हिंदी, घर की देहरी से आगे बढ़ते कदम

महेश पांडेय
कहने को हम सालभर में दो बार ‘हिंदी दिवस’ मनाते हैं लेकिन यह पितृपक्ष की तरह एक प्रकार की रस्म अदायगी ही है। 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया था, तभी से 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाने की परिपाटी चली आ रही है, दूसरी ओर 10 जनवरी 1975 को नागपुर में मनाए पहले विश्व हिंदी सम्मेलन को याद करते हुए ‘विश्व हिंदी दिवस’ मनाया जाता है। 10 जनवरी 2006 को तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस दिन को विश्व हिंदी दिवस मनाने की घोषणा की थी। इस अवसर पर भारतीय दूतावासों/उच्चायोगों में हिंदी दिवस पर विभिन्न कार्यक्रम मनाए जाते हैं। नार्वे में पहला विश्व हिंदी दिवस भारतीय दूतावास में मनाया गया। दूसरा व तीसरा विश्व हिंदी दिवस भारतीय-नार्वे सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम के तत्वावधान में लखनऊवासी डॉ. सुरेश चंद्र शुक्ला की अध्यक्षता में मनाया गया।

मुंशी प्रेमचंद ने कहा था ‘जब तक आपके पास राष्ट्रभाषा नहीं है आपका कोई राष्ट्र भी नहीं है। हमारी पराधीनता का सबसे अपमानजनक, सबसे बाधक, सबसे कठोर अंग, अंग्रेजी भाषा का प्रभुत्व है। समय जीवन के हर एक विभाग में अंग्रेजी ही हमारी छाती पर मूंग दल रही है।’ प्रेमचंद्र जी के इस कथन को 80 साल से अधिक हो गए हैं, लेकिन घरेलू मोर्चे पर हिंदी की दशा में परिवर्तन भी आया तो अधोमुखी, गांव-गांव, गली-गली खुले कॉन्वेंट स्कूलों ने राष्ट्रभाषा कही जाने वाली हिदी को धीरे-धीरे गर्त में ढकेलने का काम किया है।
उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद की इस वर्ष की बोर्ड परीक्षा में 8 लाख छात्र हिंदी में फेल हो गए थे। 2018-19 में यह आंकड़ा और ज्यादा था। उत्तर प्रदेश में जन्मे लगभग हर व्यक्ति की मातृभाषा हिंदी है। थोड़े बहुत जातीय समूहों को छोड़कर यह आंकड़ा न शिक्षा परिषद के लिए चिंताजनक है, न राजनीतिक दलों और सत्ता प्रतिष्ठानों के लिए। यहीं बोर्ड परीक्षाओं में बड़ी संख्या में हिंदी में छात्रों के फेल होने से समाज में कोई हलचल पहल नहीं दिखाई देती है तो यह साफ है कि भाषा को लेकर हम सावधान नहीं हैं। वर्तमान की दौड़ में हिंदी के पिछड़ने के लिए भावी पीढ़ी नहीं बल्कि अभिभावक और सरकारों पर ज्यादा जिम्मेदारी आयत होती है।
अपने देश में हिन्दी की दुर्दशा के बारे में एक साक्षात्कार में नामवर सिंह जी ने कहा था- “हिन्दी थोपने के विरोध के पीछे यह तर्क कि राष्ट्रभाषा होते ही हिन्दी रोजगार की भाषा हो जायेगी, सरकारी नौकरियों में, बैंको में। इससे गैर हिन्दी भाषी लोगों को यह लगा कि जिनकी मातृभाषा हिन्दी है वे लाभान्वित हो जायेंगे और गैर हिन्दी भाषी रोजगार की दौड़ में पिछड़ जायेंगे। कुछ गिने चुने लोगों को हिन्दी के नाम पर नौकरियां देकर हमने देखा कि इससे हिन्दी बोलने और समझने वालों को एक प्रकार की छूट मिल गयी। यह सब एक सोची समझी नीति के तहत किया गया कि हिन्दी का इस तरह राजभाषा ऐसे बनाओ कि बनने ही न पाये और लोगों को गुस्सा अंग्रेजी की बजाय हिन्दी पर उतरे। शासकवर्ग की यह भाषा नीति सोची समझी थी और आज भी है।”
इन सारी साजिशों के बावजूद हिन्दी का परचम उत्तर के राज्यों के अलावा न केवल दक्षिण भारत बल्कि पूरी दूनिया में लहरा रहा है। महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने देश के कोने कोने में घूमने के बाद 15 अगस्त 1960 को ‘धर्मयुग’में प्रकाशित अपने लेख में कहा था- “हिन्दी राष्ट्र की भाषा है, क्योंकि हिन्दी राष्ट्र को एकता के सूत्र में बद्ध करने एवं विभिन्न प्रांतों के निवासियों से मिलने में सहायक है, इस दृष्टिकोण से हिन्दी की अपनी निजी विशेषताएं हैं। मेरे देशव्यापी भ्रमण का यही उद्देश्य समझना था कि हिन्दी ही एकमात्र भाषा है जो किसी प्रांत की नहीं समूचे राष्ट्र की है।”
भले ही उत्तर भारतियों में हिन्दी के प्रति लगाव और पठन-पाठन से अरुचि बढ़ रही हो हिन्दी के बढ़ते कदम सरकारों और ब्यूरोक्रेसी की अनिच्छा के बावजूद पूरे विश्व में अपने पैर फैला रही है। 1977 में जनता पार्टी की सरकार में विदेश मंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने न्यूयार्क में संयुक्त राज्य महासंघ के वार्षिक अधिवेशन में पहली बार हिन्दी में भाषण देकर हिन्दी प्रमियों को गदगद कर दिया। लम्बे अंतराल के बाद सितम्बर 2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने संयुक्त राष्ट्र टिकाऊ विकास शिखर सम्मेलन को हिन्दी में सम्बोधित किया। विदेश मंत्री सुष्मा स्वराज ने 70वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा को क्रमश: 2015 और 2016 में सम्बोधित किया, इनके हिन्दी भाषणों के अनुवादक व्यवस्था न्यूयार्क में भारत के स्थायी मिशन द्वारा विशेष व्यवस्थाओं के तहत की गयी। समय-समय पर कई अन्य भारतीयों ने संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न मंचों को हिन्दी में ही सम्बोधित किया। 13 जुलाई 2007 को न्यूयार्क में 8वें विश्व हिन्दी सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र संघ ने हिन्दी में वेबसाइट लांच की, भारतीय गौरव को बढ़ाने वाला और कार्य भी हुए जिसमें रेडियो बुलेटिन का प्रसारण और सोशल मीडिया पर हिन्दी का उद्भव शामिल है।
2008 में मॉरीशस में विश्व हिन्दी सचिवालय की स्थापना की गयी। 18 से 20 अगसत 2018 तक मॉरिशस में विश्व हिन्दी सम्मेलन आयोजित किया गया। फिजी में हिन्दी को आधिकारिक दर्जा मिला हुआ है। इसे फिजियन हिन्दी या फिजियन हिन्दुस्तानी कहते हैं। मॉरिशस और फिजी के अलावा हिन्दी पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, संयुक्त अरब अमीरात, युगांडा, गुयाना, सरीनाम, त्रिनिदाद, दक्षिण अफ्रीका सहित कई देशों में विभिन्न तरह से बोली जाती है। कुछ व्यक्ति हिन्दी को जनसंख्या के आधार पर विश्व की दूसरी सबसे अधिक बोले जाने वाली भाषा बताते हैं तो कुछ विश्व में पांचवें नंबर की। हिन्दी के बढ़ते कद का इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि 2017 में ऑक्सफोर्ड डिक्सनरी ने ‘अच्छा, बड़ा दिन, बच्चा और सूर्य जैसे हिन्दी शब्दों को अपने कोश में जगह दी। विश्व आर्थिक मंच हिन्दी को विश्व की शीर्ष 10 भाषाओं में से एक मानता है। दुनियाभर में 157 से अधिक विश्वविद्यालयों में आज हिन्दी पढ़ायी जा रही है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा में कुल सात आधिकारिक भाषाएं हैं, इनमें अंग्रेजी, अरबी, चीनी (मंदारिन), फ्रांसीसी, स्पेनिश, रूसी और स्पेनी को राजभाषा की मान्यता है लेकिन इनमें से केवल दो भाषाओं अंग्रेजी और फ्रांसीसी को संचालन की भाषा का दर्जा मिला है। हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनाये जाने के लिए कई संगठन अलग-अलग प्रयास कर रहे हैं। उत्तराखंड का आधारशिला फाउंडेशन वर्ष 2004 से इस दिशा में प्रयास कर रहा है। फाउंडेशन भारतीय दूतावासों और उच्चायोगों के सहयोग से साल में कम से कम छह कार्यक्रम आयोजित करता है। इन कार्यक्रमों में पारित प्रस्तावों को भारत सरकार को भेजा जाता है। दिसंबर 2019 कोलम्बो में आयोजित सम्मेलन और भ्रमण के दौरान यह बात उभरकर आयी कि श्रीलंका के निवासी सिंहली और तमिल के बाद हिन्दी को ज्यादा पसंद करते हैं। कई जगह तो स्थानीय लोग यह मांग कर रहे थे कि विविध भारती के प्रसारण चैनलों की क्षमता बढ़ायी जाय। वहां ऐसे भी लोग मिले जिन्होंने संयुक्त अरब अमीरात, ओमान और केरल जाकर हिन्दी सीखी।
ऐसा ही अनुभव पूर्वोत्तर भारत में देखने को मिला। वहां केंद्रीय हिन्दी निदेशालय विभिन्न प्रांतों में हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत है। विविध भारती सुनकर यहां के लोग अपना मनोरंजन ही नहीं करते अपना हिन्छी ज्ञान भी बढ़ाते हैं। मणिपुर केंद्रीय विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग से नवंबर 2018 तक 10 लोग पीएच.डी कर चुके थे और छह लोग पंजीकृत थे। कुछ संगठन भी निजी तौर पर हिन्दी का झंडा उठाए हुए हैं। अरुणाचल में जनजातियों की संख्या अधिक होने के बावजूद वहां हिन्दी संपर्क भाषा का काम करती है। इन राज्यों में आमतौर पर हिन्दी का कोई विरोध नहीं। शिलांग (मेघालय) ‘नेडू का हिन्दी विभाग काफी सशक्त है, असम और मेघालय से हिन्दी की कई पत्रिकाएं और दैनिक अखबार प्रकाशित होते हैं।
फिर बात विदेश की, स्टडी टूर के दौरान देखा कि यूरोप में भी हिन्दी धीरे-धीरे अपने लिए जगह बना रही है। पाकिस्तान और बांग्लादेश के अलावा भारत से गये जो लोग व्यापार में लगे हैं वे हिन्दी को अप्रत्यक्ष रूप से बढ़ावा देने में लगे हैं। कई जगह तो अफ्रीकी मूल के लोग तन्मय होकर हिन्दी फिल्मी गीत गाते मिल जाते हैं। पेरिस में एफिल टॉवर और अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर हिन्दी देखकर सुखद आश्चर्य होता है। ऐसा ही अनुभव स्विटजरलैंड में रिगलिस में आइसक्रीम पार्लर में हिन्दी में लिखे शब्द बरबस भारतीय ग्राहकों को अपनी ओर खींच लेते हैं।
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