बड़ीखबर: पहली बार मोदी-शाह को लगा बड़ा झटका, कांग्रेस के इस ‘शेर’ के आगे भाजपा की हर रणनीति हुई फेल
May 20, 2018
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वर्ष 2014 का लोकसभा चुनाव जीतने के बाद चुनाव दर चुनाव जीत कर सियासत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की अजेय होने का तिलस्म कर्नाटक में टूट गया। महज दो सीट हासिल कर मेघालय में तो कांग्रेस से बहुत पीछे होने के बावजूद गोवा में सरकार बनाने का चमत्कार यह जोड़ी कर्नाटक में नहीं दुहरा पाई। वह भी तब जब पार्टी बहुमत के आंकड़े के बेहद करीब थी।
दरअसल पूरे मामले में सुप्रीम कोर्ट के दखल, कांग्रेस के समय रहते सचेत होने, येदियुरप्पा को बहुमत साबित करने के लिए ज्यादा समय न मिलने और डीके शिवकुमार की व्यूहरचना ने भाजपा की हर योजना धराशाई कर दी।
बहुमत से महज सात सीट दूर पार्टी नतीजे आने के बाद सरकार बनाने के प्रति आश्वस्त थी। जिस प्रकार कांग्रेस ने नतीजे वाले दिन अचानक जदएस को समर्थन की घोषणा की उससे पार्टी को उम्मीद थी कि इस फैसले के कारण कांग्रेस के कई विधायक नाराज होंगे। इसी बीच जब राज्यपाल ने येदियुरप्पा को बहुमत साबित करने के लिए 15 दिन का वक्त दिया तो पार्टी पहले से भी ज्यादा निशंर्चत हो गई।
मेघालय और गोवा में कांग्रेस को इस मोर्चे पर पटखनी दे चुकी पार्टी कांग्रेस की रणनीति को हलके में लिया। इसी बीच सुप्रीम कोर्ट के दखल से तस्वीर धीरे धीरे पलटती चली गई। मामला हाथ से जाता देख भाजपा ने विपक्ष के लिंगायत विधायकों को साधने के अलावा हर दांव आजमाया मगर उसकी एक भी रणनीति परवान नहीं चढ़ पाई।
भाजपा की रणनीति फेल करने में दक्षिणी कर्नाटक में कांग्रेस का चेहरा माने जाने वाले डीके शिवकुमार ने अहम भूमिका निभाई। गुजरात राज्यसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस विधायकों को अपने गेस्ट हाउस में रखने वाले शिवकुमार ने ही विधायकों को भाजपा के संपर्क से बचाने की रणनीति का जिम्मा संभाला। विधायक जहां जहां रुके, उसका इंतजाम भी शिवकुमार ने ही किया।
भले ही येदियुरप्पा बहुमत साबित करने में नाकाम रहे, मगर सोमवार को शपथ लेने वाली कुमारस्वामी सरकार की राह भी आसान नहीं होगी। मामूली बहुमत वाली संभावित सरकार के सामने विधायकों को साधे रखने की चुनौती होगी। भाजपा की निगाहें नतीजे आने वाले दिनों से ही कांग्रेस-जदएस से जीते 31 लिंगायत विधायकों पर है। ऐसे में थोड़ा सा भी असंतोष भावी सरकार की बलि ले सकती है।