लोकसभा संग्राम 86–देवबन्द से गठबंधन का चुनावी प्रचार की शुरूआत करने के मायने क्या है ?

गठबंधन का मूलमंत्र बुर्खा,खुर्पा और फावड़ा साम्प्रदायिकता की फ़सल को लहलाने नही देगा ?
तौसीफ़ क़ुरैशी राज्य मुख्यालय लखनऊ।
जिस उम्मीद के साथ बसपा-सपा और आरएलडी ने यूपी की सियासत को साम्प्रदायिकता से छुटकारा दिलाने के लिए गठबंधन कर एक ऐसी शुरूआत करने की कोशिश की थी जिसकी कल्पना से ही साम्प्रदायिक दल बेजान नज़र आ रहे है। अब गठबंधन के रणनीतिकारों ने अपने चुनावी प्रचार की शुरूआत भी ऐसी ही जगह से करने की पहल की है जहाँ से गठबंधन को और अधिक मज़बूती मिलेगी। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की उन आठ सीटों पर जहाँ पहले चरण में 11 अप्रैल को मतदान होना है वहाँ गठबंधन ने सात अप्रैल को पहली संयुक्त रैली देवबन्द में करने का फ़ैसला किया है जिसमें पाँच लाख से अधिक लोगों के भाग लेने का लक्ष्य रखा गया है सौ बीघा ज़मीन को रैली में आने वाले लोगों के लिए और पचास बीघा ज़मीन रैली में आने वाली गाड़ियों की पार्किंग के लिए प्रबंध किया जा रहा है।
गठबंधन का उद्देश्य देवबन्द में रैली करना यूपी को यह संदेश देना हो सकता है कि बुर्खा खुर्पा और फावड़ा मिलकर अब साम्प्रदायिकता की फ़सल को कामयाब नही होने देगा यानी मुसलमान, दलित, यादव और जाट मिलकर साम्प्रदायिकता की लहलाती फ़सल में तेज़ाब डालने का काम करेंगा। गठबंधन की ओर से सात अप्रैल को देवबन्द में बसपा सुप्रीमो मायावती सपा के अखिलेश यादव और रालोद के चौधरी अजित सिंह संयुक्त रैली करेंगे देवबन्द का नाम देश ही नही दुनिया के नक़्शे में अपनी अलग पहचान रखता है वैसे तो देवबन्द हिन्दु-मुस्लिम-सिख-ईसाई की एकता के लिए भी जाना जाता है जहाँ एक और माँ त्रिपुर बाला सुन्दरी देवी का मन्दिर है जहाँ महाभारत काल के दौरान पाँचव पाण्डव ने वनवास के टाइम यहाँ कुछ पल गुज़ारे थे वही दूसरी ओर मुस्लिमों का विश्वप्रसिद्ध इस्लामिक शिक्षा का वो केन्द्र है जिसने आजादी की लडाई में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था और आज भी देश और दुनिया को सही रास्ते पर चलने का संदेश देता चला आ रहा है जिसे दारूल उलूम के नाम से जाना जाता है इस लिए देवबन्द को हिन्दु-मुसलमान की साझा विरासत के लिए भी जाना जाता है हालाँकि साम्प्रदायिक फ़सल लहलाने वाले देवबन्द को समय-समय पर बदनाम करते रहते है जिसको संकीर्ण मानसिकता से ग्रस्त मीडिया हवा देता रहता है जबकि उसमें कोई सच्चाई नही होती।
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ज़ाहिर सी बात है होली के बाद ऐसी एतिहासिक नगरी से गठबंधन बसपा, सपा व रालोद मिलकर पहली रैली कर यह संदेश देंगे कि गठबंधन यूपी से साम्प्रदायिक ताक़तों को अब उभरने नही देंगे। देवबन्द सहारनपुर लोकसभा सीट का हिस्सा है ये सीट गठबंधन में बसपा के कोटे में गई है यहाँ से बसपा ने मौहम्मद फजलुर्रहमान पर दाँव लगाया है तो वही कांग्रेस ने मोदी की बोटी-बोटी के बयान से सुर्ख़ियो में आए इमरान मसूद को प्रत्याशी बनाया है जो 2012 से लगातार चुनाव हारते चले आ रहे है उनके हारने का कारण उनको हिन्दु वोट का न मिलना रहता है हिन्दु वोट इमरान का नाम आते ही किसी ऐसे दल का चयन करता है जिससे वह न जीत पाए और इमरान चुनाव हार जाता है ओर मुसलमान का सारा वोट कूड़े का ढेर साबित होता है।
बसपा-सपा और रालोद के गठबंधन हो जाने से यह सीट आसानी से निकलती दिख रही है सहारनपुर लोकसभा सीट पर वोटो के हिसाब से गठबंधन का वोट लगभग सात लाख पचास हज़ार पड़ेगा जिसमें तीन लाख वोट तो ऐसा है जिसमें किसी भी दल की दावेदारी नही मानी जाती है जो सिर्फ़ और सिर्फ़ गठबंधन को ही जाएगा यानी दलित मतदाता रही बात मुसलमान की उसका वोटिंग का सत्तर प्रतिशत भी गठबंधन के सात जाने की उम्मीद की जा रही है मुसलमानों से बात करने पर उनका कहना है कि मोदी की भाजपा को हराने के लिए सहारनपुर लोकसभा सीट पर ज़्यादातर मुसलमान गठबंधन पर ही जाएगा इस लिहाज़ से ये सीट गठबंधन आसानी से जीत जाएगा वैसे कांग्रेस वोट काटने की पूरी कोशिश कर रही है लेकिन मुसलमान ने मोदी की भाजपा को हराने का मन बना लिया है जिसकी वजह से कांग्रेस की स्थिति नाज़ुक है और वह मात्र कुछ हज़ार वोट ही लेती दिखाई दे रही है कुछ जाति के नाम पर तो कुछ कार्यकर्ता की वजह से बाक़ी आम मुसलमान उसको वोट देने का मतलब मोदी की भाजपा को वोट देना मान रहे है उनका कहना है कि कुछ ज़मीर फरोश लोग भ्रम फैलाने का प्रयास कर रहे है कि गठबंधन हार जाए चाहे मोदी की भाजपा जीत जाए लेकिन मुसलमान उनके इस तरह के मनसूबो को कामयाब नही होने देगा।
अब ये तो चुनावी परिणाम आने पर ही पता चलेगा कि गठबंधन का बुर्खा, खुर्पा और फावड़ा की विजय होती है या जो गठबंधन में शामिल न होने पर मोदी की भाजपा के लिए काम कर रहे ऐसे षड्यंत्र कारियों की जीत होती है इस सीट पर मोदी की भाजपा और गठबंधन के बीच लडाई हो रही है और कांग्रेस तीसरे नंबर की लडाई लड़ रही है मोदी की भाजपा पाँच लाख से ज़्यादा वोट नही पा सकती और गठबंधन का प्रत्याशी सात लाख वोट लेता दिख रहा है इस लिए यही कहा जा सकता है कि गठबंधन ये सीट मोदी की भाजपा से दो लाख से अधिक वोटों से जीत सकता है।

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