शहर छोड़ गांव क्यों जा रहे हैं अमेरिकी

न्यूज डेस्क
तो क्या कोरोना वायरस से गांव सुरक्षित हैं? तो क्या गांवों तक कोरोना की पहुंच नहीं होगी? यह सवाल इसलिए है क्योंकि दुनिया के सबसे सम्पन्न देश अमेरिका में लोग कोरोना के डर से गांव की ओर पलायन कर रहे हैं।
कोरोना का डर पूरी दुनिया के सिर चढ़कर बोल रहा है। इस समय कोरोना का सबसे ज्यादा कहर अमेरिका में है। संक्रमित मरीजों का आंकड़ा दो लाख पार कर चुका है। जहां ट्रंप सरकार लोगों से घरों में और सोशल डिस्टेंसिंग बनाने की अपील कर रही है तो वहीं न्यूयार्क में रहने वाले कुछ अमेरिकी कोरोना के डर से गांव की ओर भागने की सोच रहे हैं। वहीं जानकारों का मानना है कि भीड़ से दूर गांव देहात में रहना और भी जानलेवा साबित हो सकता है क्योंकि जरूरत पडऩे पर वहां चिकित्सीय सुविधाएं आसानी से नहीं पहुंचाई जा सकेंगी।
वैसे तो कोरोना वायरस के संक्रमण दुनिया के 190 देशों तक पहुंच गया है लेकिन सबसे ज्यादा असर इन दिनों अमेरिका में हैं, खासकर न्यूयार्क। अमेरिका के अधिकांश राज्यों में लोग खाने-पीने की चीजें जमा कर रहे हैंं। सुपरमार्केट में जिस सामान की कमी हो रही है, उसकी कालाबाजारी भी शुरु हो गयी है। वहीं कोरोना का डर लोगों में इस कदर बढ़ रहा है कि लोग शहर छोड़ गांव की ओर जाने की सोच रहे हैं। अमेरिका के लोग कितने चिंतित हैं इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 7 मार्च को इंटरनेट में “रूरल प्रॉपर्टी” की सर्च पिछले साल की तुलना में 364 फीसदी ज्यादा बढ़ गई है।
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अमेरिका में इन दिनों रियल स्टेट का बिजनेस फायदे में दिख रहा है। फॉर्टीट्यूड रैंच जैसी कुछ कंपनियां लोगों को यह कह कर लुभा रही हैं कि वे उन्हें ऐसे दूर दराज के इलाकों में घर दिलाएंगी जहां उन्हें कोरोना से डरने की कोई जरूरत नहीं होगी। इसे “सर्वाइवल कम्यूनिटी” का नाम भी दिया गया है। कंपनी का नारा है, “बुरे वक्त की तैयारी के साथ वर्तमान का आनंद लें।”
वेब पोर्टल डी डब्ल्यू हिंदी के मुताबिक कंपनी के सीईओ ड्र्यू मिलर का कहना है कि कोरोना संकट के बीच उनकी प्रॉपर्टी में रुचि दिखाने वालों की संख्या दस गुना बढ़ गई है।
थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन से बात करते हुए उन्होंने बताया, “लोगों को डर है कि अगर वायरस और घातक साबित हुआ या क्वॉरंटीन से फायदा नहीं हुआ और ऐसे में अगर अर्थव्यवस्था बिगड़ती है, तो खाने की चीजों पर और न्याय व्यवस्था पर इसका असर पड़ेगा। ” ऐसे में कंपनी इन घरों में अंडरग्राउंड बंकर देने का भी वादा करती है जो कथित रूप से न्यूक्लियर हमले से भी बचा सकेंगे। साथ ही इन घरों में पहले से खाने पीने का खूब सामान भरा गया होगा।
वह कहते हैं कि इन घरों को यह सोच कर बनाया गया है कि “जब सामाजिक व्यवस्था ठीक से काम करना बंद कर देगी,चारों तरफ लूट मची होगी, कानून व्यवस्था का कोई अता पता नहीं होगा और शहर सुरक्षित नहीं रह जाएंगे” तब लोगों को एक सुरक्षित ठिकाना मुहैया कराया जा सकेगा।
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वेब पोर्टल डी डब्ल्यू हिंदी के मुताबिक नॉर्थ कैरोलाइना में ऐसी ही एक कंपनी चलाने वाले जॉन हेनेस कहते हैं कि कोरोना संकट ने लोगों को यह अहसास कराया कि उन्हें बहुत पहले ही इस तरह की प्रॉपर्टी में निवेश कर लेना चाहिए था। वे बताते हैं कि मार्च के मध्य तक वे इतनी प्रॉपर्टी बेच चुके हैं जितनी 2019 में पूरे साल में बेची थीं। हेनेस कहते हैं, “बहुत से लोग महीनों या शायद सालों से सोच रहे थे कि खरीदें या नहीं लेकिन इस वायरस ने उन्हें फैसला लेने पर मजबूर कर दिया।”
शहर के लोग गांवों में घर खरीद रहे हैं तो गांवों में रहने वाले लोगों की चिंता बढ़ गई है। वहां रहने वाले लोगों को अब डर सता रहा है कि उन्हें नए लोगों के साथ अपने संसाधन बांटने पड़ेंगे। दरअसल ऐसी दूर दराज जगहों पर लोग अक्सर निवेश के मकसद से घर खरीद कर रख लेते हैं और फिर साल में एक या दो बार वहां छुट्टी बिताने के लिए चले जाते हैं, लेकिन कोरोना संकट के बीच हालात अलग होंगे। वैसे, इस अजीब ट्रेंड में अमेरिका अकेला नहीं है। कनाडा, यूरोप और न्यूजीलैंड में भी कई लोग इस तरह की “सर्वाइवल प्रॉपर्टी” में निवेश कर रहे हैं।
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