समाज के लिए जीने वाले एक सन्यासी का जाना

जुबिली न्यूज डेस्क
स्वामी अग्निवेश नहीं रहे। उनके जाने के बाद से सभी अपनी-अपनी यादें साझा कर रहे हैं। स्वामी अग्निवेश के व्यक्तित्व को लेकर कई तरह की राय रहीं।
भारत देश साधू-सन्यासियों के लिए भी जाना जाता है। शायद ही कोई क्षेत्र-इलाका ऐसा हो जहां साधु-सन्यासी न हो। लेकिन देश में ऐसे कितने सन्यासी जिनकों हम समाज उद्धार के लिए, उनके काम के लिए जानते हैं। अधिकांश सन्यासियों की पहचान उनका भगवा वस्त्र है पर स्वागी अग्निवेश ऐसे सन्यासी है जो सिर्फ अपने आंदोलन और काम के लिए जाने जाते रहे हैं। वह भगवाधारी थे पर समाज से कभी नहीं कटे। वह समाज के बीच में रहकर उनके लिए आंदोलन के जरिए आवाज उठाते रहे।

स्वामी अग्निवेश का अपने घर-परिवार से कोई मतलब नहीं रहा लेकिन समाज के लिए उन्होंने अपना पूरा जीवन बिताया। उन्होंने समाज को अपना परिवार माना और एक मुखिया की तरह उनकी हर समस्या के निवारण के लिए आवाज उठाते रहे।
स्वामी अग्निवेश ने शुक्रवार को अंतिम सांस ली। वे कई दिनों गंभीर रूप से बीमार थे। वह लीवर की समस्या से पीडि़त थे। उनके लीवर का ट्रांसप्लांट होना था। डोनर भी मिले लेकिन कोरोना वे कोरोना पीडि़त हो गए। कोरोना ने उन्हें हमसे छीन लिया।
स्वामी अग्निेश भगवाधारी थे लेकिन क्रांतिकारिता में उन्हें आजादी के बाद के शीर्षस्थ क्रांतिकारियों में गिना जा सकता है। वह आर्य समाज के अध्यक्ष भी थे। कर्मकांड और अंधविश्वास पर जबर्दस्त प्रहार करते हैं। तेलुगु भाषी होने के बावजूद उनकी हिंदी अंग्रेजी के अलावा कई भाषाओं पर पकड़ और ज्ञान देखकर लोग विवेकानन्द को याद करते थे।
स्वामी अग्निवेश की ख्याति बंधुआ मजदूरों के मुद्दों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों के तौर पर स्थापित करने को लेकर रही है। उन्होंने केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को बंधुआ मजदूरों के मुक्ति और पुनर्वास को लेकर कानून बनाने को मजबूर किया।
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एक वक्त था कि नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी उनके कार्र्यकर्ता थे। बाद में वह स्वामी जी से अलग हो गए लेकिन दुनिया में सभी इस बात को जानते और मानते हैं कि कैलाश सत्यार्थी स्वामी अग्निवेश जी के चेले रहे हैं।
नोबेल जैसा सम्मानित समझे जाने वाला ‘राइट लाइवलीहुड अवॉर्ड’ पा चुके स्वामी अग्निवेश के व्यक्तित्व को लेकर कई तरह की राय रहीं। 1939 में एक दक्षिण भारतीय परिवार में जन्मे स्वामी अग्निवेश शिक्षक और वकील रहे, मगर साथ ही उन्होंने एक टीवी कार्यक्रम के एंकर की भूमिका भी निभाई और रियलिटी टीवी शो बिग बॉस का भी हिस्सा रहे।
1970 में उन्होंने एक राजनीतिक दल ‘आर्य सभा’ की शुरुआत की थी और आपातकाल के बाद हरियाणा में जनता पार्टी की सरकार बनी उसमें वे मंत्री रहे। मंत्री के तौर पर भी उनके काम को सराहा गया। पार्टी के चुनाव के दौरान उन्हें चंद्रशेखर को चुनौती देते देखा गया।
बंधुआ मजदूरी के खिलाफ उनकी दशकों की मुहिम तो जगजाहिर है, पर आज के लोगों को शायद नहीं मालूम होगा कि अस्सी के दशक में उन्होंने दलितों के मंदिरों में प्रवेश पर लगी रोक के खिलाफ भी आंदोलन चलाया था। 2011 का अन्ना आंदोलन भी लोगों को याद होगा, जब उन्होंने अरविंद केजरीवाल पर धन के गबन का आरोप लगाया था। यह वाकया काफी समय तक लोगों को याद रहा। स्वामी अग्निवेश मतभेदों के चलते इस भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से दूर हो गए थे।
बाद में उन्होंने यह तक कहा कि ‘केजरीवाल अन्ना हजारे की मौत चाहते थे।’ माओवादियों और सरकार के बीच बातचीत में उनकी मध्यस्थता के लिए भी कुछ लोग स्वामी अग्निवेश को याद करते हैं।
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आर्य समाजी होने के कारण वे मूर्तिपूजा और धार्मिक कुरीतियों का हमेशा विरोध करते रहे। उन्होंने कई बार ऐसी बातें खुलकर कहीं जो ‘धार्मिक लोगों को बहुत नागवार लग सकती हैं।’ स्वामी अग्निवेश देश का ऐसा कोई भी कोना नहीं, जहां आंदोलनकारियों के समर्थन में वहां पहुंचे न हो। उनके भाषण के देश और दुनिया में करोड़ों लोग कायल हैं। उनका भाषण मुर्दों में भी जान फूंकने वाला रहा है।
उनके जानने वालों का कहना है कि कोरोना काल के पहले जब वे उनसे मिलते थे तो वे सदा एक ही बात कहते है हमको मिलकर कुछ बड़ा करना है, जो कुछ हम सब कर रहे हैं उससे काम चलने वाला नहीं। उम्र के इस पड़ाव में भी समाज के लिए कुछ करने
का वही जोश था जैसा 1980 के दशक में उनमें दिखता था। स्वामी कुछ नया खड़ा करने के लिए कई बैठकें बुलाते रहे कई साथियों के द्वारा बुलाई जाने वाली बैठकों में जाते रहे, लेकिन बात बनी नहीं। और अब तो कभी बात नहीं बनेगी।

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