असम में 40 लाख असामी ठहराए गए अवैध

असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स यानि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर का दूसरा और आखिरी ड्राफ्ट जारी हो चुका है. इसके अनुसार करीब 40 लाख असमी अवैध माने गए हैं. वैध नागरिकों की दूसरी सूची 30 जुलाई को पूरे असम में ऑनलाइन जारी कर दी गई. लेकिन जिन लोगों को इस सूची में जगह नहीं मिल सकी है, उनमें नाराजगी है. किसी भी हंगामे की स्थिति को देखते हुए बड़े पैमाने पर पूरे राज्य में अर्द्धसैन्य बलों को तैनात किया गया है.असम में 40 लाख असामी ठहराए गए अवैध

क्या है एनआरसी?

– असम में लंबे समय से ये आरोप लगता रहा है कि पिछले कुछ सालों में यहां बड़े पैमाने पर बांग्लादेश अप्रवासियों ने शरण ली है. उन्होंने किसी तरह खुद को वहां बाशिंदा माने जाने के दस्तावेज भी तैयार करा लिए हैं. लेकिन इन अप्रवासियों के कारण कई तरह की समस्याएं असम में पैदा हो रही है. असम में पिछले तीन दशकों में इसे लेकर कई बड़े आंदोलन हुए कि अवैध अप्रवासियों को असम से बाहर किया जाए. 1985 में इस संबंध में एक समझौता हुआ. एनआरसी उसी की परिणति है. एनआरसी का मतलब है नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स यानि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर में नाम रजिस्टर्ड आना.

एनआरसी की दूसरी सूची के बाद क्या हाल है?

– असम में सरकार ने नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (एनआरसी) का पहला ड्राफ़्ट 31 दिसंबर 2017 को जारी किया था. इसमें 3.29 करोड़ लोगों में केवल 1.9 करोड़ को भारत का वैध नागरिक माना गया. 30 जुलाई 2018 को जारी दूसरे और आखिरी ड्राफ्ट में 3.29 करोड़ आवेदकों में 2.90 करोड़ को वैध नागरिक पाया गया. इसका मतलब हुआ कि इस फाइनल ड्राफ्ट में करीब 40 लाख लोगों के नाम नहीं है. इन लोगों पर देश से बाहर किए जाने का खतरा मंडरा रहा है.

इन 40 लाख लोगों के सामने कोई विकल्प बचा है?

– हां, सरकार इन्हें एक मौका और देने जा रही है. हालांकि उसकी कसौटियों पर उतरना आसान नहीं होगा. जिन लोगों के नाम दूसरे और आखिरी एनसीआर ड्राफ्ट में नहीं आ पाए हैं. उन्हें असम के संबंधित सेवा केंद्रों में जाकर एक फॉर्म भरना होगा. ये फॉर्म सात अगस्त से 28 सितंबर तक उपलब्ध रहेगा. इस फार्म को जमा करने के बाद अधिकारी उन्हें बताएंगे कि उनका नाम क्यों सूची में नहीं आ पाया. इसके आधार पर उन्हें फिर एक और फॉर्म भरना होगा, जो 30 अगस्त से 28 सितंबर तक भरा जाएगा. हालांकि ये पूरी प्रक्रिया ऐसी है कि बहुत कम लोगों को इसमें हरी झंडी मिल पाएगी.

जिन लोगों के नाम रजिस्टर में नहीं आ पाए हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई अभी से शुरू हो जाएगी?

– नहीं, ऐसा नहीं होगा. जिन लोगों के नाम एनआरसी में नहीं आ पाए हैं. उनके पास 30 सितंबर का समय तो है ही. लेकिन उसके बाद उन पर ना केवल गिरफ्तारी की तलवार लटक जाएगी बल्कि उन्हें एक तय समय के भीतर देश छोड़ने का फरमान सुनाया जाएगा. इसलिए असम में जिनका नाम एनआरसी में नहीं आ पाया, वो डरे हुए हैं.

क्या इन लोगों को वाकई बाहर जाना होगा?

– जिस तरह असम में अवैध बांग्लादेशी नागरिकों को लेकर दशकों से हालत विस्फोटक रहे हैं. इसलिए 40 लाख नागरिकों में वैधता की पुष्टि नहीं कर पाने वालों को बाहर जाना ही होगा. उन्हें वापस उनके देश भेजा जाएगा.

क्या बांग्लादेश इन्हें स्वीकार करेगा?

– बांग्लादेश ने पिछले दिनों कहा था कि वो असम में अवैध तौर पर रह रहे अपने नागरिकों को वापस लेने को तैयार है.

क्या एनआरसी में लोगों के नाम आने में अनियमितताएं भी हुई हैं?

– राज्य सरकार का दावा है कि एनआरसी में जिन लोगों के नाम आए हैं. वो पूरी तरह पुख्ता दस्तावेजों के आधार पर आए हैं. एनआरसी के राज्य समन्वयक प्रतीक हाजेला का कहना है कि हमने सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइंस पर काम कर वांछित दस्तावेजों के आधार पर ही लिस्ट तैयार की है. इसमें कहीं भी अनियमितता की गुंजाइश नहीं है. लेकिन इसमें गड़बड़ियों के आरोप लगातार सामने आए हैं. बहुत से सही लोगों के नाम भी इस सूची से गायब हैं.

– एनआरसी में लोगों के नाम आने की शर्तें क्या थीं?

– पहली शर्त ये थी कि उसे असम और देश का वाजिब नागरिक तभी माना जाएगा, अगर वो 31 जुलाई 1971 से असम में रह रहा हो, इसके लिए उसे 14 तरह के प्रमाण पत्र उपलब्ध कराने थे. हजारों राज्य सरकार के कर्मचारियों-अधिकारियों ने घर-घर जाकर रिकार्ड्स चैक किए. वंशावली को आधार बनाकर जांच की गई. NRC अपडेशन के आधार मुख्य तौर पर तीन डी हैं – डिटेक्शन (पता लगाना), डिलीशन (नाम हटाना) और डिपोर्टेशन (वापस भेजना).

25 मार्च 1971 को ही क्यों समय सीमा बनाया गया?

– 1971 में बांग्लादेश के स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान वहां से बड़े पैमाने पर पलायन कर लोग भारत भाग आ गए थे. फिर वो यहीं बस गए. इसलिए 31 मार्च 1971 को समयसीमा बनाया गया.

असम में किस तरह के आंदोलन और हिंसा इसे मामले पर पिछले कुछ सालों में हुए हैं

– स्थानीय लोगों और घुसपैठियों में कई बार हिंसक वारदातें हुई. 1980 के दशक से ही यहां घुसपैठियों को वापस भेजने के आंदोलन हो रहे हैं. सबसे पहले घुसपैठियों को बाहर निकालने का आंदोलन 1979 में ऑल असम स्टूडेंट यूनियन और असम गण परिषद ने शुरू किया. ये आंदोलन करीब 6 साल तक चला. हिंसा में हजारों लोगों की मौत हुई.

1985 में केंद्र सरकार से इस बारे में क्या समझौता हुआ था?

– 1985 में केंद्र सरकार और आंदोलनकारियों के बीच समझौता हुआ. तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और स्टूडेंट यूनियन और असम गण परिषद के नेताओं में मुलाकात हुई. तय हुआ कि 1951-71 से बीच आए लोगों को नागरिकता दी जाएगी. 1971 के बाद आए लोगों को वापस भेजा जाएगा. लेकिन ये समझौता फेल हो गया. 2005 में राज्य और केंद्र सरकार में एनआरसी लिस्ट अपडेट करने के लिए समझौता किया.

ये मामला सुप्रीम कोर्ट कैसे पहुंचा?

– वर्ष 2005 में समझौता तो हुआ लेकिन उसके क्रियान्वयन में कांग्रेस की केंद्र सरकार बहुत सुस्त दिखी. लिहाजा ये मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया. 2015 में कोर्ट ने एनआरसी लिस्ट अपडेट करने का भी आदेश दे दिया. आखिरकार 2017 सुप्रीम कोर्ट की डेडलाइन खत्म होने से पहले ही आधी रात राज्य सरकार ने एनआरसी की पहली लिस्ट जारी की. अब दूसरी और फाइनल लिस्ट भी जारी हो चुकी है.

बीजेपी का क्या इस मामले पर क्या रुख रहा है?

– बीजेपी ने 2014 में इसे चुनावी मुद्दा बनाया. चुनावी प्रचार में बांग्लादेशियों को वापस भेजने की बातें कहीं. 2016 में राज्य में भाजपा की पहली सरकार बनी. अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशियों को वापस भेजने की प्रक्रिया फिर तेज हो गई. राजनीतिक नजरिए से देखा जाए तो बीजेपी के लिए अवैध बांग्लादेशियों का मुद्दा सबसे बड़ा रहा.

– क्या अवैध अप्रवासियों को लेकर पेचिदगियां भी आएंगी?

– बिल्कुल ऐसा होने की आशंका है. क्योंकि बांग्लादेश की भी इन अप्रवासियों को लेने की अपनी शर्तें होंगी. फिर इतनी बड़ी संख्या लोगों को कैसे बाहर निकालने से पहले हिरासत शिविरों में भेजा जाएगा? क्या बच्चों को मां से अलग कर दिया जाएगा? क्या घर के बुजुर्गों को अपनी बाकी की जिन्दगी सीखचों के पीछे बितानी होगी? ये कदम मानवाधिकार का बड़ा संकट खड़ा करेगा. हालांकि इसमें कोई शक नहीं कि असम में अवैध अप्रवासन बड़ी समस्या है.

मुस्लिम इससे खासतौर पर क्यों नाराज हैं?

– कई मुस्लिम संगठनों का आरोप है कि इस प्रक्रिया के जरिए केवल बंगाली बोलने वाले मुस्लिमों को निशाना बनाया जा रहा है. हालांकि बंगाली भाषी हिंदुओं की एक बड़ी संख्या भी पर गाज गिरी है. लेकिन केंद्र में मौजूदा सत्तारूढ़ बीजेपी ने पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यकों की भारतीय नागरिकता को सुविधाजनक बनाने का एक बिल पेश करने का प्रस्ताव देकर जटिलता को और बढ़ा दिया है. इसका मतलब है कि असम में रहने वाले बंगाली बोलने वाले हिंदू अवैध आप्रवासी अपनी नागरिकता बचा सकेंगे.

असम के कौन से जिले इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हैं?

– बारपेटा, दरांग, दीमा, हसाओ, सोनितपुर, करीमगंज, गोलाघाट और धुबरी.

एनआरसी देश के कितने राज्यों में लागू है?
– असम देश का एकमात्र ऐसा राज्य है, जिसका एनआरसी है. इसे पहली बार 1951 में तैयार किया गया था. उस वक्त राज्य के नागरिकों की संख्या 80 लाख थी.

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