महादेव का यह अद्भुत मंदिर हो जाता है गायब हर दिन!!

स्तंभेश्वर महादेव मंदिर भारत के सबसे रहस्यमय मंदिरों में से एक है। स्तंभेश्वर महादेव मंदिर को गायब मंदिर भी कहा जाता है। इस मंदिर को गायब मंदिर कहने के पीछे एक अनोखी घटना है। वह घटना वर्ष में कई बार देखने को मिलती है, जिसकी वजह से यह मंदिर अपने आप में खास है। स्तंभेश्वर महादेव मंदिर गुजरात राज्य के वड़ोदरा शहर से लगभग 60 किमी. की दूरी पर स्थित कवि कम्बोई गांव में है। यह मंदिर अरब सागर में खंभात की खाड़ी के किनारे स्थित है। 

महादेव का यह अद्भुत मंदिर हो जाता है गायब हर दिन!!
गायब मन्दिर के नाम से भी जाना जाता है महादेव के इस मन्दिर को

समुद्र के बीच में स्थित होने की वजह से इसकी खूबसूरती देखने लायक है। समुद्र के बीच स्थित होने के कारण न केवल इस मंदिर का सौंदर्य बढ़ता है बल्कि एक अनोखी घटना भी देखने को मिलती है।  इस मंदिर के दर्शन केवल कम लहरों के समय ही किए जा सकते है। ऊंची  लहरों के समय यह मंदिर डूब जाता है। पानी में डूब जाने के कारण यह मंदिर दिखाई नहीं देता, इसलिए ही इसे गायब मंदिर कहा जाता है। ऊंची लहरें खत्म होने पर मंदिर के ऊपर से धीरे-धीरे पानी उतरता है और मंदिर दिखने लगता है। लोकमान्यता के अनुसार स्तंभेश्वर महादेव मंदिर में स्वयं शिवशंभु विराजते हैं इसलिए समुद्र देवता स्वयं उनका जलाभिषेक करते हैं। लहरों के समय शिवलिंग पूरी तरह से जलमग्न हो जाता है और यह परंपरा सदियों से सतत चली आ रही है। यहां स्थित शिवलिंग का आकार 4 फुट ऊंचा और दो फुट के घेरे वाला है। इस प्राचीन मंदिर के पीछे अरब सागर का सुंदर नजारा नजर आता है।  

स्कंदपुराण के अनुसार शिव के पुत्र कार्तिकेय छह वर्ष की आयु में ही देवसेना के सेनापति नियुक्त कर दिए गए थे। इस समय ताड़कासुर नामक दानव ने देवताओं को अत्यंत आतंकित कर रखा था। देवता ऋषि-मुनि और आमजन सभी उसके अत्याचार से परेशान थे। ऐसे में भगवान कार्तिकेय ने अपने बाहुबल से ताड़कासुर का वध कर दिया। उसके वध के बाद कार्तिकेय को पता चला कि ताड़कासुर भगवान शंकर का परम भक्त था। यह जानने के बाद कार्तिकेय काफी व्यथित हुए। फिर भगवान विष्णु ने कार्तिकेय से कहा कि वे वधस्थल पर शिवालय बनवाएं। इससे उनका मन शांत होगा। भगवान कार्तिकेय ने ऐसा ही किया। फिर सभी देवताओं ने मिलकर महिसागर संगम तीर्थ पर विश्वनंदक स्तंभ की स्थापना की। पश्चिम भाग में स्थापित स्तंभ में भगवान शंकर स्वयं विराजमान हुए। तब से ही इस तीर्थ को स्तंभेश्वर कहते हैं। 

यहां पर महिसागर नदी का सागर से संगम होता है। स्तंभेश्वर के मुख्य मंदिर के नजदीक ही भगवान शिव का एक और मंदिर तथा छोटा सा आश्रम भी है जो समुद्र तल से 500 मीटर की ऊंचाई पर है। इस मंदिर की यात्रा के लिए पूरे एक दिन-रात का समय रखना चाहिए। ताकि यहां होने वाले चमत्कारी दृश्य को देखा जा सके। सामान्यतः सुबह के समय ज्वार का प्रभाव कम रहता है, तो उस समय मंदिर के अंदर जाकर शिवलिंग के दर्शन किए जा सकते है।

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