विचार मंथन : ध्यान एकाग्रता प्रदान करता हैं, वहीं शांति, सन्तुष्टी और परोपकार मनुष्यता देती हैं- ईश्वर चन्द्र विद्यासागर

सभी महान आत्माएं समाज पर अपने शुभ कर्मों का प्रभाव छोड़ने के लिए ही पैदा होते हैं। ऐसा ही महान एक व्यक्तित्व भारत् माता की संतान जिसका नाम ईश्वर चंद्र विद्यासागर थे, जो बहुत विनम्र थे, जिन्होंने निश्चित उद्देश्यों को पूरा करने के लिए दृढ़ संकल्प और उद्देश्य के साथ अपना पूरा जीवन बिता दिया । वह महान समाज सुधारक, लेखक, शिक्षक एवं उद्यमी थे और समाज को बदलने के लिए निरंतर काम करते रहे थे । भारत में शिक्षा के प्रति उनका योगदान और महिलाओं की स्थिति को बदलना उल्लेखनीय हैं जो इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा गया । ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने भारत में बहुपत्नी, बाल-विवाह का जोरदार विरोध और विधवा पुनर्विवाह और महिला शिक्षा अनुग्रह किया । इस तरह के मुद्दों के प्रति उनके योगदान के कारण, विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856 में पारित किया गया था जिसके तहत विधवाओं का पुनर्विवाह कानूनी तौर पर मान्य हो गया । जाने ऐसे महान महापुरूष के अनमोल जीवन उपयोगी विचार ।
 
विद्या सबसे अनमोल ‘धन’ है; इसके आने मात्र से ही सिर्फ अपना ही नही अपितु पूरे समाज का कल्याण होता है । संसार मे सफल और सुखी वही लोग हैं, जिनके अन्दर विनय हो और विनय विद्या से ही आती है । समस्त जीवों में मनुष्य सर्वश्रेष्ठ बताया गया है, क्यूंकि उसके पास आत्मविवेक और आत्मज्ञान जो हैं । कोई मनुष्य अगर बङा बनना चाहता है, तो छोटे से छोटा काम भी करे, क्यूंकि स्वावलम्बी ही श्रेष्ठ होते हैं । मनुष्य कितना भी बङा क्यों न बन जाए उसे हमेशा अपना अतीत याद करते रहना चाहिए ।
 
जो व्यक्ति दुसरो के काम मे न आए, वास्तव मे वो मनुष्य नही है । अगर सफल और प्रतिष्ठित बनना है, तो झुकना सीखो । क्यूंकि जो झुकते नही, समय की हवा उन्हें झुका देती है । एक मनुष्य का सबसे बङा कर्म दुसरों की भलाई, और सहयोग होना चाहिए, जो एक सम्पन्न राष्ट्र का निमार्ण करता हैं । अपने हित से पहले, समाज और देश के हित को देखना एक विवेक युक्त सच्चे नागरिक का धर्म होता है ।
 
बिना कष्ट के ये जीवन एक बिना नाविक के नाव जैसा है, जिसमे खुद का कोई विवेक नही । एक हल्के हवा के झोके मे भी चल देता है । दुसरो के कल्याण से बढ कर, दुसरा और कोई नेक काम और धर्म नही होता । जो मनुष्य संयम के साथ, विर्द्याजन करता है, और अपने विद्या से सब का परोपकार करता है । उसकी पूजा सिर्फ इस लोक मे नही वरन परलोक मे भी होती है । संयम विवेक देता है, ध्यान एकाग्रता प्रदान करता है। शांति, सन्तुष्टी और परोपकार मनुष्यता देती हैं । जो नास्तिक हैं उनको वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भगवान में विश्वाश करना चाहिए इसी में उनका हित हैं ।

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