कुंभ में महिला संन्यासिनियों की एक अलग और अद्भुत दुनिया बस चुकी है। संस्कृति और संस्कार के साथ संन्यासी चोला इनके जीवन का हिस्सा है। संगम तट पर अखाड़ों में नागा संन्यासियों के शिविरों के बीच कुछ साध्वियों ने धूने भी रमा लिए हैं। यह साध्वियां भस्म-भभूत लगाकर दर्शन नहीं देतीं, लेकिन संन्यास परंपरा का सख्ती से निर्वाह करती हैं। भोर से ही दिनचर्या शुरू हो जाती है। स्नान के बाद धूना लगता है और फिर शुरू हो जाती है साधना। जूना अखाड़े के पास लगे माई बाड़ा में सौ से अधिक साध्वियां देश-दुनिया भर से पहुंची हैं। इन साध्वियों की दुनियां ही अलग है। वहां बिना इजाजत के कोई प्रवेश नहीं कर सकता।
हरियाणा के खंडलवा आश्रम से आईं जूना अखाड़े की साध्वी जमातिया मंहत शांति गिरि ने गड़ासा और त्रिशूल धारण कर भस्ती पोते नागाओं के बीच अपना धूना सजाया है। वह महीने भर कुंभ के इस आध्यात्मिक समागम में नागाओं के बीच अपनी साधना करेंगी। बुधवार की दोपहर धूने पर अपनी शिष्याओं के साथ मिलीं महंत शांति गिरि ने अपना जन्म स्थान मध्य प्रदेश बताया। उन्होंने बताया कि ईश्वर की साधना में मन लगने के कारण महज 14 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने घर का त्याग कर दिया था। बाद में जूना अखाड़े के दिगंबर तूफान गिरि महाराज से उन्होंने संन्यास की दीक्षा ली और दूसरी दुनिया में पहुंच गईं। नागाओं और महिला संन्यासियों के जीवन में अंतर के सवाल पर वह बताती हैं कि महिला साध्वियों के नग्न होकर रहने या शाही स्नान करने पर प्रतिबंध है।
अखाड़ों का मानना हैकि यह भारतीय संस्कृति का खुला उल्लंघन है। इसलिए संन्यास संस्कार के बाद महिला साध्वियों को तन पर गेरुआ वस्त्र धारण करना अनिवार्य होता है। नागाओं के अखाड़ों में महिला संन्यासिनियों को एक अलग पहचान तो मिलती ही है, खास महत्व भी दिया जाता है। इन संन्यासिनियों की दुनिया ही अलग है। वहां आम लोगों की आवाजाही पर रोक है। पश्चिम बंगाल से आईं दीपा गिरि भी जूना अखाड़े की संन्यासिनी हैं। वह बताती हैं कि सांसारिक मायामोह के प्रति विरक्ति पैदा होने की वजह से उन्होंने संन्यास धारण कर लिया।
अब वह मातृशक्ति के बेड़े को मजबूत करने में जुटी हैं। पड़ोसी देश नेपाल से इस बार कुंभ में पचासों की तादाद में संन्यासिनियां पहुंचीं हैं। माई बाड़ा में इनके शिविर लगे हैं। वहां नेपाल की साध्वी सीता गिरि से मुलाकात हुई। बहुत आग्रह के बाद वह अपनी कुछ शिष्याओं के साथ बाहर निकलीं। उन्होंने बताया कि यह दुनिया के सबसे बड़ा संत समागम है। इसमें मानवता और कल्याण की कामना से वह भजन के लिए आई हंै। महीने भर भजन और जप, ध्यान होगा। साध्वी राधा गिरि भोर में चार बजे ही उठकर स्नान के बाद ध्यान में लग जाती हैं।
छत्तीसगढ़ से आई सिद्धेश्वरी पुरी के साथ भी शिष्याओं की मंडली है। वह कहती हैं कि शांति सिर्फ भगवान के चरण में ध्यान लगाने और भजन करने से मिल सकती है। कुंभ में वह तीनों शाही स्नान कर अपने आश्रम के लिए लौटेंगी। वह कहती हैं कि मायामोह से अलग इस दुनिया में उनको अपने आराध्य का भजन करने में बहुत सुकून मिलता है। अखाड़े में संन्यासिनियों को ऊंचा स्थान प्राप्त है। हर साध्वी को माई कहकर ही पुकारा जाता है।
भगवान दत्तात्रेय की माता अनुसुइया हैं संन्यासिनियों की इष्ट देवी
अखाड़े की साधियों की आराध्य भगवान दत्तत्रेय की माता अनुसुइया हैं। साध्वियों ने बताया कि वह अनुसुइया माता को ईष्टदेवी मानकर आराधना करती हैं। महिला संन्यासिनियों की सबसे अधिक संख्या जूना अखाड़े में है। वहां उनको पूरी स्वतंत्रता और कर्मकांड, संस्कार की छूट दी जाती है। जूना अखाड़े के माई बाड़ा में अधिकांश साध्वियां नेपाल से आईं हैं। एक साध्वी ने नाम न छापने के आग्रह पर बताया कि उनके साथ कई ऐसी साध्वियां आई हैं, जो शादी टूटने या परिवार से बिछडऩे के बाद अखाड़े में शामिल हुई हैं।