शीला दीक्षित के निधन की खबर के बाद ऊगू गांव स्थित ससुराल में लोगों के आंखों से आंसू बहे…
शिष्टता, जनता से जुड़ाव और विकासपरक राजनीति। सियासत के इन तीन विशिष्ट गुणों को समेटे एक छवि को लोग जिस नाम से जानते हैं तो वो थीं शीला दीक्षित। ऊगू (उन्नाव) के राजनीति परिवार की दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस की खांटी नेता शीला दीक्षित यहां हमेशा बहू की तरह रहीं। जब कभी भी गांव आईं तो राजनीतिक अंदाज से इतर घरेलू बहू की मर्यादा व उसकी अस्मिता को बरकरार रखा। बड़े बुजुर्गो के सामने सिर से पल्लू कभी गिरने नहीं दिया। उनके सामने मुख्यमंत्री नहीं, बहू की हैसियत से धीमी आवाज में हाल चाल लिया।
बहू के निधन से स्तब्ध है ऊगू
ऊगू की बहू शीला दीक्षित जो कन्नौज से सांसद चुने जाने के बाद राजीव गांधी सरकार में संसदीय कार्य मंत्री बनी। इसके बाद कन्नौज और अपनी ससुराल में ही हार मिली लेकिन, वक्त की करवट देखिए। जिस दिल्ली में वह उन्नाव के प्रतिनिधित्व की चाह रखती थीं, उसी दिल्ली पर उन्होंने तीन बार मुख्यमंत्री बनकर राज किया। उनके किए विकास की गवाही दिल्ली आज भी दे रही है। सियासत के नभ पर सितारा बन चमकीं शीला दीक्षित के निधन पर ऊगू अपनी बहू का साथ छूटने पर स्तब्ध है। शीला दीक्षित के निधन की खबर ऊगू में अशोक दीक्षित, अनुज दीक्षित, अवधेश दीक्षित और अन्य परिवारीजन को मिली तो सभी अवाक रह गए और आंखों से आंसू बह चले।
ससुर की राजनीतिक विरासत संभाली
अपने ससुर उमाशंकर दीक्षित की राजनीतिक विरासत संभालने वालीं शीला दीक्षित की बड़ी चाहत थी कि संसद में वह उन्नाव की नुमाइंदगी करें। वर्ष 1996 में कांग्रेस से नाराज होकर तिवारी कांग्रेस से उन्नाव से लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन, उनकी जमानत जब्त हो गई। वर्ष 1998 में वह दिल्ली की कांग्रेस अध्यक्ष बनीं और लगातार दिल्ली की तीन बार मुख्यमंत्री रहीं। मुख्यमंत्री बनने के बाद वह जब भी ऊगू आईं तो कस्बे के लोगों से बहू की तरह ही मिलीं। पिछले चार वर्षों से ऊगू नहीं आईं तो उनके पुत्र पूर्व सांसद संदीप दीक्षित आते रहे और गांव वासियों की मां से मोबाइल से बात कराते थे। ससुर का जन्मदिन मनाने शीला दीक्षित प्रतिवर्ष 12 जनवरी को ऊगू आती थीं। वह आखिरी बार 12 जनवरी 2009 को आई थीं
हर तरह शीला दीक्षित की यादों की चर्चा
दिल्ली की पूर्व सीएम शीला दीक्षित के निधन की खबर आते ही गांव में शोक की लहर दौड़ गई। उनसे मिल चुके गांव व आसपास के लोग उनकी पुरानी यादों की चर्चा में डूब गये। कुछ लोग अंतिम यात्रा में शामिल होने के लिए दिल्ली भी रवाना हो गए। दरअसल, ऊगू अपनी ससुराल जब भी कभी वह आईं तो एक सुशिक्षित बहू की हैसियत से लोगों से मिलीं। गांव व क्षेत्र से जो भी लोग कभी दिल्ली गए तो उन्होंने मुख्यमंत्री रहते न सिर्फ पूरा सम्मान दिया, समस्या का भरसक समाधान भी किया। यही कारण है कि आज उनके निधन की खबर ऊगू पहुंची तो ससुराल के लोग ही नहीं, सफीपुर, बांगरमऊ और फतेहपुर चौरासी के लोग भी शोक में डूब गए।
संस्कारित बहू की तरह पैर छूने में नहीं हटती थीं पीछे
ऊगू गांव के रहने वाले हरिकृष्ण दीक्षित बताते हैं कि मुख्यमंत्री रहते चाची शीलाजी कई बार गांव आईं तो हमने गौर किया कि वह संस्कारित बहू की तरह ससुर, चचिया ससुर, ननद और जो भी रिश्ते में पैर छूने लायक हो, झुककर हाथ से पैर छूने में पीछे नहीं हटती थीं। रिश्ते में शीलाजी के देवर लगने वाले शिव गोपाल दीक्षित ने बताया कि गांव के लोग जब दिल्ली जाते थे तो वहां कभी मिलने के लिए इंतजार नहीं करना पड़ता था। ऊगू उन्नाव बताते ही शीलाजी के विशेष सचिव ठहरने से लेकर भोजन-नाश्ता का प्रबंध करते थे।
गांव के विकास को लेकर जब भी कभी उनसे कोई मांग की गई तो उसे पूरा कराने के लिए उन्होंने प्रदेश सरकार से वार्ता कर समाधान भी कराया। बांगरमऊ के गौतम दीक्षित ने कहा कि क्षेत्र की समस्याओं को लेकर वह हमेशा गंभीर रहती थीं और रिश्तों की डोर को मजबूती से बांधे रखती थीं। शीला दीक्षित के निधन को लेकर जिस किसी से भी बात की गई वही पुरानी यादों में खो गया और आंखों से आंसू छलछला पड़े।