देश में 4 लाख भिखारी, पहले स्थान पर बंगाल तो दूसरे नंबर पर अपना प्रदेश

भिखारियों को लेकर हमारे देश में सवाल उठते रहे हैं। कोई इसे सामाजिक कोढ़ मानते हैं तो कोई इसे बेकारी और अपराध से जोड़कर देखते हैं। भिखारियों पर नकेल कसने के लिए कई बार हमारी सरकारें प्रयास भी करती हैं लेकिन भीख मांगने वालों की संख्या घटने के बजाय बढ़ती ही जाती है। इधर केंद्र सरकार ने देश में भिखारियों की संख्या का आंकड़ा जारी किया है। लोकसभा में पेश रिपोर्ट के मुताबिक भारत में कुल 4,13,760 भिखारी हैं जिनमें 2,21,673 भिखारी पुरुष और 1,91, 997महिलाएं हैं।

लोकसभा में सामाजिक कल्याण मंत्री थावरचंद गहलोत ने यह डाटा पेश किया। इसके मुताबिक, भिखारियों की संख्या में पश्चिम बंगाल पहले पायदान पर है। दूसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश तीसरे नंबर पर आंध्र प्रदेश और चौथे नंबर पर बिहार का स्थान है। सबसे कम भिखारियों की संख्या लक्षद्वीप में है। यहां केवल 2 भिखारी हैं। मणिपुर और पश्चिम बंगाल में महिला भिखारियों की संख्या पुरुषों से ज्यादा है। बता दें कि पश्चिम बंगाल में भिखारियों की संख्या 81224 है तो उत्तर प्रदेश में भिखारियों की संख्या 65835 के करीब है। आंध्र में 30218 भिखारी हैं तो बिहार में 29723 भिखारी भीख मांगकर अपना जीवन पाल रहे हैं।

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उधर मध्य प्रदेश में कुल 28,695 भिखारी हैं, जिनमें से 17,506 पुरुष और 11,189 महिलाएं हैं। वहीं छत्तीसगढ़ में भिखारियों का कुल आंकड़ा 10,198 है। इनमें 4995 पुरुष और 5203 महिलाए हैं। आंकड़ों के हिसाब से भिखारियों की संख्या के लिहाज से पूर्वोत्तर के राज्यों की स्थिति काफी अच्छी है। पूर्वोत्तर के राज्यों में भिखारियों की संख्या बहुत कम है। अरुणाचल प्रदेश में सिर्फ 114 भिखारी हैं, नगालैंड में 124 और मिजोरम में सिर्फ 53 भिखारी ही हैं। संघ शासित प्रदेश दमन और दीव में 22 भिखारी हैं तो लक्षद्वीप में सिर्फ 2 ही भिखारी हैं।

भारत में भीख मांगना अब पेशा बन गया है। यह अब किसी जात और धर्म से जुड़ा नहीं रहा। अनाथ लोग अगर भीख मांगे तो कुछ बात समझ में भी आती है लेकिन जब तंदुरुस्त लोग इस पेशे से जुड़ जाए तो कई तरह के सवाल खड़े होने लगते हैं। देश में तो कई गांव ऐसे चिन्हित किये गए हैं जहां के अधिकतर लोग कोलकता और मुंबई जाकर भीख मांगने का ही काम करते हैं। कई भिखारी लाखपति और करोड़पति भी पाए गए हैं। इस पेशा को गरीबी से ज्यादा बेरोजगारी से जोड़कर भले ही देखा जाता हो लेकिन इतना तो कहा ही जा सकता है कि किसी भी सभ्य समाज में भीख मांगने का काम सरकार की नीतियों पर ही सवाल उठाते हैं।

 
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