व्यंग्य : कंगना की कर्णभेदी खनक

ओम प्रकाश तिवारी
 
देश में रिया की चमक के बाद अब कंगना की सुमधुर खनक गुंजायमान हो रही है। जहां देखो वहीं कंगना। अखबारों और चैनलों की लीड खबर कंगना। चैनलों में विमर्श का बिषय कंगना। सोशल मीडिया पर कंगना। बैडरूम से लेकर किटी पार्टी तक कंगना। वनन मे, बागन में, नंद के आंगन में, कंगना खनक रही है। विंहस रही है। सच कहा जाय तो कोमल कलाई को छोड़कर सर्वत्र विराजमान है कंगना।

कंगना भारत माता की बेटी है। मुम्बा देवी की उसपर विशेष कृपा है। वह महान भारत की ताकत है। अभिनेत्री के रूप में देवी है। फिल्मिस्तान को सांस्कृतिक प्रदूषण से मुक्ति प्रदान करने के बाद कंगना देश की राजनीति को पवित्र करने का पावन कार्य करेगी। अपने कोमल करों से राजनीति में मर्यादा को पुनर्प्रतिष्ठित करेगी। उसकी महिमा अपरम्पार है।
अब – ‘जिसकी जितनी महिमा भारी। उसकी उतनी चर्चा न्यारी। कंगना की महिमा का कोई ओर-छोर महीन है। चर्चा में कंगना के आगे माननीय और माफिया सब कमजोर पड़ रहे हैं। पृथ्वी से लेकर अनंत अंतरिक्ष तक हर कहीं कंगना खनक रही है। बीच बीच में अगर सोनिया और शिवसेना का रुदन सुनाई भी देता है तो उसके पीछे भी कंगना की ही महिमा है, वरना आज कौन जानता और पूंछता संजय राउत जैसे निठल्ले नेता को।
यह सनातन देश कंगना का दीवाना है। पशु-पक्षी कंगना की खनक सुनकर गोकुल की गऊओं की तरह मगन हैं। हिमांचल प्रदेश से लेकर महाराष्ट्र तक गमलों के पौधे इतरा रहे हैं। भौंरों तक को भाव नहीं दे रहे हैं, फिर भी अमहक भौंरे गुनगुना रहे हैं। मंडरा रहे हैं।
कंगना के दीवानों में अब मोदी सरकार का भी नाम जुड़ चूका है। वैसे भी यह सरकार देश की पूर्व और वर्तमान विभूतियों को सर – माथे बैठाती है। कंगना तो देश की महाविभूति है। भारतीय नारी की सांस्कृतिक अस्मिता की प्रतीक है। साहित्य का विम्व है। उपमेय और उपमान दोनों है। रस, छंद और अलंकार है। कविता की तरह वह भी आलोच्य नहीं है। उसकी निंदा आदिशक्ति की निंदा है।
कंगना की प्रतिष्ठा भारत की प्रतिष्ठा है। उसकी सुरक्षा भारत की सुरक्षा है। इसीलिए तो गृह मंत्रालय ने उसे जेड प्लस सुरक्षा प्रदान की है। शिवसेना और कांग्रेस नेता तो नाहक ही परेशान है। उन्हें भी इस आदिशक्ति की आराधना – आरती कर अपने-अपने मोक्ष का मार्ग प्रशस्त कर लेना चाहिए।
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