कुंभ में नागा संन्यासियों से अलग कल्पवासियसों की अपनी दुनिया है। संगम की धरती पर जितने साधु संन्यासी आए हैं, उतनी ही संख्या में कल्पवासी भी यहां की रेती में ईश्वर आराधना में जुटे हैं। गृहस्थ जीवन वाले यह कल्पवासी यहां आने के बाद पूरी तरह से संन्यासियों जैसा जीवन जीने लगते हैं। दिन में तीन बार स्नान करते हैं और एक बार भोजन। बाकी समय में पूजन-अर्चन और दान दक्षिणा में समय व्यतीत होता है।
शास्त्रों में कल्पवास की दो तिथियों निर्धारित है। एक मकर संक्रांति से और दूसरा पौष पूर्णिमा से। कल्पवास पूरे एक महीने का होता है। यहां आए ज्यादातर संत-महात्माओं के शिविर में कल्पवासी ठहरे हुए हैं। कुछ लोग अकेले तो कुछ लोग सपत्नीक कल्पवास कर रहे हैं। बीच-बीच में परिवार जनों का भी आना जाना लगा रहता है। प्रतापगढ़ के ग्राम भदोही से आए नरेंद्र प्रताप ङ्क्षसह शिक्षाविद हैं। वह पिछले 17 वर्षों से कल्पवास कर रहे हैं। वह बताते है कि कल्पवास के दिन में वह पूर्ण उत्साहित और शांत महसूस कर रहे हैं। बताया कि वह मकर संक्रांति से से लेकर माघी पूर्णिमा तक यही रहेंगे।
वाराणसी से आए होटल व्यवसायी डा. सूर्य प्रकाश शुक्ला पहली बार कल्पवास करने आए हैें। उनका कहना है कि उनके लिए यह अलग ही अनुभव है। यहां की दिनचर्या बाकी जीवन से अलग है। प्रयागराज में भार्गव बैटरीज के मालिक राजीव रतन भार्गव 2013 से कल्पवास कर रहे है। उनके साथ उनकी पत्नी बीना भार्गव भी कल्पवास में हैं। बताते हैं कि कल्पवास करने से उनका पूरा परिवार धार्मिक है। उनकी बेटी श्ववेता भार्गव भी अपना ज्यादा समय शिविर में ही देती है। भार्गव ने बताया कि सेवा कार्य से उन्हें बहुत संतोष मिलता है।
घुइसरनाथ प्रतापगढ़ के रहने वाले जीतबहादुर सिंह पेेशे से शिक्षक हैं। वह 2012 से कल्पवास करते आ रहे हैे। कुंभ के साथ वह माघ मेले में भी कल्पवास कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि यहा रहकर वह अपना जीवन तो कृतार्थ कर ही रहे हैं, अपने पूर्वजों और संतों की आराधना से भी अपार सुख मिल रहा है। रविदत्त पांडेय सुलेम सराय प्रयागराज के रहने वाले हैं। उन्होंने बताया कि एसपी डाक के पद से सेवानिवृत्ति होने के बाद वह पहली बार कल्पवास करने आए हैं। अभी तक जीवन में जितनी आपाधापी थी, यहां आकर ऐसा लगता है कि इस दुनिया में पहले से ही आ जाना चाहिए था।
इस तरह रहती है कल्पवासियों की दिनचर्या
कल्पवासियों का पूरा समय हर एक कार्य के लिए निर्धारित होता है। शंकराचार्य नरेंद्रानंद सरस्वती ने बताया कि रात्रि के तीन बजे मंगल मुहूर्त में जागना होता है। भूमि पर सोना पड़ता है। स्वामी हरिचैतन्य ब्रह्मचारी ने बताया कि भोजन करने से पहले दान और अपने गुरू या किसी संन्यासी को भोजन कराना होता है। गंगाजल का पाना भी करना होता है।