शिवराज सरकार को अब हुआ किसानों के दर्द का अहसास

 
hqdefault2-300x225मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री पद की बागडोर पिछले दस वर्षों से शिवराज सिंह चौहान के हाथों में है जिनके परिवार में खेती किसानी ही एकमात्र जरिया रही है। इस नजरिए से देखा जाए तो किसानों को उनकी सरकार में सर्वाधिक खुशहाल स्थिति में होना चाहिए था परंतु यह एक विडम्बना ही है कि प्राकृतिक आपदाओं से पीडि़त किसानों की हताशा निराशा शिवराज सरकार में ही सर्वाधिक बढ़ी है। ओलावृष्टि अथवा अल्प वर्षा के कारण फसलों के चौपट हो जाने से किसान भयावह आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहे हैंं। आए दिन किसानों के द्वारा मौत को गले लगा लेने के समाचार प्रकाश में आ रहे है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बार बार कह रहे है कि ‘मैं किसानों की आंखों में आंसू नहीं आने दूंगा’ परंतु उनके इन बयानों से भी राज्य के बदहाल किसानों को ढांढस बंधा पाने में अभी तक असफल ही रहे है।
 
किसानों की घनी भूत पीड़ा ने मुख्यमंत्री चौहान को इतना द्रवित कर दिया कि वे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर दस वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में आयोजित किए जाने वाले भव्य कार्यक्रमों को स्थगित कर उन्होंने राज्य में एक माह तक सेवा पर्व मनाए जाने के निर्देश दे दिए हैं। मुख्यमंत्री का यह फैसला निसंदेह स्वागतेय है परंतु क्या इस फैसले के लिए मुख्यमंत्री किसी सराहना के हकदार हैं? इस प्रश्न का उत्तर शायद नहीं में देना ही उचित होगा। हां अगर मुख्यमंत्री चौहान सत्तारूढ़ भाजपा के प्रदेश नेतृत्व को पहले ही अपनी इस मंशा से अवगत करा देते कि प्रदेश में किसानों की आर्थिक दुर्दशा को देखते हुए उनकी सरकार के दस वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में कोई भी भव्य समारोह आयोजित किए जाने के वे सख्त खिलाफ है तो निसंदेह वे सराहना के हकदार माने जा सकते थे।
 
परंतु प्रदेश भाजपा नेतृत्व द्वारा शिवराज सरकार के दस वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर रंगारंग कार्यक्रम आयोजित किए जाने के फैसले पर उन्होंने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की और उसके बाद वे नई दिल्ली जाकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं भाजपाध्यक्ष अमित शाह को 29 नवंबर को भोपाल में आयोजित किए जाने वाले मुख्य समारोह में पधारने का न्यौता भी दे आए तो इसका तात्पर्र्य यही था कि वे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठकर अपने दस वर्ष पूर्ण किए जाने के कीर्तिमान को धूमधाम से मनाए जाने के पार्टी के फैसले से सहमत हैं। गौरतलब है कि दिल्ली में मुख्यमंत्री द्वारा प्रधानमंत्री को भोपाल आमंत्रित किए जाने की जानकारी देने वाला समाचार भी अखबारों में मय फोटों के प्रकाशित हुआ था, लेकिन अचरज की बात तो यह रही कि मुख्यमंत्री ने भोपाल लौटते ही यह घोषणा कर दी कि राज्य में उनकी सरकार के दस वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में आयोजित किए जाने वाले सारे भव्य समारोहों को रदद कर राज्यभर में 29 अक्टूबर से 29 नवंबर तक सेवा पर्व का आयोजन किया जाए।
 
ऐसे में यह संदेह पैदा होना स्वाभाविक है कि क्या मुख्यमंत्री को राज्य में किसानों को आर्थिक तंगी से मुक्ति दिलाने में उनकी सरकार के अपर्याप्त प्रयासों के कारण उन भव्य समारोहों के आयोजन के लिए केन्द्र की हरी झंडी नहीं मिली जो शिवराज सरकार के दस वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में मनाए जाने थे। राज्य भाजपाध्यक्ष नन्दकुमार सिंह चौहान अब यह तर्क दे रहे है कि मुख्यमंत्री चौहान किसानों की समस्याओं की गंभीरता को बेहतर ढंग से समझते है इसलिए उन्होंने राज्य में उनकी सरकार की दसवीं वर्षगांठ को सेवा पर्व के रूप में मनाने की मंशा व्यक्त की थी। ऐसे में यह सवाल स्वाभाविक है कि फिर मुख्यमंत्री स्वयं प्रधानमंत्री एवं भाजपाध्यक्ष को 29 नवंबर को भोपाल पधारने का न्यौता देने के लिए दिल्ली क्यों गए? यहां यह उल्लेख करना भी गलत नहीं होगा कि राज्य सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग ने भी जिला कलेक्टरों को ये निर्देश जारी कर दिए थे कि वर्ष 2005 से 2015 तक की राज्य सरकार की उपलब्धियों को जनता के बीच प्रचारित करें और इसके लिए राज्य, जिला, ब्लाक और ग्राम पंचायत स्तर पर भव्य कार्यक्रम भी आयोजित किए जाएं। इन भव्य कार्यक्रमों का समापन भोपाल में मुख्य समारोह के रूप में होना था जिसमें प्रधानमंत्री एवं भाजपाध्यक्ष की मौजूदगी में मुख्यमंत्री के अभिनन्दन की योजना तैयार हो चुकी थी।
 
 राज्य भर में एक माह तक चलने वाले विकास दशक समारोह  के अंतर्गत स्वतंत्रता सेनानियों, मीसाबंदियों, पद्म पुरस्कारों से सम्मानित विभूतियों को आमंत्रित करने, प्रभातफेरी, रैलियों, नुक्कड़ नाटक, अंत्योदय मेले आदि के भी आयोजन किए जाने थे। यहीं नहीं कलेक्टरों को यह भी निर्देश दिए गए थे कि वे अपने जिलों में आयोजित किए गए कार्यक्रमों की रिपोर्टिंग मुख्यमंत्री कार्यालय को भी करें। परंतु अब ये सब गुजरे हुए कल की बातें हैं। आज स्थिति पूरी तरह बदल चुकी है। भाजपा कार्यकर्ताओं, नेताओं और मंत्रियों को अब एक माह तक किसी रंगारंग भव्य कार्यक्रम का हिस्सा नहीं बनना है उन्हें महीने भर तो केवल सेवा पर्व में हिस्सेदारी करना हैं। राज्य भाजपा के अध्यक्ष नन्दकुमार चौहान भले ही यह स्पष्टीकरण दे कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शिवराज सरकार के दस वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में जश्न मनाने से मना नहीं किया बल्कि स्वयं मुख्यमंत्री ने किसानों की तकलीफ देखकर आयोजन से इंकार किया परंतु भाजपाध्यक्ष की यह बात किसी के गले नहीं उतर रही है। अगर ऐसा ही था तो मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को सेवा पर्व के आयोजन की जानकारी क्यों नहीं दी? यदि शिवराज सिंह चौहान प्रधानमंत्री को यह बताते कि वे अपनी सरकार के दस वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में एक माह के सेवा पर्व के आयोजन के फैसले की सूचना देने आए है तो प्रधानमंत्री को निश्चित रूप से अतीव हर्ष होता और प्रधानमंत्री की नजरों में मुख्यमंत्री का कद भी और ऊंचा हो जाता। शायद राज्य भाजपाध्यक्ष के अति उत्साह ने मुख्यमंत्री को भी असहज स्थिति का सामना करने को विवश कर दिया है।
 
उधर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अरूण यादव को यह बयान देने का मौका दे दिया है कि मुख्यमंत्री चौहान के कार्यकाल के दस वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में 29 नवंबर को जश्न व जनसेवा महाकुंभ का आयोजन रदद होना भाजपा की आंतरिक कलह का परिणाम है। जहां तक अरूण यादव के इस बयान का प्रश्न है, उन्हें इस तरह के बयान देने का अधिकार इसलिए नहीं दिया जा सकता क्योंकि प्रदेश कांग्रेस स्वयं ही विपक्ष में आने के बाद अंतर्कलह के दौर से गुजर रही है। दरअसल आज की तारीख में प्रदेश में कांग्रेस इस स्थिति में ही नहीं है कि वह प्राकृतिक आपदाओं के कारण फसल चौपट होने से आर्थिक तंगी झेल रहे किसान को राहत पहुंचाने के लिए सरकार पर एकजुट होकर दबाव बना सके।
 
गौरतलब है कि प्रदेश कांग्रेस की नई कार्यकारिणी की पहली बैठक में कमलनाथ और सुरेश पचौरी जैसे नेताओं की गैर मौजूदगी चर्चा का विषय बनी रही और उनकी अनुपस्थिति में ही पार्टी के मिशन 2018 की घोषणा कर दी गई। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने बैठक में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए इस बात पर जोर दिया कि प्रदेश कार्यकारिणी में हुई नियुक्तियों से उपजे असंतोष और गिले शिकवे को भुलाकर अब कांग्रेसजनों को किसानों की तकलीफों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। दिग्विजय के संबोधन का सार यही था कि किसानों की तकलीफों को लेकर कांग्रेस पार्टी अपनी जिम्मेदारी के निर्वाह में असफल रही है। यूं तो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरूण यादव ने भी महीने में पन्द्रह जन विश्वास पद यात्रा पर निकलने की घोषणा की है और ग्रामीण अंचलों तक पहुंचने की योजना बनाई है परन्तु जब तक पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के बीच एकजुटता कायम नहीं होती तब तक संभावना नगणय ही है कि मुख्य विपक्ष दल के रूप में कांग्रेस पार्टी राज्य में किसानों की तकलीफों को लेकर सरकार को घेरने में सफल हो जाएगी।
 
बरहाल राज्य सरकार देर आयद दुरूस्त आयद की नीति पर चलने के बजाय अगर पहले ही अपने युद्ध स्तरीय कदमों से प्राकृतिक मुसीबत की इस घड़ी में सरकार पूरी तरह उनके साथ है तो शायद किसानों को उस निराशा की स्थिति से उबारा जा सकता था जिसका शिकार होकर वे आत्महत्या जैसे अंतिम विकल्प को चुन रहे हैं। सवाल यह उठता है कि जब पानी गले तक आ पहुंचता है तभी राज्य सरकार की आत्मा क्यों कचोटने लगती है। यही स्थिति राज्य में फसलों के बर्बाद हो जाने से हताश निराश किसानों की आत्म हत्याओं के मामले में भी देखने को मिल रही है। रोजाना ही दो तीन किसानों के द्वारा मौत को गले लगा लेने की खबरे तो पहले ही आ रही थीं परंतु सरकार उस समय हरकत में आने की अपरिहार्यता का अहसास नहीं कर पाई। आपदा पीडि़त निराश हताश किसानों को राहत पहुंचाने के लिए जो घोषणाएं अभी की जा रही है और जो त्वरित फैसले किए जा रहे हैं उन्हें अगर पहले ही अमल में लाया गया होता तो शायद किसानों को हताशा की स्थिति से उबरने में सरकार काफी हद तक सफल हो सकती थी। कुछ माह पूर्व ही मुख्यमंत्री ने ओलों की मार से फसलों को होने वाले नुकसान का जायजा लेने के लिए स्वयं ही गांवों का दौरा किया था और अब उन्होंने दुखी किसानों को ढांढस बंधाते हुए कहा था कि ‘मैं हूं न’ आपकों चिंता की कोई आवश्यकता नहीं है।
 
सवाल यह उठता है कि आज जो किसान अपनी फसलों के चौपट हो जाने से हताशा उन्हें सरकार यह भरोसा क्यों नहीं दिला पा रही है कि जब तक मुख्यमंत्री पद की बागडोर शिवराज सिंह चौहान के हाथों में है तब तक किसानों को सचमुच चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है। किसानों को उनकी तकलीफों से निजात दिलाने के लिए कृत संकल्प मुख्यमंत्री की सख्ती चुस्ती और सक्रियता के कारगर परिणाम तभी सामने आ सकते हैं जब सरकार के कदमों में अब किसी स्तर पर ढील न आने पाए। वैसे भी फसलों को हुए नुकसान के अनुपात में सरकार की मदद को पर्याप्त तो नहीं कहा जा सकता लेकिन किसानों को यह सांत्वना तो अवश्य मिल सकती है कि सरकार को उनकी तकलीफों  का पूरा अहसास है और अपनी जिम्मेदारी के निर्वहन में वह कोई कोताही नहीं बरतेगी।
 
मुख्यमंत्री चौहान ने निराश किसानों की तकलीफों का मौके पर ही जायजा लेने के लिए अफसरों को जो निर्देश दिए है उससे किसानों का खोया हुआ आत्म विश्वास लौटाया जा सकता है और उन्हें सरकार संवेदनशीलता की अनुभूति कराकर उनमें यह आशा जगाई जा सकती है कि उनके जीवन में एक बार फिर खुशियां लौटने की संभावनाएं अभी बरकरार है। मुख्यमंत्री ने अफसरों को गांवों में रात गुजारने और ग्रामीणों के साथ भोजन करने के जो निर्देश दिए हैं उससे सरकार के साथ संवादहीनता की स्थिति समाप्त करने में मदद मिलेगी और किसान अपनी तकलीफों के बारे में उन्हें खुलकर बता सकेंगे। मुख्यमंत्री ने अफसरों से कहा है कि वे गांव गांव जाकर किसानों को राहत देने का नया आइडिया लेकर आए। मुख्यमंत्री ने यह भी घोषणा की है कि वे सूखा प्रभावित क्षेत्रों का औचक दौरा करेंगे। इससे प्रशासनिक अमले को हर समय अपनी जिम्मेदारियों के निर्वहन के प्रति सजग रहना होगा। मुख्यमंत्री ने आर्थिक तंगी से जूझ रहे किसानों को राहत पहुंचाने के उद्देश्य से यह घोषणा भी कर दी है कि जीरो प्रतिशत ब्याज पर दिए कर्ज चुकाने में भी सरकार उन्हें राहत देगी। जिन किसानों की फसल 50 फिसदी से ज्यादा बर्बाद हुई है उनसे कर्ज की वसूली तीन साल की जाएगी और जिन किसानों की फसल 33 से 50 फीसदी तक खराब हुई उनसे कर्ज की वसूली दो साल में की जाएगी। इस दौरान उन्हें नया कर्ज लेने की सुविधा भी मिलेगी।
 
गौरतलब है कि सरकार ने राज्य में अल्पवर्षा के कारण उत्पन्न सूखे की स्थिति से करीब 22 हजार करोड़ रुपए के नुकसान का अनुमान लगाया है अल्प वर्षा के कारण सबसे ज्यादा सोयाबीन, उड़द और मूंग की फसलों को नुकसान पहुंचा हंै। छोटे और सीमांत किसान इन फसलों पर अपनी लागत भी निकाल पाने में सफल नहीं हुए हैं। प्रदेश के 23 जिलों की 114 तहसीलें सूखाग्रस्त घोषित की गई हैं। अल्प वर्षा, ओलावृष्टि जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कारण जिन किसानों की फसलों को नुकसान पहुंचा है उन्हें सरकार फसल बीमा की राशि के भुगतान दिलाने में भी तत्परता बरतेगी। शिवराज सरकार ने केन्द्र से भी सात हजार करोड़ रुपए की आर्थिक मदद मांगने का फैसला किया है ताकि मौसम की मार झेल रहे किसानों को आर्थिक तंगी के दौर से बाहर निकाला जा सके।
 
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बार बार राज्य के किसानों को यह भरोसा दिलाते रहे हैं कि सरकार किसानों की आखों में आंसू नहीं आने देगी। परन्तु इस समय राज्य में किसानों के बीच जो निराशा का माहौल है उसे देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि किसानों को मदद मिलनी चाहिए वह समय पर उपलब्ध कराने में कही न कही चूक अवश्य हुई है। किसानों का भरोसा जीतने के लिए सरकार को अपने कदमों से यह साबित करना होगा कि वह वास्तव में किसानों की हमदर्द है।
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