपको महसूस होगा कि आप रंग, कैनवस, कूची और छायाकारी की अद्भुत दुनिया की सैर पर आए हैं. चित्र, शिल्पकारी, फोटोग्राफ, तस्वीरों में डिजिटल प्रयोग- एक साथ कई विधाएं आपको रंग-कर्म की भिन्न-भिन्न विशेषताओं से रूबरू कराती हैं. प्रदर्शनी में आते ही महीन किस्म से रचे गए दीवारों पर लटके कुछ लैंडस्केप एकबारगी आपका ध्यान खींचते हैं. कुछ कृतियां आपको प्रकृति की सुंदरता का भान कराती हैं, तो कुछ भावनाओं को व्यक्त करती सी लगती हैं.रमाशंकर मिश्र ने कहा- वर्षों की मेहनत के बाद पेंटिंग से बनती है पहचान

रेनबो आर्ट ग्रुप द्वारा आयोजित यह प्रदर्शनी 10 अगस्त से शुरू हुई है जो 16 अगस्त तक चलेगी. प्रदर्शनी में तैल चित्र, जल रंग के अलावा नाइफ यानी चाकू से की गई पेंटिग्स आपको चित्रकला के और करीब ले जाते हैं. भोपाल से आए नाइफ पेंटिंग के सिद्धहस्त कलाकार डॉ. रमाशंकर मिश्र बताते हैं कि एक चित्रकार को उसकी पेंटिंग ही पहचान देती है. इस पहचान को बनाने में वर्षों की मेहनत, लगन और उसका नजरिया महत्वपूर्ण पहलू होते हैं. डॉ. मिश्र ने प्रकृति पर केंद्रित अपनी एक पेंटिंग दिखाते हुए कहा, ‘कई चित्र करीब से देखने पर अमूर्त से नजर आते हैं, इन्हें दूर से देखना चाहिए तभी तस्वीर की बारीकियां और चित्रकार का मकसद स्पष्ट हो पाता है.’ नाइफ से बनाई गई पेंटिंग के बारे में डॉ. मिश्र ने बताया, ‘रंग और कूची से बनाई गई तस्वीर को फाइन-ट्यून करने के लिए चित्रकार अक्सर नाइफ का इस्तेमाल करते हैं. मुझे भी इसी तरह एक चित्र को फाइन-ट्यूनिंग देते वक्त नाइफ से आ रही बारीकियों का पता चला. फिर लगातार प्रयोगों के बाद मेरी सोच से मेल खाती हुई तस्वीर सामने आई.’

प्रदर्शनी में हर कलाकार की चार-चार तस्वीरें या कृतियां लगाई गई हैं. इनमें गर्म आयरन (कपड़े पर प्रेस करने वाली इस्तरी) से बनाई गई कुछ तस्वीरें पानी के अंदर रहने वाली मछलियों के जरिए पर्यावरण प्रदूषण की ओर आपका ध्यान खींचती हैं. गर्म आयरन से तस्वीर बनाने वाले चित्रकार भोपाल के सरकारी कर्मचारी प्रियेश हैं. प्रियेश ने अपने अनोखे प्रयोग के बारे में बताया, ‘कपड़े पर प्रेस करते वक्त गर्म लोहे की ताप से अक्सर पीले निशान पड़ जाते हैं. मुझे इसी ताप से पेंटिंग करने का आइडिया मिला. बस मुझे इतना ध्यान रखना था कि आयरन को कितने क्षणों तक कपड़े पर रखना है, ताकि अलग-अलग रंग की छवियां कपड़े पर उभरे.’ पानी के अंदर मछलियों के संसार के बारे में प्रियेश ने कहा कि मानव-जनित प्रयोगों के कारण जल के अंदर का संसार भी प्रभावित होता है, मैंने इसी जल-जीवों के जीवन को दिखाने की कोशिश की है.

‘ये है दिल्ली मेरी जान’ प्रदर्शनी में लगे कुछ फोटोग्राफ भी बेहद आकर्षक हैं. इन चित्रों में दुर्गा विसर्जन के बाद की प्रतिमा की प्रयोगात्मक तस्वीर आपको खास तौर से आकर्षित करेगी. अंजलि प्रभाकर की यह तस्वीर विसर्जित दुर्गा की स्थिति को आपके सामने लाकर खड़ी कर देती है. इसके अलावा पानी में खेलते और मस्ती करते बच्चे का तैल चित्र, पेड़ का आहत मनुष्य के रूप में किया गया चित्रांकन, महात्मा गांधी के चित्र के साथ लगा एक सुंदर स्त्री का चित्र असंगति में संगति पैदा करता हुआ सा लगता है. वहीं, चित्रों से सजे हॉल में बीच-बीच में रखे शिल्प आकृतियां भी मोहक हैं. तस्वीरों और फोटोग्राफ के साथ रखी गई ये शिल्पाकृतियां जैसे एकाकार हो गई हों, कुछ ऐसा ही आपको अनुभव होगा. इसलिए इस स्वतंत्रता दिवस पर जब आप लुटियन जोन की तरफ जाएं तो AIFACS जरूर जाएं और इस शानदार चित्र प्रदर्शनी का आनंद उठाएं.

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