संपादकीय: कोरोना के आतंक से बड़ी पेट की आग

लेखक- तारकेश्वर मिश्र
पश्चिम बंगाल सहित पूरे देश में कोरोना का कहर जारी है। लॉकडाउन के दौरान दूसरे देशों के साथ ही साथ और कई अन्य राज्यों और देश के विभिन्न महानगरों से बड़ी संख्या में मजदूर अपने-अपने घर लौटे थे। कोरोना काल के दौरान लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूर तरह-तरह की कठिनाइयों से जूझते हुए अपने लौटे थे। खासकर बंगाल के प्रवासी मजदूर अपनी घर वापसी के मामले में देश के अन्य कुछ राज्यों के मुकाबले कुछ ज्यादा ही प्रताड़ित होकर घर लौटे।
राज्य सरकार ने शुरू में रेलवे पर गाड़ियां उपलब्ध नहीं कराने का आरोप लगाया तो रेलवे ने आंकड़ों और दस्तावेजों का हवाला देते हुए यह साबित किया कि ममता बनर्जी की सरकार अपने प्रवासी मजदूरों को वापस बुलाने में आनाकानी और टालमटोल कर रही है। केन्द्र और राज्य सरकार की राजनीतिक लड़ाई में पिस रहे बंगाल के प्रवासी मजदूर लाखों की संख्या में खुद की गाढ़ी कमाई खर्च कर कोरोना से बचने की आस में अपने घर लौटे। लेकिन अब कुछ ही महीनों में इन प्रवासी मजदूरों को फिर से झुण्ड बनाकर देश के उन हिस्सों की ओर जाते हुए देखा जा रहा है, जहाँ से वापस आने के बाद उन्हें यह कहते सुना गया था- “मेहनत मजदूरी करके अपने परिवार को किसी भी तरह पाल लेंगे, लेकिन अब वापस दूसरे राज्य में काम करने नहीं जायेंगे।”
कोलकाता के बाबूघाट इलाके से अन्य राज्यों के लिए प्राइवेट बस सेवा का संचालन करने वाले एक ट्रेवल एजेंसी के पिछले दो सप्ताह के आंकड़े देखने से पता चलता है कि राज्य के विभिन्न जिलों से ही पूरे बस की बुकिंग हो रही है। जिलों में मजदूर स्वयं अपनी मंडली तैयार करके पूरी बस बुक कर रहे हैं। सिलीगुड़ी, मालदह, मुर्शिदाबाद, रायगंज, दिनाजपुर सहित राज्य के प्रायः हर जिले से मजदूरों की टोली रवाना हो रही है। आश्चर्य इस बात से है कि बंगाल से सूरत, मुंबई, बंगलौर और चेन्नई जैसे दूर-दराज के शहरों के लिए भी बसें रवाना हो रही हैं।
ऐसी ही कुछ बसों से रवाना होने वाले लोगों से जब विभिन्न मीडिया के लोगों ने जब यह जानना चाहा कि क्या उन्हें अपने पुराने काम पर वापस बुलाया गया है तो 100 में से लगभग 90 का उत्तर नकारात्मक था। फिर भी जाने का कारण सुनकर और भी आश्चर्य हुआ। राज्य सरकार की और से प्रवासी श्रमिकों को स्थानीय स्तर पर ही रोजगार उपलब्ध कराने के दावों की पोल खुल गयी। जाहिर है कि मजदूरों को स्थानीय स्तर पर रोजगार नहीं मिल पाया है, जिसके कारण मजदूरों का फिर से पलायन को शुरू हो गया है।
इस बीच सीमा सुरक्षा बल की तरफ से हर रोज भारत-बांग्लादेश की सीमा पर हर रोज की जा रही कार्रवाई से जुड़े आंकड़ों को देखा जाये तो पता चलता है कि ख़ास कर पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती जिलों में घर वापस पहुंचे युवा प्रवासी मजदूरों की बड़ी संख्या आय के साधन के रूप में तस्करी जैसे अपराधों से भी जुड़ने लगी है। हाल में तस्करी के सामान के साथ पकड़े गये कई युवक कोविड काल से पहले दूसरे राज्यों में मेहनत – मजदूरी करते थे, लेकिन अब तस्करी करने लगे हैं। बताया जा रहा है कि काम के आभाव में ये युवा राजनीतिक दलों के बहकावे में कुछ अन्य गैरकानूनी धंधों में भी लिप्त हो रहे हैं, जो राज्य और समाज के हित में नहीं है।
उत्तर बंगाल के कुछ जिलों से बाबूघाट पहुंचे श्रमिकों के एक झुण्ड ने बताया कि यहाँ से मुंबई के लिए बस उपलब्ध नहीं होने के कारण वो झारखण्ड के बगोदर जा रहे हैं, वहां पहले से ही बाँकुड़ा और पुरुलिया जिले से उनके साथी पहुंचे हुए हैं. वहां से अब रोज दो- तीन लग्जरी बसें मुंबई के लिए खुलती है। मुंबई का किराया तीन से चार हजार तक बताया गया है कि यहां से मुंबई के लिए बस का किराया प्रति व्यक्ति तीन हजार से चार हजार के आसपास है।
प्रवासी मजदूरों ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि उनके पास पलायन करना मजबूरी है. लॉकडाउन ने उन्हें आर्थिक रूप से कमजोर बना दिया है। यहां आने के बाद लगा कि सरकार उनकी सुध लेगी। स्थानीय स्तर पर रोजगार उपलब्ध कराया जाएगा. सरकार ने प्रवासी मजदूरों के हितों के लिए तरह-तरह की घोषणाएं भी की थी. मगर रोजगार की बात तो दूर उन्हें क्वारंटाइन अवधि का राशन तक नहीं मिल पाया है। ऐसे में घर-परिवार चलाना जब मुश्किल होने लगा तब कोरोना काल में ही एक बार फिर से उनकी वापसी होने लगी है।
उल्लेखनीय है कि केन्द्र सरकार के आंकड़ों के अनुसार देश के चार करोड़ प्रवासी मजदूरों में से 25 प्रतिशत से थोड़े ज्यादा (लगभग 1.05 करोड़) कोरोना वायरस महामारी और राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के कारण अपने घर लौटे हैं. श्रम और रोजगार राज्यमंत्री संतोष कुमार गंगवार ने पिछले सोमवार को एक लिखित सवाल के जवाब में लोकसभा को यह जानकारी दी थी। इनमें से सबसे ज्यादा 32.50 लाख मजदूर उत्तर प्रदेश और 15 लाख बिहार के रहने वाले थे, जो महामारी और लॉकडाउन के कारण अपने घर लौटे. उत्तर प्रदेश और बिहार के बाद पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, ओडिशा और झारखंड से सबसे ज्यादा प्रवासी मजदूर काम के लिए देश के दूसरे राज्यों में जाते हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार के बाद सबसे ज्यादा 13.85 लाख प्रवासी मजदूर पश्चिम बंगाल स्थित अपने घरों को लौटे।
लेकिन बंगाल लौटे प्रवासी मजदूरों की संख्या और अन्य आंकड़ों के मामले में राज्य सरकार के लगभग सभी विभाग हाथ खड़े कर देते हैं। उदाहरण के लिए अगर हम जानना चाहें कि कोरोना काल में घर लौटे कितने श्रमिकों को मुफ्त राशन दिया गया, कितने लोग वास्तव में 100 दिन के रोजगार की योजना से लाभान्वित हुए या फिर उन्हें राज्य में ही रोजगार उपलब्ध कराने के क्या अन्य वैकल्पिक उपाय किये गये? तो इसके लिए हमें शायद अभी कई महीने इंतजार करना होगा. हाँ, तब तक शायद पेट की भूख से बेबस ये प्रवासी मजदूर भी अपनी जान की परवाह किये बिना अपने पुराने ठिकानों पर लौट चुके होंगे। l
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