7 साल में DM के PA ने बनाए करोड़ों, स्टेनो, बैंक अधिकारी समेत सात अरेस्ट

भागलपुर.आर्थिक अपराध इकाई और जिला पुलिस की संयुक्त टीम ने शुक्रवार को सृजन और बैंकों की मिलीभगत से हुए छह सौ से ज्यादा के घोटाले में शामिल सात लोगों को गिरफ्तार किया है। इसमें भागलपुर डीएम के पीए सह स्टेनो, दो नाजिर, इंडियन बैंक के अधिकारी और सृजन से जुड़े पदाधिकारी शामिल हैं। कोतवाली थाने में दर्ज घोटाले से संबंधित तीन अलग-अलग केस में इन लोगों की गिरफ्तारी हुई है।
7 साल में DM के PA ने बनाए करोड़ों, स्टेनो, बैंक अधिकारी समेत सात अरेस्ट
 
इस पूरे खेल की कड़ी डीएम के पीए प्रेम कुमार निकले, जो जिला प्रशासन, बैंक और सृजन संस्था के बीच लाइजनर का काम करते थे। प्रेम 2006 से सरकारी सेवा में हैं और पिछले सात साल से डीएम कार्यालय में स्टेनो के पद पर है, जिसने इस दौरान करोड़ों की संपत्ति बनाई है।

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पुलिस ने प्रेम के सरकारी क्वार्टर में छापेमारी की, जहां से उसकी चल-अचल संपत्ति से जुड़े कागजात, पासबुक आदि जब्त किए हैं। प्रेम आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के मामले में भी फंस सकता है। प्रेम डीएम के स्टेनो के अलावा गोपनीय शाखा का भी कामकाज देखता था। सरकारी पदाधिकारी-कर्मी, बैंक के अफसर और सृजन के पदाधिकारियों की मिलीभगत से यह घोटाला हुआ है। पिछले तीन दिन से चल रही जांच में अब तक चार एफआईआर भागलपुर में दर्ज कराए जा चुके हैं। इसमें चार सौ करोड़ का घोटाला अकेले भागलपुर में सामने आया है जबकि सहरसा व अन्य जिलों समेत यह घोटाला अब छह सौ करोड़ तक पहुंच चुका है। आर्थिक अपराध इकाई के आईजी जितेंद्र सिंह गंगवार ने पत्रकारों को बताया कि जिन दो विभाग जिला भू-अर्जन विभाग और जिला नजारत के खातों से सरकारी राशि का गोलमाल हुआ है, उन विभाग के लेखा अधिकारी, कर्मी घोटाले में शामिल हैं। उन विभागों का खाता इंडियन बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा में है। दोनों ही बैंक के अधिकारी और कर्मी की भी संलिप्तता उजागर हुई है। दोनों ही बैंकों से सरकारी पैसा सृजन के एकाउंट में ट्रांसफर हुआ है।
 
सृजन की संचालक, कर्ताधर्ता और कर्मी भी घोटाले में पूरी तरह से शामिल हैं। आईजी ने बताया कि अब तक की जांच में 295 करोड़ का घपला सामने आया है। मगर अभी घोटाले की राशि का दोबारा वेरीफिकेशन कराया जा रहा है। घोटाले की राशि बढ़ने की संभावना है। कुछ बैंक एकाउंट भी मिले हैं, जिस पर आगे और भी केस दर्ज होंगे। पटना से फाइनेंस विभाग की टीम भी आई हुई है। विभाग और बैंकवार विस्तृत ऑडिट किया जा रहा है।
 
एक दिन पहले ही भास्कर ने बताया था प्रिटिंग प्रेस में पासबुक अपडेट कर होता था फर्जीवाड़ा
आर्थिक अपराध इकाई के आईजी जितेंद्र सिंह गंगवार ने पत्रकारों को बताया कि इस केस की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी पुलिस को हाथ लगी है। भीखनपुर, त्रिमूर्ति चौक के पास प्रिटिंग प्रेस चलाने वाले वंशीधर झा को पुलिस ने गिरफ्तार किया है। बैंक के सर्टिफिकेट, स्टेटमेंट ऑफ एकाउंट, सरकारी पासबुक प्रिंट और अपडेट कोर बैकिंग के सॉफ्टवेयर में न होकर वंशीधर के प्रिंटिंग प्रेस में होता था। इस स्टेटमेंट को नाजीर को दे दिया जाता था। कैशबुक का मिलान उसी फर्जी अपडेट खाता और स्टेटमेंट से होता था। घोटाले से जुड़े लोग इतनी साफगोई से काम करते थे कि महालेखाकार के ऑडिट में भी ये गड़बड़ियां पकड़ में नहीं आई थीं।
 
टीम को शक था कि सरकारी पासबुक, स्टेटमेंट ऑफ एकाउंट बाहर प्रिंट हो रहा है। जब पुलिस ने प्रिटिंग प्रेस के संचालक वंशीधर को गिरफ्तार किया तो उसने फर्जीवाड़े का खुलासा कर दिया। उसके पास से वह प्रिंटर व लैपटॉप बरामद हो गया, जिससे खातों को अपडेट कर प्रिंट किया जाता था। जब्त प्रिंटर व लैपटॉप को मजिस्ट्रेट के आदेश के बाद जांच के लिए पटना लेबोरेटरी भेजा जाएगा। आईजी ने कहा कि सृजन घोटाले से जुड़ा कोई मामला यदि किसी के द्वारा आर्थिक अपराध इकाई, भागलपुर के आईजी, डीआईजी, एसएसपी को दिया जाएगा तो उनका नाम गुप्त रखा जाएगा।
 
3 डीएम के फर्जी हस्ताक्षर से निकासी, 109 करोड़ के गबन की एक और एफआईआर
बैंक व प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत से हुई सृजन घोटाले में गुरुवार देर रात तिलकामांझी थाने में 109 करोड़ के गबन की प्राथमिकी दर्ज करायी गई। जिला नजारत पदाधिकारी जितेंद्र कुमार साह ने जिला प्रशासन की ओर से इंडियन बैंक व बैंक ऑफ बड़ौदा के वर्तमान व पूर्व शाखा प्रबंधकों समेत सृजन महिला विकास सहयोग समिति लिमिटेड के तमाम पदधारकाें के खिलाफ जालसाजी, धोखाधड़ी व अवैध निकासी का मामला दर्ज कराया। इसके साथ ही यह घोटाला 600 करोड़ से ज्यादा का हो गया। प्राथमिकी में पूर्व के तीन जिलाधिकारियों क्रमश: नर्मदेश्वर लाल, संतोष कुमार मल्ल व विपिन कुमार के जाली दस्तखत से सरकारी योजनाओं के लिए आई रकम को सुनियोजित तरीके से बैंक प्रबंधकों ने सृजन के खाते में ट्रांसफर करने का आरोप लगाया गया है।
 
अब तक किस योजना और बैंक से कितना गबन
– जिला भू-अर्जन विभाग (बैंक ऑफ बड़ौदा) : 2 अरब 70 करोड़ 3 लाख 32 हजार 693 रुपए।
– जिला नजारत शाखा (बैंक ऑफ बड़ौदा) : 14 करोड़ 80 लाख, 38 हजार 296 रुपए 31 पैसे।
– मुख्यमंत्री नगर विकास योजना (इंडियन बैंक) : 10 करोड़ 26 लाख 58 हजार 295 रुपए।
– जिला नजारत शाखा (बैंक ऑफ बड़ौदा और इंडियन बैंक) : 01 अरब 09 करोड़ 81 हजार 722।
– सहरसा समेत राज्य के बाकी जिलों में : 200 करोड़।
 
चार साल पहले भी हुई थी जांच, डीएम ऑफिस से बाहर नहीं आई रिपोर्ट
जिले के आलाधिकारी खुद के बचाव में कितने भी तर्क दे रहे हों कि उन्हें अब तक इस घोटाले की जानकारी नहीं थी, मगर आम लोगों के गले के नीचे प्रशासन का यह तर्क उतर नहीं रहा है। भारतीय रिजर्व बैंक ने सितंबर 2013 में ही सृजन महिला सहयोग को-ऑपरेटिव क्रेडिट सोसायटी के खिलाफ जांच का आदेश दिया था। जिसके बाद भागलपुर के तत्कालीन जिलाधिकारी प्रेम सिंह मीणा ने दो सदस्यीय जांच कमेटी गठित कर दो दिन में रिपोर्ट देने को कहा। जांच टीम ने कुछ दिन बाद अपनी रिपोर्ट भी दे दी मगर रिपोर्ट में क्या कहा यह आज तक रहस्य ही बना रह गया। जानकारों का कहना है कि यदि तत्कालीन जिलाधिकारी ने इसकी निष्पक्ष जांच कराकर कार्रवाई की होती तब उसी समय मामला उजागर हो चुका होता।
 
दरअसल वर्ष 2013 में बिहार प्रशासनिक सेवा की अधिकारी जयश्री ठाकुर द्वारा 7.32करोड़ रुपए का चेक सृजन महिला सहयोग को-ऑपरेटिव क्रेडिट सोसायटी के माध्यम से कैश कराया गया था। जब इसकी जानकारी सीए संजीत कुमार को हुई तो उन्होंने रिजर्व बैंक की गाइड लाइन का हवाला देते हुए इसकी शिकायत रिजर्व बैंक से की थी। रिजर्व बैंक ने उस समय निबंधक सहकारी समितियों बिहार सरकार को इसकी जांच कराने का निर्देश दिया था। उसके बाद तत्कालीन जिलाधिकारी प्रेम सिंह मीणा ने दो सदस्यीय जांच कमेटी गठित की थी। जांच टीम में उस समय के जिला सहकारिता पदाधिकारी सह को-ऑपरेटिव बैंक के प्रबंध निदेशक पंकज कुमार झा और वरीय उप समाहर्ता बैंकिंग प्रभारी सुधीर कुमार को शामिल किया गया था।
 
टीम को दो दिन में ही जांच कर रिपोर्ट देने को कहा गया था मगर जांच के दौरान ही पंकज झा कथित रूप से बीमार पड़ गए। जिससे जांच समय से नहीं हो सकी। बाद में जब टीम ने अपनी जांच रिपोर्ट डीएम प्रेम सिंह मीणा को सौंपी जरूर मगर उस रिपोर्ट में क्या था यह रहस्य ही बनकर रह गया। शुक्रवार को सीए संजीत कुमार ने जांच टीम को आवेदन देकर इस पूरे मामले की जानकारी दी और इसकी भी जांच कराने की मांग की।
 
उड़ाईं गईं आरबीआई के नियमों की धज्जियां
रिजर्व बैंक के नियमों के अनुसार को-ऑपरेटिव सोसायटी का कोई सदस्य सोसायटी में अधिकतम 50 हजार रुपए का ही चेक जमा कर सकता है। मगर सृजन महिला सहयोग को-ऑपरेटिव क्रेडिट सोसायटी में करोड़ों का लेनदेन चेक के माध्यम से होता था। बैंकों को भी इस पर अबूझ कारणों से आपत्ति नहीं होती थी।
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