वेबिनार में वक्ताओं ने कहा – देश में हिंदी को अनिवार्य करने की आवश्यकता

लखनऊ। हिन्दी दिवस पर युगधारा फाउंडेशन द्वारा आयोजित ‘हिंदी की स्वीकार्यता’ विषयक वेबिनार में वक्ताओं ने कहा कि देश में हिंदी को अनिवार्य करने की आवश्यकता है। वेबिनार में उपस्थित बतौर वक्ता रायपुर से विदुषी डॉ मृणालिका ओझा ने कहा कि नयी शिक्षा नीति में प्राथमिक शिक्षा स्थानीय भाषा में देने का प्रावधान किया गया है। पूरे देश में हिंदी को अनिवार्य करने की आवश्यकता है। हिन्दी साहित्यकारों ने हिन्दी की अमूल्य सेवा की है, लेकिन चलचित्रों और विज्ञापन के क्षेत्र ने इसे नुकसान पहुंचाया है।

डॉ मृणालिका ओझा ने कहा कि हिन्दी साहित्य और भाषा अत्यंत समृद्ध है। तत्सम शब्दों के साथ ही इसने सभी भाषाओं के शब्द भी समाहित किये हैं। उन्होंने कहा कि हिन्दी दिवस, सप्ताह और पखवारे मनाने से काम नहीं चलेगा, जनमन को हिन्दी से जोड़ने और हर व्यक्ति को साक्षर बनाने का कार्य भी करना होगा। प्रवासी भारतीयों के योगदान को भी हमें याद रखना चाहिए।
विशिष्ट वक्ता चंद्रिका प्रसाद मिश्र ने हिंदी के विकास में राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी को इंगित करते हुए कहा, कि विदेश से छात्र और पर्यटक आकर यहां हिन्दी सीखते हैं। हिन्दी में कार्य करते हैं। उन्होंने कहा कि आज की हिन्दी विभिन्न भारतीय बोलियो से विकसित हुई है और उसने विश्व पटल पर एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है। आज यदि हिन्दी का कहीं विरोध है तो उसका कारण केवल राजनीतिक स्वार्थ है।
वेबिनार की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ चिंतक और रचनाकार रामकृष्ण सहस्रबुद्धे ने कहा कि आज दुनिया के दो तिहाई से अधिक विश्वविद्यालय में हिन्दी पढ़ाई जाती है। हिन्दी आमजन की भाषा है, जो विविधता में एकता की महत्वपूर्ण कड़ी है। इसकी सर्व स्वीकार्यता प्रमाणित हो चुकी है। उन्होंने कहा कि पाठ्यक्रम में हिंदी को अनिवार्य कर हम आने वाली पीढ़ी को भारतीय ज्ञान विज्ञान और तकनीक से समृद्ध कर सकते हैं। आवश्यकता है दृढ़ इच्छाशक्ति की और शिशु मन से ही उसे मातृभाषा के साथ हिन्दी से जोड़ने की।
वेबिनार के प्रारंभ में विषय का प्रतिपादन करते हुए संस्था की महासचिव सौम्या मिश्रा ने हिन्दी की सर्व स्वीकार्यता से जुड़े महत्वपूर्ण बिंदुओं की चर्चा की और इस दिशा में चल रहे प्रयासों पर विस्तार से प्रकाश डाला। इस आयोजन में विभिन्न प्रांतों से 50 से अधिक लोगों ने सहभागिता की।
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