संपादकीय : चीन का दोगलापन

भारत चीन सीमा विवाद अब अपने चरम पर है। पूर्वी लद्दाख में हुई हिंसक झड़प के बाद से उपजा तनाव अब गोलीबारी में तबदील हो चुका है। हालात यही रहे तो कभी भी युद्ध छिड़ सकता है। क्योंकि चीन अपने वादे पर कभी खरा नहीं उतरता है। उसके दिखाने दांत कुछ और खाने के कुछ और हैं। वरना मास्को में दोनों देशों के विदेश मंत्री मिलते हैं और पांच बिंदुओं पर सहमती भी बनती है।

बातचीत का एक मात्र लक्ष्य था सीमा पर तनाव खत्म होना चाहिए और उसके साथ सैनिकों की वापसी। यही नहीं सीमा विवाद को हल करने के लिए आगे सैनिक स्तर पर वार्ता जारी रखने पर भी सहमति बनी। लेकिन हुआ क्या, चीन ने आज तक अपनी सेनाओं को पीछे नहीं हटाया बल्कि खबरें यह है कि कुछ दिन पहले गोलीबारी भी दोनों तरफ हुई।
दरअसल, दोनों देशों के बीच सीमा विवाद लगभग 106 साल पुराना है। कई बार छिटपुट झड़पें भी हुई, कई बार युद्ध के हालत भी आए लेकिन बातचीत से सुलझा लिए गये। लेकिन इस चीन की हरकतों से सीमा पर इस बार कुछ ज्यादा ही तनाव वाली स्थित पैदा हो गयी है। वर्ष 1914 में शिमला में ब्रिटेन, चीन और तिब्बत के प्रतिनिधि शामिल हुए थे।
जिसमें तिब्बत को देश का दर्जा देने आई सीमा विवाद पर संधि होनी थी। लेकिन चीन ने एनवक्त पर तिब्बत को स्वयत्ता देने से इनकार कर दिया लेकिन चीन ने मैकमोहन रेखा पर जरूर समझौता कर लिया। लेकिन चीन ने इसे भी मानने से इनकार कर दिया। यहीं से विवाद के स्वर फूटे जो आज तक चले आ रहे हैं। अब तिब्बत पर चीन का कब्जा है इसलिए वह अरुणाचल पर भी अपना दावा करता रहता है। अरुणाचल प्रदेश के बीच की मैकमोहन रेखा को चीन मानने से ही मनाकर रहा है, मैकमोहन रेखा के अनुसार अरुणाचल प्रदेश भारत का हिस्सा है।
चीन ने जिस तरह से अक्साईचिन को हड़पा और अब पूर्वी लद्दाख में गलवान घाटी पर नजर गड़ाए है, वह कोई नया नहीं हैं। केवल भारत ही नहीं वह करीब दो दर्जन देशों की जमीनों पर कब्जा जमाना चाहता है। हिमाकत देखिए चीन की सीमा भले ही 14 देशों से लगती है लेकिन वह 23 देशों की जमीन और समुद्री सीमाओं पर दावा करता है। भारत चीन के साथ 3,488 किलामीटर लंबी सीमा साझा करता है, यह सीमा जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरूणाचल प्रदेश से होकर गुजरती है। भारत अक्साईचीन पर अपना दवा करता है, जो फिलहाल चीन के नियंत्रण में है। 1962 के युद्ध के दौरान चीन ने इस पूरे इलाके पर कब्जा कर लिया था।
इस संदर्भ में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कल लोकसभा में जो बयान दिया है, वह काफी महत्वपूर्ण है। उन्होंने खुले तौर पर माना की सीमा पर स्थिति बेहद तनावपूर्ण है और चीन ने भारत की लगभग 38 हजार वर्ग किलामीटर भूमि पर कब्जा किया है।
इसके अलावा 1963 में एक तथा कथित सीमा समझौते के तहत पाकिस्तान ने पीओके की 5180 वर्ग किलामीटर भारतीय भूमि को अवैध रूप से चीन को सौंप दी। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि चीन के सीमावर्ती क्षेत्रों में कोई वास्तविक नियंत्रण रेखा नहीं है और एलएसी को लेकर अभी तक दोनों देशों की धारणा अलग-अलग है। राजनाथ का यह बयान काफी महत्वपूर्ण माना जाना चाहिए। क्योंकि पहली सरकार की ओर से इस तरह का खुलासा किया गया है। अब भी समय है, दोनों देशों को मिल बैठकर बातचीत के जरिए सीमा विवाद सुलझा लेना चाहिए। वरना युद्ध के हालात से दोनों ही देशों का नुकसान होगा।
The post संपादकीय : चीन का दोगलापन appeared first on Vishwavarta | Hindi News Paper & E-Paper.

Back to top button