20 साल में पहली बार मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से नहीं कोई मुस्लिम उम्मीदवार

लोकसभा चुनाव में 20 साल बाद ऐसी परिस्थितियां बनी है कि किसी भी राष्ट्रीय राजनीतिक दल ने मुजफ्फरनगर संसदीय सीट पर कोई मुस्लिम प्रत्याशी चुनावी मैदान में नहीं उतारा है। बीते 20 सालों में 15 साल यहां मुस्लिम ही सांसद रहे।
इससे पहले ऐसे हालात 1991 में बने थे, जब भाजपा के नरेश बालियान ने मुफ्ती मोहम्मद सईद को हराकर जीत हासिल की थी। लोकसभा चुनाव के इतिहास में 1952 से अब तक पहली बार पक्ष-विपक्ष दोनों में जाट प्रत्याशी आमने-सामने होंगे।
वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव मुजफ्फरनगर में नया इतिहास लिखेगा। 20 साल में पहली बार ऐसा हो रहा है कि मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव मैदान में नहीं होगा। यह तब हो रहा है जब बीते 20 सालों में 15 साल मुस्लिम ही सांसद रहे हैं।

खबर के अनुसार, 1999 में सईदुज्जमा कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में जीते। 2004 में मुनव्वर हसन सपा से और 2009 में कादिर राना बसपा से चुनाव में विजयी रहे। 2014 में बीजेपी के डॉ संजीव बालियान ने कादिर राना को हरा जीत का परचम लहराया।

इससे पहले 1991 में भी ऐसे ही हालात बने थे। भाजपा के नरेश बालियान ने देश के गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद को हराया था। 1996 और 1998 के लोकसभा चुनाव में मुस्लिम प्रत्याशी मुख्य मुकाबले से बाहर हो गए।
1991 से पहले के चुनावों में भी यहां मुस्लिम राजनीति का दबदबा रहा। 1967 में सीपीआई के लताफत अली खां जीते, 1977 में लोकदल के सईद मुर्तजा, 1980 में जनता दल के गय्यूर अली खां सांसद बने। 1989 में मुफ्ती मोहम्मद सईद चुनाव जीते।
1952 से लेकर अब तक केवल सात बार ऐसा हुआ जब मुसलमान मुख्य मुकाबले से बाहर रहा, इनमें तीन चुनाव सबसे शुरू के हैं। सात बार ऐसा हुआ है कि जाट प्रत्याशी यहां मुकाबले से बाहर रहा।

न पक्ष में जाट था और न विपक्ष में। मगर इस बार ऐसा पहली बार हो रहा है कि पक्ष और विपक्ष में दोनों प्रत्याशी जाट हैं। मुस्लिम सियासत किनारे पर आकर खड़ी हो गई है।

Back to top button