लेबर कोड बिल को लेकर संघ परिवार में मतभेद

जुबिली न्यूज डेस्क
कोरोना महामारी के बीच केंद्र सरकार ने किसानों और मजदूरों के लिए ऐसा बिल लेकर आई है जिसका चारों ओर विरोध हो रहा है। केंद्र सरकार ने 5 विधेयकों के माध्यम से न सिर्फ गरीबों व मजदूरों के हक छीने हैं, बल्कि देश व दुनिया की कंपनियों को अद्वितीय तोहफे भी दिए हैं। सरकार ने तीन दशकों से वैश्विक उद्योगपतियों की ओर से चल रही मांग को कोरोना की आड़ में एक झटके में पूरा कर दिया है।
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केंद्र सरकार के इस फैसले से न सिर्फ किसान, मजदूर नाराज हैं बल्कि लेबर रिफॉर्म एजेंडे को लेकर संघ परिवार में मतभेद उभरकर सामने आए है। क्योंकि आरएएस से जुड़े भारतीय मजदूर संघ (BMS) ने लोकसभा द्वारा पारित तीन लेबर कोड बिलों का विरोध किया है।
भारतीय मजदूर संघ ने इससे पहले कृषि बिल का भी विरोध किया था। संघ के जोनल सेक्रेटरी पवन कुमार ने कहा, ‘जिस तरह से सरकार ने तीन लेबर कोड बिल पारित किए हैं, हम उसका विरोध करते हैं। सरकार ने लेबर कोड बिल जल्दबाजी में पारित कराएं, जो ठीक नहीं हैं।
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उन्होंने कहा कि इस पर विस्तार से चर्चा नहीं हो पाई। सरकार ने हमारी महत्वपूर्ण मांगें नहीं मानी हैं। हमने मांग की थी कि सोशल सिक्योरिटी कोड के तहत मजदूरों को सामाजिक सुरक्षा की व्यवस्था यूनिवर्सलाइज करनी चाहिए। यानी देश के हर मजदूर को सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था का फायदा मिलना चाहिए लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया।

पवन कुमार ने आगे कहा, ‘हमने केंद्र सरकार से ये भी मांग की थी कि कोड ऑन ऑक्यूपेशनल सेफ्टी में जो सुरक्षा के प्रावधान हैं, वर्करों के लिए उसे भी यूनिवर्सलाइज किया जाए लेकिन जो बिल पारित हुआ है उसमें हजार्ड इंडस्ट्री में सुरक्षा सिर्फ उन मजदूरों को दी जाएगी, जो उन निकायों में काम करते हैं, जहां 10 या 10 से ज्यादा मजदूर काम करते हैं।’
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इसके साथ उन्होंने यह भी कहा कि इस बिल को लेकर केंद्र सरकार के सामने भारतीय मजदूर संघ का एक बड़ा विरोध है। हमारी इस बात पर कड़ी आपत्ति है कि सोशल सिक्योरिटी कोड बिल में ESIC और EPFO यानी भविष्य निधि से जुड़ी सुविधाएं देश के हर वर्कर को मिलनी चाहिए। सरकार ने हमारी इस मांग को बिल में शामिल नहीं किया है।
उन्होंने कहा कि भारतीय मजदूर संघ की 2 से 4 अक्टूबर के बीच 3 दिनों की एक वर्चुअल कॉन्फ्रेंस होगी, जिसमें 3000 डेलिगेट्स भाग लेंगे। इस बैठक में हम इस मसले पर अपनी आगे की रणनीति तय करेंगे।
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