100 साल से लगातार बढ़ रही है ग्लोबल वार्मिंग, पृथ्वी के जलमग्न होने सहित ये हैं बड़े खतरे

दुनिया के लिए बड़ा खतरा बनती जा रही ग्लोबल वार्मिंग बीते 100 सालों में कम होने की बजाय लगातार बढ़ती जा रही है। हालात दूसरे विश्व युद्ध के बाद कई गुना अधिक खराब हो गए हैं। नासा की एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि साल 2018 में ग्लोबल वार्मिंग ने लगातार नया रिकॉर्ड कायम किया है।

यह ऐसा पांचवां साल है जिसमें ग्लोबल एवरेज सरफेस टेंपरेचर में लगातार वृद्धि हुई है। इसका मतलब है कि साल 1880 में जो स्तर रिकॉर्ड हुआ था, यह उससे भी कहीं ऊंचा है। इस समय अवधि में 12 में से 8 महीने यानी कि जनवरी से लेकर नवंबर तक अन्य वर्षों की तुलना में अधिक गर्म साबित हुए थे। 

इस खतरे से निपटने के लिए दुनिया के वैज्ञानिक और संस्थाएं बहुत से प्रयास कर रहे है लकिन जो आंकड़े सामने आ रहे हैं वह बेहद निराशाजनक हैं। अध्ययन में सामने आया है कि बीते 100 सालों के बीच चाहे जितने भी प्रयास क्यों न किए गए हों, लेकिन ग्लोबल वार्मिंग में कोई कमी नहीं आई है। 

दूसरे विश्व युद्ध के बाद और खराब हुए हालात

दूसरे विश्व युद्ध की भयावयता के बारे में तो हर कोई जानता है। जिसमें काफी बड़ी संख्या में लोग मारे गए थे। इस घटना के बाद से दुनिया के तापमान में कमी होने की बजाय और बढ़ोतरी होती गई। 

मल्टी डेकडान कूलिंग और ग्लोबल वार्मिंग के बीच प्रतिस्पर्धा

प्रतीकात्मक तस्वीर – फोटो : pexels.com
आने वाले समय में मल्टी डेकडान कूलिंग और ग्लोबल वार्मिंग के बीच प्रतिस्पर्धा देखने को मिल सकती है। इसका मतलब है कि तापमान का बढ़ना तो जारी रहेगा, लेकिन धरती को ठंडा रखने वाले कारक भी अपना काम जारी रखेंगे। यह कहना है चाइनीज अकेडमी ऑफ सांइसेज के जिंगांग दाई का। उन्होंने कहा कि अध्ययन से इस बात का संकेत मिलता है कि अगर मल्टी डेकडान जलवायुचक्र की पुनरावृत्ति होती है तो ये प्रतिस्पर्धा होगी।

19वीं शाताब्दी के बाद 2 डिग्री तक बढ़ा तापमान

अध्ययन में पता चला है कि 19वीं शाताब्दी के बाद से सतह के औसत तापमान में 2 डिग्री फारेनहाइट की वृद्धि हुई है। वहीं बीते 35 सालों में सतह की गर्माहट भी बढ़ी है, जिसका सीधा असर मौसम में होते बदलाव के तौर पर देखा जा सकता है। माना जा रहा है कि साल 2100 तक दुनिया के औसत तापमान में डेढ़ से छह डिग्री तक की वृद्धि होगी। जो इस वक्त 15 डिग्री सेंटीग्रेड है।

बढ़ रहा है जलस्तर

बढ़ते तापमान के कारण हिमखंड पिघल रहे हैं, जिससे समुद्री जल स्तर बढ़ता जा रहा है। इससे बाढ़ का खतरा तो बढ़ ही रहा है साथ ही समुद्री पानी भी गर्म हो रहा है। जो समुद्री जीवों के लिए जानलेवा है। ऑस्ट्रेलिया के शोधकर्ताओं का कहना है कि अगर ऐसे ही समुद्री जल का स्तर बढ़ता रहा तो इस शाताब्दी तक दुनियाभर में सागरों का जल 30 सेंटीमीटर तक ऊपर आ सकता है। 

खोजकर्ताओं ने पाया कि साल 1870 से 2004 के बीच समुद्री जल के स्तर में 19.5 सेंटीमीटर की वृद्धि हुई है। आने वाले 50 सालों में ये गति और अधिक बढ़ जाएगी। बता दें इस अध्ययन के निष्कर्षों को विज्ञान जर्नल जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित किया गया है। वहीं इससे जुड़ा एक चौंकाने वाला खुलासा अंतर्देशीय पैनल की एक रिपोर्ट में किया गया है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 1990 से 2100 के बीच समुद्री जल का स्तर 9 सेंटीमीटर से 88 सेंटीमीटर के बीच बढ़ सकता है। 

द्वीपों के डूबने का खतरा बढ़ा

समुद्र के बढ़ते जल स्तर का खतरा केवल बाढ़ आने तक ही सीमित नहीं रहेगा। बल्कि इससे द्वीपों का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाएगा। जल का स्तर बढ़ने से जमीन के लगातार डूबते जाने का खतरा होगा। इसके अलावा तटीय क्षेत्रों में पानी का खारापन भी बढ़ जाएगा। जो तटीय भूमि, तटीय जैव संपदा और वहां के पारिस्थितिकी तंत्र को बिगाड़ सकता है। जिसके कारण लोगों को अपना आवास मजबूरन छोड़ना पड़ेगा।

कई देशों में हो रही अधिक वर्षा 

ग्लोबल वार्मिंग से कई अमेरिकी, यूरोपीय और एशियाई देशों में अधिक वर्षा हो रही है। वहीं कई इलाके ऐसे भी हैं जिन्हें सूखे का सामना करना पड़ रहा है। अगर हम भारत की बात करें तो यहां भी बीते एक दशक में बर्फबारी, सूखा, बाढ़ और गर्मी बढ़ी है। इसी कारण से बीते 15 सालों में दिल्ली सहित अन्य मैदानी इलाकों में अधिक बारिश हुई है। वहीं उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों में असामान्य बर्फबारी बढ़ी है।

पूरी पृथ्वी हो सकती है जलमग्न

अंटार्कटिका के तापमान में बीते 100 सालों में दो गुना अधिक वृद्धि हुई है। जिससे इसके बर्फीले क्षेत्रफल में कमी आई है। अमेरिका के नेशनल सेंटर फॉर एटमॉसफेरिक रिसर्च के एक अध्ययन में कहा गया है कि अगर ग्लोबल वार्मिंग ऐसे ही जारी रही तो उत्तर ध्रुवीय समुद्र में साल 2040 तक बर्फ दिखनी ही बंद हो जाएगी। तब ये इलाका एक समुद्र में तब्दील हो चुका होगा। इस बर्फ की चादर के कम होने का असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा और वहां के तापमान में वृद्धि होगी। वैज्ञानिकों का तो यह भी कहना है कि अगर यहां की सारी बर्फ पिघल गई तो समुद्र का स्तर 230 फीट तक बढ़ जाएगा, जिससे पूरी पृथ्वी जलमग्न हो जाएगी।

मनुष्य पर पड़ रहा बुरा प्रभाव

तापमान बढ़ने से कई तरह की बीमारियां बढ़ रही हैं। इसका एक कारण ये भी है कि ऐसा होने से साफ जल की कमी होती जा रही है, तेजी से शुद्ध हवा खत्म हो रही है, लोगों को ताजा फल और सब्जियां भी नहीं मिल पा रही हैं। इससे पशु पक्षियों को पलायन करना बढ़ रहा है और इनमें से कई प्रजातियां या तो लुप्त हो चुकी हैं, या फिर लुप्त होने की कगार पर हैं।

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