वायरल को डेंगू बताकर बच्ची को 5 दिन भर्ती रखा, अब 7 साल बाद डॉक्टरों पर केस

नई दिल्ली.वायरल फीवर को डेंगू बताकर बच्ची को 5 दिन तक भर्ती रखने और गलत ट्रीटमेंट के आरोप में दिल्ली पुलिस ने एक हॉस्पिटल मैनेजमेंट समेत 2 डॉक्टरों के खिलाफ केस दर्ज किया। पिता का आरोप है कि हालत बिगड़ने पर डॉक्टरों ने बेटी को सरकारी हॉस्पिटल में रेफर कर दिया था, जहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। इस लापरवाही को उजागर करने के लिए पिता ने 7 साल तक लड़ाई लड़ी। डॉक्टरों से जुड़े कई संगठनों के चक्कर काटे और कई आईटीआई लगाईं। आखिरकार कोर्ट ने डॉक्टरों को दोषी माना और केस दर्ज के ऑर्डर दिए।वायरल को डेंगू बताकर बच्ची को 5 दिन भर्ती रखा, 7 साल बाद डॉक्टरों पर केस

क्या है मामला?

– 21 अक्टूबर, 2011 को दिल्ली के प्रमोद चौधरी बेटी रितु (10 साल) को लेकर आरएलकेसी मेट्रो हॉस्पिटल पहुंचे थे। डॉक्टरों ने बच्ची को वायरल बताया था। यहां डॉ. सुनील सरीन के कहने पर प्रमोद ने बच्ची को भर्ती करवा दिया।

– जांच में प्लेटलेट्स 2 लाख से ज्यादा थीं। लेकिन डॉक्टरों ने डेंगू बताकर इलाज शुरू कर दिया। दवाइयां भी वह दीं जो डेंगू के इलाज की नहीं थीं। धीरे-धीरे बच्ची के सभी अंगों ने काम करना बंद कर दिया।

– हालत ज्यादा बिगड़ने पर डॉक्टरों ने उसे सरकारी हॉस्पिटल में रेफर कर दिया। 26 अक्टूबर, 2011 को राम मनोहर लोहिया हॉस्पिटल (RML) में इलाज के दौरान बच्ची की मौत हो गई।

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इंसाफ के लिए पिता 7 साल लड़ाई लड़ी

– बेटी की मौत पर प्रमोद ने डॉक्टरों की लापरवाही की बात करते हुए आरएलकेसी हॉस्पिटल मैनेजमेंट और डॉक्टरों से जुड़े कई संगठनों से कार्रवाई की मांग की। हॉस्पिटल ने डॉक्टरों को क्लीन चीट दे दी और संगठनों ने अनसुना कर दिया।

– प्रमोद ने हार नहीं मानी और काेर्ट में पिटीशन लगाई। अपना पक्ष मजबूत करने के लिए देश के बड़े सरकारी अस्पतालों में आरटीआई लगाई और डेंगू में दिए जाने वाले ट्रीटमेंट की जानकारी जुटाई। जवाब आने पर उन्हें पता चला कि आरएलकेसी के डॉक्टर बेटी को जो ट्रीटमेंट दे रहे थे, वह डेंगू से अलग था।

– आखिरकार 7 सात की लंबी लड़ाई के बाद 17 नवंबर को तीस हजारी कोर्ट ने डॉक्टरों को दोषी मानते हुए केस दर्ज करने के ऑर्डर दिए। पुलिस ने हॉस्पिटल मैनेजमेंट और डॉ. सुनील सरीन, डॉ. विवेक के खिलाफ आईपीसी 304/34 के तहत केस दर्ज किया।

गलत ट्रीटमेंट से किडनी हो गई थी डैमेज

– जांच के दौरान पाया गया कि बच्ची को जो दवाइयां दी गई थीं उन पर (विश्व स्वास्थ्य संगठन) डब्ल्यूएचओ ने बैन लगाया हुआ है। फिर भी डॉक्टरों ने बच्ची को ये दवाईयां क्यों दीं जिससे बच्ची और बीमार होती गई। इन्हीं के इस्तेमाल से बच्ची की किडनी और रिनल डैमेज हुए जो उसकी मौत की वजह बने।

बिल रोका, FIR करवाई

– प्रमोद कुमार एनडीएमसी में नौकरी करते हैं। पैनल में होने के चलते उन्हें नकद पैसे नहीं देने पड़े। अस्पताल ने उन्हें लाखों रुपए का बिल बनाकर एनडीएमसी को भेज दिया।

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– अफसरों ने अस्पताल का बिल रोकने के साथ ही मैनेजमेंट के खिलाफ आईपीसी 420/471/468 के तहत मुकदमा दर्ज करवा दिया। हॉस्पिटल को पैनल से बाहर कर दिया है।

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