हरियाणा: लोकसभा चुनावों में गठबंधन की राजनीति एक बार फिर चरम पर…

 लोकसभा चुनावों में गठबंधन की राजनीति एक बार फिर चरम पर है। हरियाणा में क्षेत्रीय दलों से गठबंधन की माहिर रही भाजपा जहां इस बार अकेले चुनावों में उतरी है, वहीं आम आदमी पार्टी और जननायक जनता पार्टी अपने गठबंधन में अभी तक कांग्रेस को लाने में सफल नहीं हो पाईं। लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का अलग गठबंधन है। भाजपा को पंजाब में अपनी साथी शिरोमणि अकाली दल का हरियाणा में भी समर्थन मिल गया है। इंडियन नेशनल लोकदल को जोड़ीदार नहीं मिलने से मजबूरी में अकेले चुनाव मैदान में उतरना पड़ा।

हालांकि हरियाणा की सियासत में गठबंधन की सरकारें कभी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाईं। प्रदेश के तीनों लालों (देवी लाल, बंसी लाल और भजन लाल) ने गठबंधन की राजनीति को बखूबी आगे बढ़ाया। हालांकि यह गठबंधन लंबे समय तक टिक नहीं पाए और महत्वाकांक्षाओं की भेंट चढ़ गए।

दूसरे दलों से समझौता कर सत्ता की सीढ़ी चढ़ने की नींव आपातकाल के बाद 1977 में ही पड़ गई थी। तब देवीलाल के नेतृत्व में महागठबंधन बना, जिसमें कई सियासी दलों और दिग्गज नेताओं ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई। गठबंधन ने हरियाणा की सत्ता पा भी ली, लेकिन कुछ समय बाद भजन लाल ने विधायकों को अपने साथ लेकर देवीलाल की सरकार गिरा दी। वर्ष 1980 में भजन लाल कांग्रेस में शामिल हो गए और सरकार बना ली।

वर्ष 1987 में देवीलाल ने भाजपा से गठबंधन कर सरकार बनाई। बदले सियासी समीकरणों में ओमप्रकाश चौटाला मुख्यमंत्री बने तो भाजपा ने गठबंधन तोड़ लिया और सरकार अल्पमत में चली गई। 1996 में बंसीलाल ने कांग्रेस से अलग होकर हरियाणा विकास पार्टी बनाई और भाजपा के साथ समझौता कर मुख्यमंत्री बने। तीन साल बाद भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया तो बंसी लाल की सरकार चली गई।

फिर इनेलो और भाजपा का गठबंधन हुआ जिससे ओमप्रकाश चौटाला मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ गए। यह गठबंधन भी लंबा नहीं चला और प्रदेश सरकार अल्पमत में आ गई। इससे गुस्साई इनेलो ने भी केंद्र में भाजपा से समर्थन वापस ले लिया। लोकसभा चुनाव में इनेलो ने बसपा से गठबंधन किया, लेकिन यह भी लंबा नहीं चल सका। 2008 में लोकसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा और इनेलो ने गठबंधन किया। गठबंधन जल्दी ही टूट गया और 2009 में विधानसभा चुनावों में भाजपा ने हरियाणा जनहित कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ा। 2014 में हरियाणा जनहित कांग्रेस और बसपा ने समझौता कर चुनाव लड़ा, लेकिन गठबंधन  टिक नहीं पाया।

साल दर साल ऐसे बदले लोकसभा में समीकरण

  • हरियाणा बनने के अगले ही साल 1967 में चौथी लोकसभा के चुनाव हुए जिसमें कुल नौ सीटों में से सात कांग्रेस ने जीती, जबकि भारतीय जनसंघ को एक सीट मिली। एक निर्दलीय सांसद बना।
  • 1971 मेंं कांग्रेस और भाजपा ने अपनी सीटें बरकरार रखीं, जबकि राव बीरेंद्र सिंह की विशाल हरियाणा पार्टी ने एक सीट जीती।
  • आपातकाल के बाद के चुनाव जब 1977 में जनता पार्टी की अगुवाई में कई दलों ने साझा चुनाव लड़े और सभी दस सीटें जीत ली।
  • 1980 में सातवीं लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस ने पांच, जनता पार्टी (सोशलिस्ट) ने चार और जनता पार्टी ने एक सीट जीती।
  • आठवें लोकसभा चुनाव (1984) में कांग्रेस ने सभी दस सीटें जीती, जबकि नौवें लोकसभा चुनाव (1989) में जनता दल ने छह और कांग्रेस ने चार सीटों पर कब्जा जमाया।
  • दसवें लोकसभा चुनाव (1991) में कांग्रेस के नौ सांसद बने और हरियाणा विकास पार्टी (हविपा) एक सीट पर सिमट गई।
  • ग्यारहवें लोकसभा चुनाव (1996) में भाजपा और हविपा गठबंधन ने सात सीटें जीती, जबकि कांग्रेस के दो और एक निर्दलीय उम्मीदवार जीते।
  • 12वीं लोकसभा (1998) में हरियाणा लोकदल (राष्ट्रीय) और बसपा का गठबंधन हुआ और पांच सीटों पर विजय पताका फहराई। भाजपा-हविपा गठबधंन को दो और कांग्रेस को तीन सीटें मिली।
  • 13वीं लोकसभा (1999) में भाजपा-इनेलो गठबंधन ने सभी दस सीटों पर कब्जा जमाया।
  • 14वीं लोकसभा (2004) में गठबंधन का जादू नहीं चला और कांग्रेस ने नौ व भाजपा ने एक सीट जीती।
  • 15वीं लोकसभा (2009) में कांग्रेस ने नौ और हजकां ने एक पर जीत दर्ज की।
  • 16वीं लोकसभा (2014) में भाजपा ने सात, इनेलो ने दो और कांग्रेस ने एक सीट जीती।
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