क्या थी वजह, जो AAP के योगेंद्र यादव से डर गए थे अरविंद केजरीवाल

नई दिल्ली। आम आदमी पार्टी (AAP) के लालच ने दिल्ली को उपचुनाव की ओर ढकेल दिया है। आम आदमी पार्टी इस समय जिस रास्ते पर आकर खड़ी हो गई है इसके लिए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जिम्मेदार हैं। उनका अहम 20 विधायकों को ले डूबा है। केजरीवाल के कारण ही अब फिर से दिल्ली में उपचुनाव के हालात बन गए हैं। इस मामले के गणित को समझने के लिए 2015 की शुरुआत में चलना होगा। जब फरवरी 2015 में पूर्ण बहुमत वाली आप सरकार बनी थी। मगर सरकार के गठन के समय ही बगावत के सुर उठने लगे थे। इसके पीछे केजरीवाल का अहम था।क्या थी वजह, जो AAP के योगेंद्र यादव से डर गए थे अरविंद केजरीवाल

योगेंद्र यादव की सिफारिश पर कई विधायकों को मिला था टिकट

चुनाव जीतने के बाद केजरीवाल को लगने लगा था कि सब कुछ उनके नाम पर ही हुआ है। सूत्रों की मानें तो केजरीवाल पार्टी की पहली पंक्ति के दूसरे नेताओं को सम्मान तक नहीं दे रहे थे। चुनाव जीतने वाले कई विधायकों को प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव आदि की सिफारिश पर टिकट मिला था।

20 विधायकों को ले डूबा केजरीवाल का अहम

पार्टी के ये विधायक इन नेताओं के प्रति समर्पित भी थे। मगर इसी बीच केजरीवाल ने अहम के चलते प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव, प्रो. आनंद कुमार को पार्टी से बाहर निकालने का मन बना लिया। वहीं, केजरीवाल को डर था कि ये लोग पार्टी से बार निकाले गए तो पार्टी टूट सकती है।ऐसे में केजरीवाल ने 21 विधायकों को संसदीय सचिव बना दिया। 9 मार्च 2015 को जब केजरीवाल ने प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव आदि को पार्टी से निकाला।

जल्दबाजी में लिया था केजरीवाल ने फैसला

इससे पहले ही 21 विधायक संसदीय सचिव बनाए जा चुके थे। उस समय केजरीवाल अपने मकसद में कामयाब जरूर हो गए। मगर जल्दबाजी में एक मुसीबत मोल ले ली। अगर इस मामले की शिकायत नहीं होती तो शायद इस मामले में कार्रवाई भी नहीं होती।

केजरीवाल की वजह से आई उपचुनाव की नौबत

अरविंद केजरीवाल अपनी पार्टी बचाने के लालच में अब दिल्ली को फिर से उपचुनाव में ढकेल दिया है। केजरीवाल की सरकार आने के बाद यह तीसरा उपचुनाव होगा। इससे पहले राजौरी गार्डन और बवाना विधानसभा सीटों पर विधानसभा उपचुनाव हो चुके हैं।

जानें योगेंद्र यादव के बारे में 

पिछले साल ही अस्तित्व में आने वाली स्वराज इंडिया के मुखिया व पूर्व आम आदमी पार्टी के अहम सदस्य योगेंद्र यादव किसी परिचय को मोहताज नहीं हैं। योगेंद्र यादव को 1977 में राजनीति की पहली सीख मिली पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर से, जब उन्होंने मां के दिए 16 रुपये उनकी चादर में डाल दिए थे।

तब राजनीति से जुड़ने की बजाय योगेंद्र यादव ने राजनीति को समझना और समझाना बेहतर समझा, अन्ना आंदोलने के दौरान ही योगेंद्र यादव ने राजनीति की राह पकड़ ली। बड़ी से बड़ी बात महीनी से कह जाने में माहिर योगेंद्र यादव को कभी आम आदमी पार्टी का चाणक्य माना जाता था, लेकिन पार्टी का ये चाणक्य कुछ समय बाद ही AAP से बाहर कर दिया गया। 

यहां से आए चर्चा में

2012 में जब अन्ना आंदोलन के साथी दो खेमों में बंट रहे थे तब योगेंद्र यादव ने केजरीवाल का साथ दिया था। सक्रिय राजनीति में कदम रखने से पहले योगेंद्र यादव देश के सफल चुनावी विश्लेषकों में से एक माने जाते थे राजनीति में उतरने से पहले साल 2010 में योगेंद्र यादव को नेशनल एडवाइजरी कमेटी का सदस्य बनाया गया था। योगेंद्र यादव ने शिक्षा का अधिकार लागू करवाने में बड़ी भूमिका निभाई। साल 2011 में जब भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना आंदोलन कर रहे थे। तब योगेंद्र यादव ने भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था।

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